जीएसटी की सालगिरह के बाद नीति निर्माताओं का कहना है कि पिछले साल कर संग्रह बढ़ा है और प्रारंभिक समस्याओ को सुलझा लिया गया है।
नई दिल्ली: विवादास्पद वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) रविवार को अपना पहला जन्मदिन मनाएगा, इसके बारे में अच्छी ख़बरें हैं पर अभी कुछ बुरी खबरें भी हैं।
अच्छी खबर यह है कि नीति निर्माताओं ने कहा कि नई कर संरचना पर आधारित सबसे ज्वलंत मुद्दे, जो पिछले साल अधिकांश समय के लिए सुर्खियां बनाए हुए थे, उन सभी को हल कर लिया गया है।
इसके अलावा, स्वतंत्र भारत में सबसे बड़े वित्तीय सुधार के रूप में प्रस्तुत, जीएसटी के 1 जुलाई 2017 को मध्यरात्रि में प्रभावी होने के बाद से, पिछले साल कर कर संग्रह भी बढ़ा है।
बुरी खबर यह है कि अभी भी कर प्रकोष्ठ और फाइलिंग प्रक्रिया पर कुछ चिंताएं बनी हुई हैं।
2007 में पहली बार पेश किए गये जीएसटी के अंतर्गत कर के चार भाग हैं – 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत। हालांकि, खाद्य उत्पादों, समाचार पत्रों और यहाँ तक कि बिंदी और काजल सहित कई वस्तुएं हैं जो शून्य प्रतिशत कर आकर्षित करती हैं जबकि कच्चे सोने पर 3 प्रतिशत कर लगाया जाता है।
पेट्रोलियम उत्पाद और प्राकृतिक गैस भी जीएसटी की परिधि से बाहर हैं।
कई विशेषज्ञों और व्यापारियों ने तर्क दिया है कि विभिन्न कर दरों ने जीएसटी को बेकार बना दिया है, लेकिन फिर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने लॉन्च से पहले बताया था कि भारत जैसा देश में, इसके आकार और आबादी के साथ एकल दर जीएसटी नहीं लागू हो सकती है।
फिर कई वस्तुओं को 28 प्रतिशत के उच्चतम टैक्स ब्रैकेट से हटाने की मांग भी की गई है । वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि केंद्र मांगों के बारे में विचार कर रहा है लेकिन उनका समाधान जल्दबाजी में नहीं किया जा सकता है।
अधिकारी ने कहा, “इस मुद्दे पर ध्यान दिया जा रहा है लेकिन हमें इस पर गंभीरता से विचार करना होगा और किसी भी मामले में निर्णय जीएसटी परिषद द्वारा लिया जाएगा।”
विमानन टरबाइन ईंधन और प्राकृतिक गैस को भी जल्द से जल्द जीएसटी के दायरे में लाने की भी चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि, सूत्रों ने बताया है कि पेट्रोलियम उत्पादों और शराब को शामिल करने में कुछ समय लग सकता है।
अधिकारी ने बताया कि परिषद, कर रिटर्न दाखिल करने के मुद्दे पर भी विचार करेगा, जो मूल्यांकन के लिए चिंता का कारण रहा है। कर रिटर्न दाखिल करने की प्रणाली, जो वर्तमान में पूरी तरह से ऑनलाइन है, करदाताओं को, विशेष रूप से छोटी कंपनियों को मैन्युअल रूप से रिटर्न दाखिल करने की अनुमति देने के लिए संशोधित किया जा सकता है।
इसके अलावा, परिषद संभावित उपायों पर विचार करने के लिए तैयार है जिसे कर रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया को और सरल बनाने के लिए अपनाया जा सकता है।
लाभ
जीएसटी के कार्यान्वयन, जिसने अप्रत्यक्ष करों की एक विस्तृत श्रृंखला को कम कर दिया है, से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलने की आशा है। आर्थिक सर्वेक्षण ने चालू वित्त वर्ष के लिए 7-7.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है। सन् 2017-18 अवधि के दौरान, विकास दर 6.7 प्रतिशत है।
