scorecardresearch
Friday, 26 April, 2024
होमदेशअर्थजगत'भारत के स्थानीय निकाय दुनिया में सबसे कमजोर': RBI ने उनसे राज्य, केंद्रीय अनुदान पर निर्भरता को कम करने के लिए कहा

‘भारत के स्थानीय निकाय दुनिया में सबसे कमजोर’: RBI ने उनसे राज्य, केंद्रीय अनुदान पर निर्भरता को कम करने के लिए कहा

आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि नगर निगमों की बढ़ती इंफ्रास्ट्रक्चरल डिमांड को पूरा करने के लिए वित्तपोषण के इनोवेटिव वैकल्पिक स्रोतों की जरूरत है.

Text Size:

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत में नगरपालिका की आर्थिक हालत पर चिंता जताई है. उन्होंने खासतौर पर शहरी स्थानीय निकायों के बारे में यह कहते हुए टिप्पणी की कि वे अपने खुद के राजस्व के बजाय राज्य और केंद्र सरकारों से मिलने वाले अनुदान पर ज्यादा निर्भर होती जा रही हैं.

आरबीआई ने गुरुवार को जारी म्यूनिसिपल फाइनेंस पर अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह प्रवृत्ति इन नगर पालिकाओं की कार्यों को प्रभावी ढंग से करने की क्षमता के लिए नुकसानदायक है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में यूएलबी (अर्बन लोकल बॉडी) वित्तीय स्वायत्तता के मामले में दुनिया में सबसे कमजोर हैं. इन निकायों के टैक्स और यूजर चार्ज, दरों की स्थापना, छूट देने और फंड उधारी के साथ-साथ इंटर-गवर्मेंट हस्तांतरण कब कैसे और कितना जा रहा, इस सब पर राज्य सरकार का नियंत्रण है.’

इसमें कहा गया है, ‘राजस्व में उछाल न होने, केंद्र एवं राज्य सरकारों से अनुदान पर ज्यादा निर्भरता, और स्वायत्त रूप से पूंजी बाजारों तक पहुंचने में असमर्थता ने यूएलबी की जरूरी कामों को पूरा करने की क्षमता को कमजोर कर दिया है.’

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यूएलबी में जहां एक तरफ उनके राजस्व (जिन्हें वे अपने टैक्स और नॉन-टैक्स स्रोतों के जरिए अपने दम पर जुटा सकते हैं) का हिस्सा घट रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ सरकारी हस्तांतरण का हिस्सा बढ़ रहा है. यह सरकार के अनुदानों पर बढ़ती राजकोषीय निर्भरता को दर्शाता है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

आरबीआई ने कहा, ‘पुख्ता साक्ष्यों से पता चला है कि स्थानीय निकायों की अपने खर्च की जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों पर अधिक निर्भरता उन्हें कमजोर और कम कुशल बना रही है.’


यह भी पढ़ें: ‘अब यह प्राइवेट सेक्टर के लिए फंड का मुख्य स्रोत नहीं रहा’, अर्थव्यवस्था में बैंकों की कैसे बदल रही है भूमिका


201 नगर निगमों का डेटा

देश भर में 201 नगर निगमों के फाइनेंस डेटा को देखते हुए आरबीआई ने कहा कि ‘नगरपालिका राजस्व में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है. भारत की सभी नगर पालिकाओं की स्थिति ऐसी ही है और 1946-47 से मोटे तौर पर इसमें कोई बदलाव नहीं आया है.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि एक दशक से ज्यादा समय से, भारत में नगरपालिका का राजस्व / व्यय जीडीपी के लगभग एक प्रतिशत पर स्थिर है. अगर हम ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका नगरपालिका को ओर देखे तो स्थिति इसके विपरीत नजर आएगी. ब्राजील में नगर पालिका राजस्व/व्यय, सकल घरेलू उत्पाद का 7.4 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका में 6 प्रतिशत है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऐसा कहा गया है कि नगर पालिका राजस्व के उछाल में सुधार करने के लिए, केंद्र और राज्य को अपने जीएसटी रेवेन्यू का छठा हिस्सा इन निकायों के साथ साझा किया जाना चाहिए.’

आरबीआई ने कहा कि शहरी नगर पालिकाओं के कम राजस्व का मतलब यह भी है कि उनकी ओर से दी जाने वाली सेवाओं पर भी असर पड़ा है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कुल मिलाकर, भारत में लोकल गवर्नेंस की संरचना के संस्थागत होने के बावजूद, नगर निगमों के कामकाज में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है. इसके चलते भारत में (शहरी) आबादी के लिए जरूरी सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता खराब बनी हुई है.’

