नयी दिल्ली, दो जुलाई (भाषा) नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का व्यापक विकास नीतियों के साथ समायोजन करने से वर्ष 2060 तक करीब 19.3 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी की स्थिति से बाहर निकाला जा सकता है। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को कुल 20.4 लाख करोड़ डॉलर की बचत भी होगी। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक अध्ययन रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
इस अध्ययन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि सुसंगत नीतियों और वित्तपोषण के साथ नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य उत्सर्जन में कटौती, अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने और सामाजिक लाभ प्रदान करने में किस तरह मदद कर सकते हैं।
इस अध्ययन रिपोर्ट में तीन परिदृश्यों का आकलन किया गया है। पहले परिदृश्य में वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है जिससे वैश्विक तापमान में 2.6 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के साथ गरीबी, कुपोषण में बढ़ोतरी और बिजली, साफ पानी एवं स्वच्छता सेवाओं तक पहुंच बाधित होगी।
दूसरा परिदृश्य नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल में तेजी से जुड़ा है, जिससे वर्ष 2060 तक जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी घटकर सिर्फ 12 प्रतिशत रह जाएगी। इससे वैश्विक तापमान में वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने में सफलता मिलेगी।
तीसरा परिदृश्य सबसे महत्वाकांक्षी है जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा को स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी और खाद्य प्रणालियों में निवेश के साथ बढ़ावा दिया जाता है और इसके नतीजे भी सबसे परिवर्तनकारी निकलेंगे।
इस परिदृश्य में बिजली और स्वच्छ खाना पकाने तक सबकी पहुंच होगी, 14.2 करोड़ लोग कुपोषण से बाहर लाए जाएंगे और 55 करोड़ से अधिक लोगों को स्वच्छ पानी और स्वच्छता तक पहुंच मिलेगी।
यूएनडीपी में जलवायु परिवर्तन की वैश्विक निदेशक कैसी फ्लिन ने कहा, ‘‘यह अध्ययन दिखाता है कि स्वच्छ ऊर्जा का भविष्य संभव है, लेकिन इसके लिए समावेशी विकास नीतियों से जुड़ी जलवायु योजनाओं में नवीकरणीय महत्वाकांक्षा को शामिल करना होगा।’’
इस परिदृश्य के तहत ऊर्जा दक्षता बचत में 8.9 लाख करोड़ डॉलर और नवीकरणीय ऊर्जा की घटती लागत से 11.5 लाख करोड़ डॉलर की बचत होगी जबकि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को 21 प्रतिशत तक बढ़ावा मिलेगा और वर्ष 2060 तक प्रति व्यक्ति आय में 6,000 डॉलर की बढ़ोतरी होगी।
अध्ययन में सहयोगी संस्थान ऑक्टोपस एनर्जी के संस्थापक ग्रेग जैक्सन ने स्वच्छ ऊर्जा से पैदा हो सकने वाली वृद्धि क्षमता पर जोर दिया।
हालांकि, जीवाश्म ईंधन अब भी वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति का 70 प्रतिशत से अधिक है और पिछले साल की ऊर्जा मांग वृद्धि में इसका बड़ा योगदान रहा है।
पारडी इंस्टिट्यूट के निदेशक जोनाथन मोयर ने वैश्विक नेताओं से इन विकास रणनीतियों को अपनाने का आह्वान करते हुए कहा कि वैश्विक विकास को पर्यावरण संरक्षण के साथ संतुलित करना संभव है।
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