नई दिल्ली: बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) के एक विश्लेषण से पता चलता है कि अगर सरकार अपनी सभी सूचीबद्ध कंपनियों पर नियंत्रण बनाए रखते हुए अपनी शेयरधारिता का विनिवेश करने का विकल्प चुनती है, तो वह लगभग 3.5 लाख करोड़ रुपये कमा सकती है.
विश्लेषण में यह माना गया कि सरकार अपनी सभी 53 सूचीबद्ध कंपनियों में न्यूनतम 51 प्रतिशत हिस्सेदारी बनाए रखेगी. विश्लेषण के मुताबिक, इन कंपनियों के नवीनतम बाजार पूंजीकरण को देखते हुए अगर सरकार इनमें से प्रत्येक कंपनी में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 51 प्रतिशत कर देती है, तो वह गैर-वित्तीय कंपनियों से 1.7 लाख करोड़ रुपये और बैंकों सहित 14 वित्तीय कंपनियों से 1.8 लाख करोड़ रुपये कमा सकती है. इस विश्लेषण की दिप्रिंट ने भी समीक्षा की है.
विश्लेषण में कहा गया है, ‘हम देख रहे हैं कि मौजूदा वित्त वर्ष में विनिवेश प्राप्तियां संशोधित लक्ष्य से भी काफी पीछे चल रही हैं. 50,000 करोड़ रुपये के FY23RE (2022-23 वित्तीय वर्ष के संशोधित अनुमान) की तुलना में, सरकार ने अब तक सिर्फ 31,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस संक्षिप्त विश्लेषण में हम उन संभावित संसाधनों को देख रहे हैं जिन्हें विनिवेश के जरिए एकत्रित किया जा सकता है. और ऐसा सरकार के सभी सार्वजनिक उपक्रमों में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हुए संभव है. इसमें वित्तीय क्षेत्र भी शामिल है.’
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि यह उस अधिकतम राशि के बारे में बताएगा, जो मौजूदा बाजार कीमतों पर सरकारी स्वामित्व की विचारधारा में किसी भी बदलाव के बिना जुटाई जा सकती है.
हालांकि रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि इन नंबरों को सावधानी के साथ देखा जाना चाहिए क्योंकि वे इन कंपनियों के क्षेत्रों की रणनीतिक और गैर-रणनीतिक प्रकृति को शामिल नहीं करते हैं.
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रणनीतिक और गैर-रणनीतिक क्षेत्रों का मुद्दा क्यों महत्वपूर्ण है
रणनीतिक और गैर-रणनीतिक क्षेत्रों का मुद्दा महत्वपूर्ण है क्योंकि, सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम नीति के अनुसार, सरकार उन क्षेत्रों में ‘न्यूनतम उपस्थिति’ बनाए रखेगी जिन्हें वह रणनीतिक मानती है, मसलन परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष एवं रक्षा, परिवहन और दूरसंचार, बिजली, पेट्रोलियम, कोयला और अन्य खनिज, साथ ही बैंकिंग, बीमा और वित्तीय सेवाएं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य सभी क्षेत्रों में, ‘केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) का निजीकरण किया जाएगा, अन्यथा बंद कर दिया जाएगा.’.
इस तरह विनिवेश से सरकार जो कमा सकती है, वह बैंक ऑफ बड़ौदा के विश्लेषण के अनुमान से कहीं अधिक है. क्योंकि बैंक सभी कंपनियों में न्यूनतम सरकारी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत मानकर चल रहा है, जबकि सरकार ने कहा है कि वह इनमें से कई में अपनी हिस्सेदारी को शून्य तक कम करने के लिए तैयार है.
बीओबी की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह तब है जब बाजार काफी ऊपर है (सेंसेक्स 60,000 से ऊपर). अगर बाजार में तेजी से सुधार होता है तो यह राशि घट सकती है और अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवित होने और भविष्य में तेज गति से बढ़ने पर यह संख्या और भी ऊपर जा सकती है.’
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: ऋषभ राज)
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