नई दिल्ली: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले हफ्ते अमेरिका के साथ निकट भविष्य में किसी व्यापार करार की संभावना से इनकार करते हुए कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अभी किसी नए व्यापार समझौते पर विचार नहीं कर रही है.
हालांकि, उन्होंने निर्यातकों को आश्वस्त किया कि सरकार भारतीय निर्यातकों को बाजार में पहुंच देने के मुद्दों पर अमेरिका के साथ बात कर रही है.
दिप्रिंट आपको यहां बता रहा है कि अमेरिका इस समय भारत के साथ किसी व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने का इच्छुक क्यों नजर नहीं आ रहा है.
अमेरिका-भारत के बीच व्यापारिक रिश्ते
भारत पिछले साल अमेरिका के साथ एक मिनी ट्रेड डील को आगे बढ़ाने का इच्छुक था.
हालांकि, भारत ट्रम्प प्रशासन के अंतिम कुछ महीनों और बाइडन प्रशासन के कामकाज संभालने के पहले कुछ महीनों में ऐसा करने में विफल रहा. दरअसल, बाइडन प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि अन्य देशों के साथ नए मुक्त व्यापार समझौते करने में उसकी फिलहाल कोई दिलचस्पी नहीं है.
मिनी ट्रेड डील को मोटे तौर पर दोनों देशों के बीच व्यापक मुक्त व्यापार समझौते की दिशा में पहला कदम माना जा रहा था. व्यापार सौदे में भारत जहां अपने कुछ निर्यातों पर सामान्य वरीयता प्रणाली के तहत लाभ चाहता था और अपने ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग और कृषि उत्पादों के लिए बाजार में अधिक पहुंच की मांग कर रहा था, वहीं, अमेरिका अपने कृषि और डेयरी उत्पादों और विनिर्माण तथा प्रौद्योगिकी से संबंधित कुछ उत्पादों के लिए बाजार में व्यापक पहुंच के लिए सौदेबाजी कर रहा था.
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बाइडन प्रशासन का फोकस चीन पर
सूत्रों ने कहा कि जहां तक व्यापार की बात है तो बाइडन प्रशासन का मुख्य फोकस अब चीन पर है.
सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भारत के साथ कथित ‘मिनी ट्रेड डील’ को तो फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, लेकिन भारत और अमेरिका अब एक बार फिर से द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के लिए पारंपरिक रास्ते अपनाने पर विचार कर रहे हैं.
सूत्रों ने बताया कि दोनों पक्ष अब भारत-अमेरिका व्यापार नीति फोरम (टीपीएफ) की अगले दौर की बैठक के आयोजन की एक प्रारंभिक तिथि तय करने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं, जो 2017 के बाद से नहीं हो पाई है क्योंकि डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन मिनी ट्रेड डील के बाद एक मेगा भारत-अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता करने की दिशा में काम कर रहा था.
उन्होंने कहा कि संवाद का चैनल बनाए रखने के लिए वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई दोनों के बीच नियमित चर्चा होती रहती है ताकि निर्यातकों को किसी भी तरह की अड़चनों का सामना न करना पड़े.
भारत और अमेरिका के बीच जब भी बातचीत होगी तो कृषि, डिजिटल ट्रेड के साथ-साथ श्रम और पर्यावरण आदि क्षेत्रों से जुड़े व्यापार के मुद्दों पर ही फोकस होगा.
किन मुद्दों पर असहमति
व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि भारत-अमेरिका व्यापार करार पर बातचीत करना आसान नहीं होगा क्योंकि अमेरिका कुछ ऐसी कठिन मांगें सामने रख रहा है, जिन्हें मानने के लिए भारत तैयार नहीं है.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर बिश्वजीत धर ने कहा, ‘यदि आप दोनों देशों के बीच चर्चा का इतिहास देखें, तो अमेरिका बाजार तक पहुंच के मामले में कड़ी मांग कर रहा है. यह कृषि क्षेत्र में बाजार तक व्यापक पहुंच की मांग कर रहा है. लेकिन भारत के लिए यह बेहद संरक्षित क्षेत्र है. अमेरिका पेटेंट कानूनों और डाटा संरक्षण कानूनों में बदलाव के लिए भी बड़े पैमाने पर संशोधन की मांग कर रहा है, इन सभी बिंदुओं को लेकर ही अड़चनें बनी हुई हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यह तो एकदम स्पष्ट है कि भारत इन मांगों को पूरा नहीं कर सकता.’
उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका उन गिने-चुने देशों में से एक है जिनके साथ भारत का ट्रेड सरप्लस है. उन्होंने कहा, (पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति) ट्रम्प इसके बारे में खुलकर बात करते थे. अमेरिका का स्पष्ट मानना है कि अगर भारत बाजार में पहुंच के मामले में ज्यादा छूट नहीं देता है तो यह करार फायदेमंद नहीं है.’
अमेरिका के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस पिछले दो वर्षों में 17 बिलियन डॉलर की तुलना में 2020-21 में करीब 23 बिलियन डॉलर था. भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष में ट्रेड सरप्लस अब तक लगभग 5 बिलियन डॉलर है. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है लेकिन चीन के बाद इसका दूसरा सबसे बड़ा आयातक है.
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