नयी दिल्ली, सात फरवरी (भाषा) बजट 2022-23 में राजकोषीय मजबूती की योजनाओं पर स्पष्टता न होने और राजकोषीय घाटा बढ़ने से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एवं कर्ज अनुपात में गिरावट संबंधी पूर्वानुमान से जुड़ा जोखिम बढ़ गया है। फिच रेटिंग्स ने सोमवार को यह बात कही है।
वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने बयान में कहा कि नियोजित उच्च पूंजीगत व्यय किस स्तर तक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को समर्थन देता है और इन जोखिमों को कम करता है, वह सॉवरेन रेटिंग तय करने से जुड़ा एक अहम पहलू है।
फिच रेटिंग्स ने गत नवंबर में भारत की सॉवरेन रेटिंग को ‘बीबीबी-’ पर बरकरार रखते हुए कहा था कि ऋण वृद्धि के नकारात्मक स्तर पर बने रहने के जोखिम के चलते आर्थिक परिदृश्य नकारात्मक बना हुआ है।
फिच ने अपने बयान में कहा, ‘‘नए बजट में मध्यम अवधि वाली योजनाओं को लेकर स्पष्टता नहीं होने और राजकोषीय घाटा बढ़ने से सरकारी कर्ज एवं जीडीपी अनुपात में गिरावट आने संबंधी फिच रेटिंग्स के पूर्वानुमान का जोखिम बढ़ गया है।’’
फिच ने कहा कि एक फरवरी को पेश किए गए बजट 2022-23 में सरकार राजकोषीय मजबूती के बजाय वृद्धि को समर्थन देती हुई नजर आई। उसने कहा, ‘‘बजट में घाटे संबंधी जो लक्ष्य रखे गए हैं वे भारत की रेटिंग की पुष्टि के समय की हमारी अपेक्षा से थोड़े अधिक हैं।’’
बजट में कहा गया है कि वर्ष 2021-22 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.9 प्रतिशत रह सकता है। फिच ने इसके 6.6 प्रतिशत रहने का पूर्वानुमान जताया था।
इसके साथ ही वित्त वर्ष 2022-23 में भी राजकोषीय घाटे के 6.4 प्रतिशत रहने के पूर्वानुमान को भी फिच ने अपने अनुमान से अधिक बताया है। फिच रेटिंग्स ने अगले वित्त वर्ष में घाटा 6.1 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था।
फिच रेटिंग्स ने भारत की सॉवरेन रेटिंग से जु़ड़े परिदृश्य को जून, 2020 में स्थिर से घटाकर नकारात्मक कर दिया था।
भाषा
प्रेम अजय
अजय
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