प्रारंभिक गड़बड़ियों के बाद जो की देरी, भ्रम और असहमति जैसी विशेषताओं की वजह से हुई थीं, नई कर प्रणाली में अब लगभग स्थिरता है। अप्रैल के लिए कर संग्रह 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया था और उत्तरी ब्लॉक के अधिकारी कर दाताओं को उम्मीद है कि यह आगे और भी बढ़ेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 55 लाख नए करदाता कर परिधि में आ चुके हैं और कई अन्य के जुड़ने की संभावना है।
केन्द्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) की अध्यक्षा वनाजा एन. सरना ने बताया है कि किसी भी नई संशोधित संरचना को स्थापित होने में समय लगता है।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ग्रुप के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांती घोष ने दिप्रिंट को बताया, “परेशान करने वाली समस्याएं स्वाभाविक थीं लेकिन तथ्य यह है कि हमारे द्वारा एक वर्ष के भीतर इसको स्थापित करने का प्रबंध करना अपने आप में एक उपलब्धि है।”
एक बुरी शुरूआत
जबकि प्रधानमंत्री ने जीएसटी को “गुड एंड सिंपल टैक्स” (अच्छा और साधारण कर) कहकर संदर्भित किया था, लेकिन कर स्लैब में लगातार परिवर्तन, प्रक्रियात्मक मानकों, जीएसटी नेटवर्क का समर्थन करने वाले पोर्टल में गड़बड़ी और धन को वापस करने (रिफंड) में होने वाली देरी तथा अनिश्चितता ने सरकार को परेशानियों में डाल दिया था।
सरकार ने मानवीय हस्तक्षेप को समाप्त करने और विसंगतियों को बाहर निकालने के लिए ऑनलाइन रिटर्न भरना अनिवार्य कर दिया था। लेकिन इसके कारण इसके अनुपालन की लागत में वृद्धि हुई थी।
इसका सबसे अधिक खराब प्रभाव जिसने महसूस किया था वह थे छोटे व्यापारी, जिनके पास कठोर प्रक्रियाओं और ऑनलाइन फाइलिंग का अनुपालन करने के लिए आवश्यक साधन नहीं थे। इसके अलावा, कुछ व्यापार ऐसे भी थे जिनकी स्थिति में अब भी नोटबंदी के बाद सुधार आ रहा था।
विशेषज्ञों का कहना है कि, पर्याप्त तैयारी के बिना जीएसटी के त्वरित कार्यान्वयन के कारण पहले कुछ महीनों में सकल (भारी) कुप्रबंधन हुआ था। नए तंत्र का क्रियान्वयन शुरूआती महीनों में व्यवसायों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए भारी अव्यवस्था (भ्रम) और परेशानी का कारण बना था।
इसके बाद, जीएसटी के नेटवर्क पोर्टल में होने वाली गड़बड़ी ने, जहाँ पर सभी व्यापारियों और व्यावसायिक इकाइयों को अपना रिटर्न भरना था, और भ्रम और परेशानी उत्पन्न कर दी। देश के निर्यातकों को भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उनके रिफंड (धनवापसी) में होने वाली देरी और अनिश्चितता ने उनके व्यापारों को काफी नुकसान पहुँचाया।
अन्य देशों में
हर देश में जीएसटी को लागू करने के अलग-अलग तरीके हैं। यूरोप में इसकी दो से चार दरें हैं, जो देश के आधार पर 18 से 27 प्रतिशत के बीच हैं।
दूसरी ओर संयुक्त अरब अमीरात में इसकी एकल दर 5 प्रतिशत है। मलेशिया ने 2015 में 6 प्रतिशत की एकल जीएसटी दर का कार्यान्वयन शुरू किया था लेकिन व्यापक विरोधों के बाद हाल ही में इस कर-संरचना को समाप्त कर दिया गया है।
Read in English: As GST turns one, there’s good news and still some bad news