नयी दिल्ली, 28 अप्रैल (भाषा) निर्यातकों का शीर्ष निकाय फियो ने सोमवार को कहा कि चीन के उत्पादों पर अमेरिका में उच्च सीमा शुल्क लगाए जाने के बाद चीन में काम कर रही अमेरिकी कंपनियां और निर्यातक अमेरिका को माल की आपूर्ति करने के लिए भारतीय कंपनियों से संपर्क साध रहे हैं।
अमेरिका ने चीनी उत्पादों के आयात पर 145 प्रतिशत तक सीमा शुल्क लगा दिया है जिससे अमेरिका में चीन के उत्पादों की सीधी आपूर्ति काफी मुश्किल हो गई है। वहीं भारत के मामले में यह शुल्क सिर्फ 10 प्रतिशत है।
फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि चीन में सक्रिय अमेरिकी ‘सोर्सिंग’ कंपनी भारत से सामान खरीदने और उच्च शुल्क से बचने और अमेरिका को निर्यात करने के लिए राजनयिक माध्यम से घरेलू विनिर्माताओं के संपर्क में हैं।
सहाय ने कहा, ‘हमने एक बड़ी अमेरिकी कंपनी के साथ ऑनलाइन बैठक भी की। अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए गए उच्च आयात शुल्क के कारण भारतीय निर्यातकों के लिए निर्यात के बड़े अवसर हैं।’
इसके अलावा उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स, ‘हैंड टूल्स’ और घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण जैसे विभिन्न क्षेत्रों के चीनी विनिर्माता निर्यातक भी भारतीय व्यापारियों से संपर्क कर रहे हैं।
सहाय ने कहा, ‘चीनी कंपनी खुद को मिले निर्यात ऑर्डर भारतीय फर्मों को देने के लिए तैयार हैं, ताकि माल की खेप जारी रहे और अमेरिका के साथ उनके व्यापारिक संबंध बरकरार रहें।’
उन्होंने कहा कि इसके बदले में चीनी कंपनियां ऑर्डर को सुविधाजनक बनाने के लिए कमीशन शुल्क की मांग कर रही हैं। बड़ी संख्या में चीन की कंपनियां इन व्यावसायिक प्रस्तावों के साथ घरेलू निर्यातकों से संपर्क कर रही हैं।
सहाय ने कहा कि बीजिंग स्थित इन इकाइयों में से कई ने ग्वांगझू में चल रहे कैंटन व्यापार मेला में भारतीय कंपनियों से संपर्क किया है।
मुंबई स्थित निर्यातक और टेक्नोक्राफ्ट इंडस्ट्रीज लि. के संस्थापक चेयरमैन एस के सर्राफ ने कहा कि यह भारतीय निर्यातकों के लिए एक ‘बड़ा’ अवसर होगा।
सर्राफ ने कहा, ‘घरेलू कंपनियों को इन अवसरों का लाभ उठाने के लिए अपनी क्षमता बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। आगे चलकर, वे उन अमेरिकी खरीदारों के साथ सीधे संबंध बना सकते हैं।’
हालांकि उद्योग के एक विशेषज्ञ ने कहा कि चीनी कंपनियों के लिए भारत आना आसान नहीं होगा क्योंकि भारत ने चीन से आने वाले निवेश पर कुछ प्रतिबंध लगाए हुए हैं।
एक सरकारी आदेश के मुताबिक, भारत के साथ जमीनी सीमा साझा करने वाले देशों से आने वाले निवेश को अनिवार्य रूप से सरकार से मंजूरी लेनी होगी।
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