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शनिवार, 3 मई, 2025
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वाणिज्य मंत्रालय ने अमेरिका में निर्यात भेजने के संबंध में उद्योग को आगाह किया

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नयी दिल्ली, तीन मई (भाषा) वाणिज्य मंत्रालय ने घरेलू उद्योग को अमेरिका को माल निर्यात करते समय अमेरिका के ‘उत्पत्ति या उद्गम स्थल’ मानदंडों का सख्ती से पालन करने के संबंध में आगाह किया है, क्योंकि पर्याप्त मूल्य संवर्धन के बिना उच्च टैरिफ वाले देशों के उत्पादों को वहां (अमेरिका) भेजने को ‘ट्रांसशिपमेंट’ (निर्यात) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है और उस पर अधिक शुल्क लगाया जा सकता है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी है।

अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय ने उद्योग को यह भी आश्वासन दिया है कि निर्यातकों को निश्चितता और स्पष्टता प्रदान करने के लिए मूल्य संवर्धन मानदंडों को संहिताबद्ध करने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे।

इस मुद्दे पर 2 मई को मंत्रालय द्वारा भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर एक अंशधारक परामर्श के दौरान विस्तार से विचार-विमर्श किया गया। अंशधारक परामर्श की अध्यक्षता मंत्रालय में विशेष सचिव राजेश अग्रवाल ने की। वह भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) के लिए भारत के मुख्य वार्ताकार भी हैं।

ट्रांसशिपमेंट का तात्पर्य एक देश से उत्पादों को आयात करने और फिर आमतौर पर बिना किसी महत्वपूर्ण प्रसंस्करण या मूल्य संवर्धन के दूसरे देश को निर्यात करने की प्रक्रिया से है।

पिछले महीने निर्यातकों के साथ एक बैठक में, वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने घरेलू निर्यातकों को आगाह किया कि उन्हें चीन जैसे उच्च टैरिफ वाले देशों से आने वाले सामानों को अमेरिका भेजने के लिए भारत को एक माध्यम के रूप में उपयोग नहीं करने देना चाहिए।

अमेरिका ने चीनी सामानों पर 145 प्रतिशत टैरिफ लगाया है।

उच्च अमेरिकी आयात शुल्क का सामना करने वाले देशों से सामान खरीदना और फिर उन्हें अमेरिका भेजना, अमेरिकी अधिकारियों की कार्रवाई को आमंत्रित कर सकता है, जिसमें फर्मों को ब्लैकलिस्ट भी किया जाना भी शामिल हो सकता है। ऐसे निर्यात अमेरिकी उद्गम स्थल नियमों का उल्लंघन करते हैं।

अधिकारी ने कहा कि परामर्श के दौरान, अमेरिका द्वारा अपनाए गए ‘उद्गम स्थल नियमों’ पर एक सिंहावलोकन प्रदान किया गया।

अधिकारी ने कहा, ‘‘इसमें व्यापार समझौतों के तहत माल की उत्पत्ति या उद्गम स्थल का निर्धारण करने के लिए उपयोग की जाने वाली विभिन्न अवधारणाओं, कृषि, परिधान एवं वस्त्र और मोटर वाहन जैसे क्षेत्रों में उत्पाद-विशिष्ट नियमों पर प्रकाश डालना शामिल था। उल्लेखनीय रूप से, उत्पत्ति स्थल के निर्धारण के लिए ‘पर्याप्त रूपांतरण’ नियम पर भी चर्चा की गई।’’

जब ​​अमेरिका और निर्यातक देश के बीच कोई व्यापार समझौता नहीं होता है, तो उत्पत्ति स्थल के नियम (आरओओ) किसी उत्पाद की वास्तविक उत्पत्ति स्थल का निर्धारण करते हैं। यह उस अंतिम देश पर आधारित नहीं है, जहां से माल गुजरा था, बल्कि इस पर आधारित है कि उन्हें नए उत्पाद के रूप में महत्वपूर्ण रूप से कहां बदलाव किया गया था।

थिंक टैंक जीटीआरआई ने कहा कि यदि किसी उत्पाद में उच्च स्तर के चीनी लागत के सामान हैं और वह अमेरिकी मूल मानकों को पूरा नहीं करता है, तो इसे अभी भी चीनी माना जा सकता है और भारत के रास्ते भेजे जाने पर भी उसे उच्च शुल्क दरों का सामना करना पड़ सकता है।

अब जबकि अमेरिका अलग-अलग देशों पर अलग-अलग टैरिफ लगा रहा है, ये उद्गम स्थल नियम सभी आयातों के लिए प्राथमिक परीक्षण हैं। भारतीय निर्यातकों को शिपमेंट में देरी, जुर्माना या टैरिफ झटकों से बचने के लिए उन्हें ध्यान से समझना और उनका पालन करना चाहिए।

यह ‘उद्गम स्थल नियम’ दो मुख्य प्रकार का है – तरजीही और गैर-तरजीही आरओओ। अमेरिकी सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा (सीबीपी) मूल का निर्धारण करने के लिए दो प्रमुख परीक्षणों का उपयोग करता है – या तो उत्पाद पूरी तरह से एक देश में उगाया, खनन या उत्पादित होना चाहिए या इसे काफी हद तक रूपांतरित किया जाना चाहिए।

पर्याप्त परिवर्तन या रूपांतरण के तहत, किसी उत्पाद को उस देश में एक प्रक्रिया से गुजरना चाहिए जो उसे एक नया नाम, उपयोग या चरित्र देता है। विभिन्न कलपुर्जो को आपस में इकट्ठा कर देना या जोडना, पैकेजिंग या लेबलिंग करने जैसे बुनियादी कदम पर्याप्त नहीं हैं।

जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘कभी-कभी यह बताना मुश्किल होता है कि पर्याप्त रूपांतरण के रूप में किसे गिना जाये। ऐसे मामलों में, सीबीपी अंतिम निर्णय लेता है। निर्यातकों को अपने उत्पादों को उच्च टैरिफ लगने वाले चीनी उत्पाद के रूप में पुनर्वर्गीकृत होने से बचाने के लिए यह बताने या स्पष्टीकरण देने को तैयार रहना चाहिए कि इनमें कैसे और कहाँ मूल्यवर्धन किया गया था।’’

भाषा राजेश राजेश माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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