नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ED) रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी पर कथित रूप से 14,000 करोड़ रुपये के लोन डायवर्जन की जांच में शिकंजा कस रहा है. इस मामले में दो मुख्य पहलू जांच के दायरे में हैं.
पहला एक कंपनी से जुड़ा है, जिसे अनिल अंबानी ने कथित तौर पर 2006 में बनाया था. इस कंपनी में रिलायंस ग्रुप के कर्मचारी डायरेक्टर और अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता थे. यह जानकारी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की जांच में सामने आई है. दूसरा पहलू यस बैंक द्वारा अपने पूर्व चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर राणा कपूर के कार्यकाल के दौरान दिए गए लोन से जुड़ा है.
अनिल अंबानी मंगलवार को ED मुख्यालय में जांच अधिकारी के सामने पेश हुए.
यह समन उस वक्त जारी किया गया जब ED ने देशभर में 35 ठिकानों पर छापेमारी की थी. ये छापे कथित तौर पर अनिल अंबानी से जुड़े परिसरों पर मारे गए थे. यह छानबीन मनी लॉन्ड्रिंग केस में की जा रही है जो यस बैंक द्वारा रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस लिमिटेड (RCFL) और रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड (RHFL) को दिए गए 3,500 करोड़ रुपये के लोन से जुड़ी है. ये दोनों कंपनियां रिलायंस ग्रुप की हैं, जिन्हें अनिल अंबानी नियंत्रित करते हैं.
इसके अलावा, रिलायंस ग्रुप की एक और बड़ी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) कार्रवाई कर सकती है क्योंकि भारतीय स्टेट बैंक ने कथित तौर पर इसके खाते को फ्रॉड घोषित किया है. इस संबंध में एजेंसी को शिकायत दी जा रही है.
अघोषित कंट्रोल्ड कंपनी
अनिल अंबानी को जिस मनी लॉन्ड्रिंग केस में पूछताछ के लिए बुलाया गया है, वह दो CBI जांचों से जुड़ा है जो सितंबर 2022 में शुरू हुई थीं. ये जांच बैंक प्रबंधन की शिकायत पर आधारित हैं जिसमें रिलायंस कंपनियों और राणा कपूर के बीच लेन-देन में ‘क्विड प्रोक्वो’ का आरोप है.
एजेंसी ने रिलायंस होम फाइनेंस, राणा कपूर और कुछ अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किया था. आरोप था कि यस बैंक ने 2017 से 2019 के बीच रिलायंस होम फाइनेंस (RHFL) की नॉन-कनवर्टिबल डिबेंचर्स (NCDs) में 2,965 करोड़ रुपये निवेश किए थे, जब राणा कपूर बैंक की इनवेस्टमेंट कमेटी के अध्यक्ष थे.
बाद में ये निवेश नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स घोषित किए गए, जिनकी रकम दिसंबर 2019 तक 1,353.50 करोड़ रुपये थी.
यस बैंक प्रबंधन ने आरोप लगाया कि फॉरेंसिक ऑडिट से सामने आया कि RHFL में ये निवेश तब हुआ जब बैंक ने राणा कपूर की पत्नी बिंदु कपूर की कंपनी RAB एंटरप्राइजेज और उसकी 100 फीसदी सहायक कंपनी ब्लिस हाउस को दो किस्तों में 60-60 करोड़ रुपये के लोन दिए थे.
इसी तरह, बैंक ने RCFL की NCDs में भी 2,045 करोड़ रुपये निवेश किए थे. बदले में RCFL ने RAB एंटरप्राइजेज और बिंदु कपूर की एक और कंपनी इमैजिन एस्टेट को दो किस्तों में 225-225 करोड़ रुपये के लोन दिए थे.
CBI की FIR के मुताबिक, राणा कपूर ने यस बैंक के RHFL और RCFL में निवेश से पहले ये लेन-देन बैंक को नहीं बताया था.
