नयी दिल्ली, 21 फरवरी (भाषा) जिन बैंकों ने तुलनात्मक रूप से ज्यादा हरित ऋण दिया है, उनकी वित्तीय स्थिरता में लंबे समय में सुधार होता है। भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), लखनऊ के शोध में यह बात सामने आई।
प्रतिष्ठित शोध पत्रिका ‘फाइनेंस रिसर्च लेटर्स’ में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि हरित परियोजनाओं को अधिक कर्ज देने से भारतीय बैंकों के ऋण पोर्टफोलियो में सुधार हो सकता है।
शोध निष्कर्ष भारतीय बैंकिंग प्रणाली में टिकाऊ उधार के रणनीतिक महत्व को रेखांकित करते हैं।
हरित वित्तपोषण के तहत कर्ज लेने वाले इस राशि का इस्तेमाल विशेष रूप से उन परियोजनाओं के लिए करते हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल हों।
आईआईएम लखनऊ के ओएनजीसी चेयर प्रोफेसर विकास श्रीवास्तव के अनुसार हरित वित्तपोषण के लिए एक समान ढांचा बनाने की वैश्विक पहल के बावजूद कई तरह की चुनौतियां हैं।
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ”ज्यादातर भारतीय बैंक कार्बन आधारित उद्योगों को कर्ज देने पर अत्यधिक निर्भर हैं, और उनके पास हरित परिसंपत्तियों की पहचान करने के लिए कोई स्पष्ट वर्गीकरण नहीं है।”
भाषा पाण्डेय रमण
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