तेजी से बढ़ रही शहरी आबादी का मतलब है कि शहर के बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय सुधार की जरूरत है और इसके लिए स्थानीय निकायों को ज्यादा से ज्यादा वित्तीय संसाधनों की जरूरत होगी. आरबीआई ने कहा कि यहां इनोवेटिव फायनेंसिंग मैकेनिज्म की आवश्यकता है.

वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोत

आरबीआई ने कहा है कि नगर पालिकाओं के पास वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों को अपनाने के कई तरीके हैं, जिसमें बैंकों से कर्ज लेना, बांड मार्किट फंड जुटाना और पूल फायनेंसिंग शामिल है, जहां कई स्थानीय निकायों के संसाधनों को एकत्रित करके, यूएलबी की कैपिटल मार्किट तक पहुंच को एक आम बांड के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हाल के समय में भारत में नगरपालिका बांड को फिर से जारी किया गया है. इससे नौ नगर पालिकाओं ने 2017-21 के दौरान लगभग 3,840 करोड़ रुपये जुटाए हैं’ ये नौ नगरपालिकाएं हैं: अहमदाबाद, आंध्र प्रदेश राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण, भोपाल, गाजियाबाद, ग्रेटर हैदराबाद, इंदौर, लखनऊ, पुणे और सूरत.

आरबीआई ने सुझाव दिया, ‘स्थानीय सरकारें भी नगरपालिका बांड जारी करके पूंजी बाजार का दोहन कर सकती हैं. उनकी तरफ से जारी किए गए जनरल ऑब्लिगेशन बॉन्ड किसी भी संपत्ति के जरिए सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन टैक्स रेजिडेंट्स से लेकर बॉन्ड होल्डर तक को भुगतान करने की शक्ति के साथ, उन्हें जारीकर्ता के ‘पूर्ण विश्वास और क्रेडिट’ का सहयोग मिला होता हैं.’

आरबीआई ने आगे कहा, ‘दूसरी ओर, राजस्व बांड एक खास प्रोजेक्ट जैसे हाइवे टोल या लीज फीस से होने वाली आय से जुड़े होते हैं. एक हाइब्रिड मकैनिज्म भी संभव है जिससे नगर निगम के सामान्य राजस्व का इस्तेमाल, यूजर चार्ज के अपर्याप्त होने की स्थिति में बोंड की सर्विस के लिए बैकअप के रूप में किया जाता है.’

इसके अलावा, आरबीआई ने कहा कि भारतीय नगर निगम चीन से सीख ले सकते हैं और फंड जुटाने के लिए स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी) बना सकते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘नगर निगम के स्पेशल पर्पज व्हीकल और राज्य के सामूहिक फाइनेंस संस्थानों के जरिए फाइनेंस के विकल्प को चुन सकते हैं. उदाहरण के लिए, चीन की लोकल गवर्मेंट फायनेंसिंग व्हीकल (LGFV) एक निवेश कंपनी है जो रिएल स्टेट डवलपमेंट और अन्य स्थानीय इंफ्रस्ट्राक्चल प्रोजेक्ट के फायनेंस के लिए बांड बाजारों में बॉन्ड बेचती है.’

आरबीआई ने आगाह किया कि जो भी समाधान चुना जाना है, उस पर तत्काल फैसला लिए जाने की जरूरत है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जैसे-जैसे भारतीय शहरों में बुनियादी ढांचे की मांग बढ़ती जा रही है, नगर निगमों को फिर से मजबूत करने और नगरपालिका बांडों के माध्यम से वैकल्पिक और टिकाऊ संसाधन जुटाने के तरीकों का पता लगाना चाहिए.’ इसमें आगे कहा गया, ‘मजबूत और प्रभावी विनियमन, अधिक पारदर्शिता और बेहतर शासन के जरिए वित्तीय निवेश के लिए माहौल में सुधार की नीतियां एक वाइब्रेंट नगरपालिका बांड बाजार को पोषित करने में मदद कर सकती हैं.’

आरबीआई ने कहा, स्टॉक एक्सचेंजों में म्युनिसिपल बॉन्ड को सूचीबद्ध करने से भारत में म्युनिसिपल बॉन्ड्स के लिए सेकेंडरी मार्केट का रास्ता खुल सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: भारतीय बैंक एक जाल में फंसते जा रहे हैं, महंगाई के साथ ऊंची ब्याज दरें बन रहीं हैं घातक


share & View comments