अधिकारियों के मुताबिक, बैंकों से लिए गए हजारों करोड़ रुपये के लोन, खासकर यस बैंक से लिए गए, एक अघोषित संबंधित पार्टी क्रेस्टा लॉजिस्टिक्स के माध्यम से डायवर्ट किए गए और अंततः अनिल अंबानी और उनके परिवार के सदस्यों तक पहुंचे.
दिप्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, ED की छापेमारी से पहले कई वित्तीय निगरानी एजेंसियों, जिनमें SEBI भी शामिल है, ने अनिल अंबानी और उनकी कंपनियों द्वारा कथित तौर पर लोन राशि की हेराफेरी के सबूत ED को सौंपे थे. इससे जांच को नई दिशा मिली.
SEBI ने रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर, क्रेस्टा लॉजिस्टिक्स और अनिल अंबानी द्वारा कथित रूप से कंपनी बनाकर बैंक लोन को डायवर्ट करने की जांच रिपोर्ट ED को सौंपी. ये लोन बाद में राइट ऑफ कर दिए गए, जिससे बैंकों, खासकर यस बैंक को नुकसान हुआ और रिलायंस को फायदा हुआ.
रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर द्वारा सौंपे गए ऑडिटेड स्टेटमेंट्स और वित्तीय रिकॉर्ड्स के मुताबिक, कंपनी का क्रेस्टा लॉजिस्टिक्स में एक्सपोजर 9,010 करोड़ रुपये था, जो 2022-23 तक बढ़कर 27,212 करोड़ रुपये हो गया.
SEBI की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2016-17 में क्रेस्टा लॉजिस्टिक्स का बकाया 9,825 करोड़ रुपये तक घटा दिया गया, जिसमें से 7,362 करोड़ रुपये केवल बुक एंट्री और प्रावधानों के जरिए राइट ऑफ कर दिए गए. ये राशि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर द्वारा क्रेस्टा को दिए गए लोन की वसूली से नहीं हुई थी.
SEBI ने अपनी जांच में पाया कि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर द्वारा दिए गए ज्यादातर इंटर-कॉर्पोरेट डिपॉजिट (ICD) और एडवांस क्रेस्टा लॉजिस्टिक्स को दिए गए थे. दिसंबर 2019 में इस कंपनी का नाम बदलकर CLE प्राइवेट लिमिटेड कर दिया गया.
SEBI को यह भी पता चला कि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने अपनी बैलेंस शीट में इन एडवांस से नुकसान की प्रोविजनिंग करने के बावजूद क्रेस्टा लॉजिस्टिक्स को एडवांस देना जारी रखा.
वित्त वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने 10,017 करोड़ रुपये राइट ऑफ किए, जबकि इन एडवांस की कोई वसूली नहीं हुई. SEBI की जांच के अनुसार ये राइट-ऑफ “बिना स्पष्टीकरण वाले अकाउंटिंग एडजस्टमेंट्स” के जरिए किए गए.
SEBI ने पाया कि कंपनी ने एक्सेल लॉजिस्टिक्स के साथ अपने संबंधों को अन्य कई कंपनियों के समान ही बनाए रखा जो इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन (EPC) सेवाएं देती हैं.
हालांकि कंपनी ने पिछले एक दशक में हजारों करोड़ रुपये के वित्तीय लेन-देन किए, फिर भी उसने कभी भी अपने वित्तीय विवरणों में CLE प्राइवेट लिमिटेड को एक संबंधित पक्ष के रूप में नहीं बताया.
हालांकि, SEBI की जांच में सामने आया कि रिलायंस HR सर्विसेज नाम की एक कंपनी CLE में सबसे बड़ी हिस्सेदारी 41.05 प्रतिशत रखती थी.
