नयी दिल्ली, 12 सितंबर (भाषा) भारत को वर्ष 2032 तक कोयला-आधारित बिजली उत्पादन की 26 गीगावॉट अतिरिक्त क्षमता की जरूरत पड़ सकती है। यह इस समय निर्माणाधीन 25 गीगावॉट क्षमता वाली परियोजनाओं से अलग होगा। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
सीईए ने राष्ट्रीय बिजली योजना की एक रिपोर्ट के मसौदे में कहा है कि इस समय विकसित की जा रही कोयला-आधारित परियोजनाओं के अलावा वर्ष 2031-32 तक देश को 17-28 गीगावॉट कोयला-जनित बिजली की अतिरिक्त जरूरत पड़ सकती है।
सीईए ने राष्ट्रीय बिजली योजना के मसौदे को गत बृहस्पतिवार को हितधारकों की राय जानने के लिए जारी किया है। इसके बारे में सुझाव एवं आपत्तियां पांच दिसंबर तक दी जा सकती हैं।
बिजली अधिनियम, 2023 के मुताबिक, सीईए को पांच साल में एक बार राष्ट्रीय बिजली योजना तैयार करनी है। इस अधिनियम में प्रावधान है कि बिजली योजना तैयार करते समय सीईए पहले इसका मसौदा जारी करेगा और फिर उस पर लाइसेंसधारकों, उत्पादक कंपनियों और आम लोगों से सुझाव एवं आपत्तियां आमंत्रित करेगा।
इस मसौदा दस्तावेज के मुताबिक, वर्ष 2031-32 तक बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (बीईएसएस) की जरूरत भी 51 गीगावॉट से लेकर 84 गीगावॉट तक रह सकती है।
रिपोर्ट के मसौदे में कहा गया है कि निर्माणाधीन जल-विद्युत संयंत्रों की स्थापना में देरी होने पर वित्त वर्ष 2026-27 में क्षमता निर्माण में अतिरिक्त कोयला-बिजली की जरूरत करीब चार गीगावॉट होने की संभावना है।
सीईए की रिपोर्ट में यह पाया गया है कि अत्यधिक मांग की स्थिति में बिजली की जरूरत बढ़ने पर कोयला-आधारित क्षमता एवं भंडारण जरूरत और बीईएसएस दोनों ही बढ़ जाते हैं।
वित्त वर्ष 2026-27 के लिए अखिल भारतीय स्तर पर बिजली की सर्वाधिक मांग 272 गीगावॉट और 1,874 अरब यूनिट तक रह सकती है। वहीं वित्त वर्ष 2031-32 के लिए बिजली की मांग 363 गीगावॉट और 2,538 अरब यूनिट रहने की संभावना है।
भाषा प्रेम
प्रेम अजय
अजय
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.