नयी दिल्ली, एक फरवरी (भाषा) बजट को निराशाजनक बताते हुए प्रमुख कृषि विशेषज्ञ देवेन्द्र शर्मा ने कहा कि बजट किसानों के हितों और उनकी आय दोगुनी करने के बारे में मौन है।
शर्मा ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘पिछले लगभग पांच सालों से किसानों की आय दोगुनी करने की बात जोर-शोर से कही जाती रही है कि वर्ष 2022 तक इस मंजिल को हासिल करने की सरकार की योजना है। लेकिन बजट में इस बहुप्रचारित ‘दावे’ पर चुप्पी साध ली गई है। कम से कम सरकार को यह बताना चाहिये था कि इस लक्ष्य को पाने की दिशा में और कितना समय लगेगा या कहां तक आगे बढ़ पाये हैं, आगे और कितना समय लगेगा और इस लक्ष्य को हासिल करने में क्या समस्या आ रही है।’’
उन्होंने कहा कि हमें किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद थी लेकिन इस बारे में बजट ने मौन धारणा किया हुआ है।
उन्होंने कहा कि हाल ही में दिल्ली में किसानों का जो लंबा आंदोलन चला उसके बाद सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एक समिति के गठन की बात की गई थी। बजट में सरकार को कम से कम उस समिति के बारे में उसके गठन की ही औपचाहिक घोषणा कर देनी चाहिये थी और बताना चाहिये था कि इस समिति की कितने दिन में रिपोर्ट आ जायेगी। लेकिन इस दिशा में भी कोई पहल नहीं की गई है।
उन्होंने कहा, ‘‘महामारी के इस बुरे वक्त में कृषि क्षेत्र ने न सिर्फ जीजिविषा को प्रदर्शित किया बल्कि अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी साबित हुआ। ऐसे में वक्त में सरकार को आगे बढ़कर किसानों की मदद करनी चाहिये थी। पीएम किसान सम्मान निधि के तहत उन्हें दी जाने वाले 6,000 रुपये की वित्तीय मदद को बढ़ाकर 12,000 रुपये सालाना करना चाहिये था और कृषि मजदूरों को भी 6,000 रुपये सालाना की वित्तीय मदद करनी चाहिये थी। तब शायद किसानों को लगता कि सरकार हमारी मदद के लिए आगे आई है।’’
उन्होंने कहा कि किसानों ने तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी रूप देने की मांग की थी। लेकिन देखा जाये तो कृषि के तमाम और मदों में कमी के अलावा एमएसपी की राशि को इस बजट में गेहूं धान के लिए 2.37 लाख करोड़ निर्धारित किया गया है जबकि पिछले साल एमएसपी के लिए आवंटन 2.48 लाख करोड़ था। अगर देखा जाये तो मनरेगा सहित तमाम मदों में कमी ही की गई है, तो फिर कृषि प्रणाली में जान फूंकने जैसा कोई प्रयास नहीं दिखता है।
उन्होंने कहा कि बजट में किसान ड्रोन की बात की गई है लेकिन क्या ड्रोन से किसानों की आय बढ़ जायेगी? देश में एक भी कोई ऐसा स्टार्टअप नहीं दिखता जो किसानों से एमएसपी पर उनकी पैदावार खरीद रहा हो तो फिर इन स्टार्टअप और आढ़तियों में क्या फर्क है?
उन्होंने कहा कि बजट में रसायन मुक्त खेती की बात की गई है लेकिन आवंटन तो बहुत कम है। से सारी बातें दर्शाती हैं कि कृषि सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं है।
भाषा राजेश
राजेश अजय
अजय
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.