SEBI की जांच में यह भी पाया गया कि 2013 से 2018 के बीच जब यस बैंक ने कर्ज दिया, तब उसने CLE को अनिल अंबानी द्वारा नियंत्रित समूह की 100 प्रतिशत सहायक कंपनी माना. बैंक ने यह भी शर्त रखी कि जब तक कर्ज चुकता नहीं हो जाता, शेयरहोल्डिंग स्ट्रक्चर नहीं बदलेगा.
SEBI ने आगे पाया कि CLE के छह पूर्व निदेशक रिलायंस ग्रुप की एक या अधिक कंपनियों में भी समान पदों पर थे. इनमें माधुकर मूलवाणी भी शामिल थे, जो रिलायंस इंफ्रा के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर थे और 2003 से 2013 तक CLE के निदेशक थे.
SEBI ने मूलवाणी का यह बयान भी नोट किया कि उन्हें “रिलायंस इंफ्रा में उनकी नौकरी के कारण” CLE का निदेशक बनाया गया था और यह कंपनी अनिल अंबानी और उनके चुने हुए 15-20 लोगों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित होती थी.
SEBI ने निष्कर्ष निकाला कि CLE ने 11,217 करोड़ रुपये उन कई कंपनियों में निवेश किए, जो कथित रूप से अनिल अंबानी द्वारा नियंत्रित थीं और जिनमें वे और उनके परिवार के सदस्य सीधे लाभार्थी थे. हालांकि R Infra द्वारा CLE में एडवांस, प्रेफरेंस शेयर्स और डिबेंचर में किया गया निवेश, जिसे अंततः R Infra ने राइट ऑफ कर दिया, ऐसा निवेश का मुख्य स्रोत था, SEBI ने अपनी जांच में यह पाया.
SEBI ने कहा, “CLE ने इस संबंध में SEBI के बार-बार के समन का जवाब नहीं दिया और इन निवेशों या फंड के स्रोत पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया. इसी तरह, आर इंफ्रा ने भी CLE के बकाए पर किए गए अकाउंटिंग एडजस्टमेंट्स पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया, जिसके माध्यम से उसने CLE में 12,035 करोड़ रुपये से अधिक की राशि को बिना किसी पर्याप्त खुलासे के राइट डाउन कर दिया. न ही उन्होंने संबंधित पक्ष लेन-देन से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया. श्री अनिल अंबानी ने भी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया, जिनकी उपस्थिति लेन-देन की पूरी श्रृंखला में पाई गई है.”
SEBI ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा, “इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला गया कि उपरोक्त इकाइयां R Infra, एक सूचीबद्ध कंपनी, से अवैध रूप से फंड डायवर्जन की लाभार्थी थीं, जिसका अंतिम लाभ प्रमोटर को एक फंड मूवमेंट और अकाउंटिंग एडजस्टमेंट की योजना के जरिए मिला.”
SBI की शिकायत
SBI ने 23 जून को रिलायंस कम्युनिकेशंस को एक पत्र भेजा, जिसमें बताया गया कि उसने 13 जून को उसके लोन अकाउंट को संभावित फ्रॉड खाता के रूप में चिह्नित किया है.
यह पांच वर्षों में दूसरी बार था जब इस खाते को फ्रॉड घोषित किया गया. नवंबर 2020 में, SBI पहले ही इस खाते को फ्रॉड के रूप में चिन्हित कर चुका था और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को इसके बारे में अपने दिशा-निर्देशों के अनुसार सूचित कर चुका था.
हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद, जिसमें धोखाधड़ी के आरोपों वाले प्रमोटरों और कंपनियों की श्रेणी को लेकर दिशा-निर्देश दिए गए थे, बैंक ने फिर से यह प्रक्रिया शुरू की.
इस प्रक्रिया में, SBI प्रबंधन ने रिलायंस कम्युनिकेशंस और अनिल अंबानी को कारण बताओ नोटिस जारी किया और कंपनी के निदेशकों को फोरेंसिक रिपोर्ट भेजकर अपना पक्ष रखने को कहा.
