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Friday, 22 November, 2024
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हमेशा पिछड़ने वाले बिहार ने इस बार रिकॉर्ड गेहूं खरीद से चौंकाया, यूपी का भी अच्छा प्रदर्शन

बिहार और यूपी जैसे राज्यों में गेहूं की रिकॉर्ड खरीद ने केंद्र सरकार को गेहूं खरीद लक्ष्य को संशोधित करने को बाध्य कर दिया है.

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नई दिल्ली: अमूमन अपने गेहूं खरीद लक्ष्य से काफी पीछे रह जाने वाले बिहार ने मौजूदा रबी गेहूं खरीद सीजन में असाधारण प्रदर्शन किया है.

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के आंकड़ों के अनुसार, 6 जून तक बिहार में इस सीजन में गेहूं की खरीद 2.31 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) तक पहुंच गई, जो पिछले साल के 4,494 मीट्रिक टन के आंकड़े के मुकाबले 50 गुना अधिक है.

अगर पूरे उत्पादन की बात छोड़ दें तो यह स्थिति ऐसे राज्य में नजर आई है जो पिछले साल अपने निर्धारित लक्ष्य (7 एलएमटी) की एक प्रतिशत भी खरीद नहीं कर पाया था. पिछले साल इसका अनुमानित उत्पादन 61 लाख मीट्रिक टन था.

सिर्फ बिहार ही नहीं, यहां तक कि गेहूं का अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश भी अपनी फसल के मामूली हिस्से की ही खरीद कर पाता है. यूपी ने भी इस बार अच्छा प्रदर्शन किया है.

Graphic: Soham Sen/ThePrint
ग्राफिक्स: सोहम सेन/दिप्रिंट

यूपी में पिछले रबी सीजन में 26.96 एलएमटी के मुकाबले इस बार खरीद 45.78 एलएमटी पहुंच गई है. यूपी में जारी गेहूं की खरीद हालिया वर्षों में तीसरी सबसे ज्यादा खरीद है.

भारत के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य ने पिछले साल 55 एलएमटी के अपने लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 65 प्रतिशत गेहूं—35.75 एलएमटी—की खरीद की थी. यह लक्ष्य राज्य में कुल 363 एलएमटी अनुमानित गेहूं उत्पादन का लगभग 15 प्रतिशत ही था.


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क्या कहते हैं अधिकारी

उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, बिहार ने भी खरीद सीजन के विस्तार के साथ अपना शुरुआती अनुमान बढ़ा दिया.

मंत्रालय के सचिव सुधांशु पांडे ने कहा कि बिहार ने इस साल अब तक का अपना सबसे बड़े गेहूं खरीद लक्ष्य हासिल कर लिया है और अब अपने अनुमान को संशोधित करके 7 एलएमटी गेहूं खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया है.

उन्होंने कहा, ‘यह राज्य ने 1 एलएमटी के प्रारंभिक गेहूं खरीद लक्ष्य में छह गुना से अधिक बढ़ाया है क्योंकि इसने मौजूदा खरीद सीजन की समयसीमा को भी 31 मई से बढ़ाकर 15 जून कर दिया है.’

बिहार में हमेशा से ही गेहूं की खरीद बहुत कम होती रही है.

2019-20 में भी राज्य ने केवल 3,000 टन की खरीद की, जो 2017-18 में की गई खरीद 17,504 टन की तुलना में एक बड़ी गिरावट थी. ये मात्रा बिहार में उत्पादित कुल गेहूं के एक प्रतिशत से भी कम थी.

बिहार खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के सचिव विनय कुमार ने कहा कि राज्य को इस साल ‘3 एलएमटी’ तक गेहूं खरीद और भविष्य में इसके बढ़कर 20 एलएमटी तक पहुंचने का भरोसा है.

विनय कुमार ने कहा, ‘हमने पिछले साल 35.5 एलएमटी धान भी खरीदा था जो एक रिकॉर्ड था. तब भी केंद्र ने हमें खरीद लक्ष्य को 30 एलएमटी से बढ़ाकर 45 एलएमटी करने की अनुमति दी थी, क्योंकि हमें उसकी तरफ से हमेशा पूरा समर्थन मिलता रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘हम यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसा कर रहे हैं कि राज्य में किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर लाभकारी मूल्य मिल सके और उन्हें दबाव में बिक्री न करनी पड़े. इसके अलावा, हम अपनी पीडीएस जरूरतें अपने राज्य के किसानों के खुद के उपजाए अनाज से पूरा करना चाहते हैं. अभी तक हमारे पास 8 महीने खाद्यान्न आपूर्ति के लिए स्टॉक है और हमें 4 महीने का पीडीएस खाद्यान्न अन्य राज्यों से लेना पड़ता है. लेकिन अगले साल से हम आत्मनिर्भर होंगे.’