अनिल अंबानी ने बैंक की फ्रॉड आइडेंटिफिकेशन कमेटी (FIC) के सामने अपना पक्ष रखा.
बैंक की FIC के अनुसार, रिलायंस कम्युनिकेशंस की पूर्व सहायक कंपनियां, रिलायंस इंफ्राटेल लिमिटेड (RITL) और रिलायंस टेलीकॉम लिमिटेड (RTL), बैंकों से कुल 31,580 करोड़ रुपये प्राप्त कर चुकी थीं, जिनमें से 13,667 करोड़ रुपये कर्ज चुकाने में इस्तेमाल हुए. इसके विपरीत, 12,692 करोड़ रुपये कथित रूप से जुड़ी हुई कंपनियों को दिए गए.
बैंक ने फरवरी 2017 में देना बैंक से 250 करोड़ रुपये के लोन का उदाहरण दिया, जो रिलायंस कम्युनिकेशंस को “शॉर्ट-टर्म कैश फ्लो मismatch और देनदारियों के भुगतान” के लिए दिया गया था.
बैंक का आरोप है कि रिलायंस कम्युनिकेशंस ने इस लोन को इंटर-कॉर्पोरेट डिपॉजिट (ICD) के रूप में अपनी सहायक कंपनी, रिलायंस कम्युनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (RCIL), को ट्रांसफर कर दिया, जबकि दावा किया गया कि यह रकम BNP Paribas बैंक का भुगतान करने में इस्तेमाल हुई.
बैंक ने आगे पाया कि NBFC इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी लिमिटेड (IIFCL) ने रिलायंस कम्युनिकेशंस को पूंजीगत खर्च के लिए 248 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे, जिसे RITL और RIEL नामक सहायक कंपनियों को क्रमशः 63 करोड़ और 77 करोड़ रुपये के रूप में ट्रांसफर कर दिया गया.
बैंक का यह भी आरोप है कि इंटर-कंपनी लोन ट्रांसफर के तहत रिलायंस कम्युनिकेशंस ने बैंकों से मिले लोन में से 783.77 करोड़ रुपये RTL और 1,435 करोड़ रुपये RITL को ट्रांसफर किए.
रिलायंस ग्रुप ने बैंक के सामने तर्क दिया कि रिलायंस कम्युनिकेशंस हमेशा एक समूह के रूप में काम करती थी, जिसमें ये सभी सहायक कंपनियां शामिल थीं. इसलिए, उनके खिलाफ इंटर-कंपनी ट्रांसफर का आरोप लागू नहीं होता.
बैंक समिति ने इसके विपरीत यह कहा कि इन कंपनियों ने सीधे ट्रांसफर नहीं किए, बल्कि एसोसिएट कंपनियों और अन्य सहायक कंपनियों के माध्यम से फंड ट्रांसफर किया गया, जिससे यह संदेह पैदा हुआ कि ये लेन-देन फर्जी थे और अकाउंट्स की किताबों में हेरफेर के माध्यम से किए गए ताकि फंड का गबन किया जा सके.
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने 22 जुलाई को लोकसभा में बताया कि रिलायंस कम्युनिकेशंस में SBI की लगभग 3,000 करोड़ रुपये की एक्सपोजर है. इसमें 26 अगस्त 2016 तक 2,227.64 करोड़ रुपये की बकाया मूल राशि, ब्याज और अन्य खर्च शामिल हैं, साथ ही 786.52 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी भी शामिल है.
उन्होंने आगे कहा, “24.06.2025 को बैंक ने इस धोखाधड़ी को RBI को रिपोर्ट किया है, और CBI में शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया में है.”
यह जानकारी उन्होंने लोकसभा में उस दिन दी, जब ED ने अनिल अंबानी से जुड़ी परिसरों पर छापेमारी शुरू की, जो चार दिन तक चली.