उनके अनुसार, राज्य में भंडारण संबंधी मौजूदा बाध्यताओं को देखते हुए उचित मौका मिलते ही खाद्यान्य को पीडीएस में शिफ्ट कर दिया जाता है.

उन्होंने कहा, ‘राज्य खाद्य निगम के पास 7-8 साल पहले हमारे पास सिर्फ 3 एलएमटी भंडारण होता था. आज हमारे पास लगभग 15 एलएमटी स्टॉक है. सहकारी समितियों के पास भी अलग से 12 एलएमटी हैं. हम एफसीआई की पीईजी योजना जैसे पीपीपी मॉडल पर यह भंडारण और बढ़ाएंगे.

कुमार ने कहा, ‘इसके साथ ही सार्वजनिक गोदाम निर्माण चल रहा है. हम भविष्य में भंडारण को 25 एलएमटी तक बढ़ाने का लक्ष्य बना रहे हैं. भविष्य में हम यह सुनिश्चित करेंगे कि किसान अपनी तरफ से बेचे जाने वाले खाद्यान्न की अनुमानित मात्रा बता दें ताकि हम इसे हिसाब से स्लॉट निर्धारित कर सकें और उन्हें खरीद के लिए इंतजार न करना पड़े.’

बिहार में क्यों बढ़ रही खरीद

सचिव विनय कुमार के मुताबिक, इस साल रिकॉर्ड गेहूं खरीद के पीछे तीन प्रमुख कारण हैं.

उन्होंने कहा, ‘सबसे पहली बात तो सरकार के फैसले के तहत राज्य भर में सभी 8,500 किसान सहकारी समितियों, जैसे कि प्राथमिक कृषि ऋण समिति, को किसानों द्वारा लाए गए सभी खाद्यान्नों को खरीदने का निर्देश दिया गया था. दूसरे, इन समितियों को ऋण की सुविधा दी गई ताकि वह किसानों को उनकी फसल का पैसा अगले 48 घंटों में ट्रांसफर कर सकें.’

उन्होंने कहा, ‘यही नहीं पहली बार, सरकार ने यह फैसला भी किया कि किसानों को अपनी फसल सरकार को बेचने के लिए सहकारी वेबसाइटों पर भूमि रिकॉर्ड, भूमि रसीद जैसे कई पंजीकरण नहीं कराने होंगे. हमने विभिन्न योजनाओं के संबंध में कृषि मंत्रालय के लाभार्थियों से किसानों का मास्टर डाटाबेस हासिल किया और उसके अनुसार खरीद की.’

उन्होंने कहा कि कृषि विभाग में पंजीकृत कोई भी किसान किसी भी सहकारी निकाय को एमएसपी पर अपनी उपज बेच सकता है, उन्होंने कहा कि किसान अपने स्थानीय केंद्रों के साथ कोई समस्या होने पर एमएसपी पर अपनी उपज बेचने के लिए किसी भी सहकारी समिति से संपर्क कर सकते हैं.

अन्य राज्य भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे

बिहार के अलावा अमूमन पीछे रहने वाले अन्य राज्यों ने भी इस साल गेहूं की खरीद में नए स्तर को छुआ है, जिससे केंद्रीय खाद्य मंत्रालय को केंद्रीय खाद्य स्टॉक के लिए अब तक की सबसे अधिक गेहूं खरीद के बीच अपने वार्षिक खरीद लक्ष्य को संशोधित करने के लिए बाध्य होना पड़ा है.

सरकार ने मौजूदा गेहूं खरीद लक्ष्य को बढ़ाकर 433 लाख टन कर दिया है, जो पहले की तुलना में करीब छह लाख टन अधिक है. देश भर में अब तक 416 एलएमटी की खरीद एक नए रिकॉर्ड स्तर पर है, पूर्व में सबसे ज्यादा खरीद का रिडॉर्ड 389 एलएमटी रहा है.

Graphic: Ramandeep Kaur/ThePrint
ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

यह इसी अवधि की तुलना के लिहाज से 12 फीसदी अधिक है. 6 जून तक, लगभग 416 एलएमटी गेहूं की खरीद की गई है, जबकि पिछले साल 371 एलएमटी गेहूं की खरीद हुई थी.

जम्मू-कश्मीर में खरीद पिछले साल के 11 टन की तुलना में 19,993 टन तक पहुंच गई है. दिल्ली में खरीद महज 28 टन से कई गुना बढ़कर 5,955 टन हो गई है.

पंजाब और हरियाणा जैसे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों ने क्रमशः 15 मई और 25 मई तक अपना खरीद सीजन बंद कर दिया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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