नई दिल्ली: लद्दाख में गतिरोध और गलवान घाटी की झड़प के बाद, चीनी चीज़ों का बहिष्कार करने की मांग के बावजूद, भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी चालू वित्त वर्ष में लगातार बढ़ी है, जिसमें कैमिकल्स, बिजली की मशीनें और मेडिकल उपकरण शामिल हैं.
2020-21 में अप्रैल-जुलाई के बीच, भारत के कुल आयात में, चीन की हिस्सेदारी बढ़कर 19 प्रतिशत हो गई है, जो पिछले साल इसी अवधि में 14 प्रतिशत थी.
वाणिज्य मंत्रालय के व्यापार आंकड़े बताते हैं, कि जुलाई में भी यही रुझान देखा गया, जब भारत के आयात में चीन की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत थी, जो पिछले साल इसी महीने के 15 प्रतिशत से अधिक थी. लॉकडाउन के दो महीने बाद, जुलाई में आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हुईं, जिससे आयात की मांग में इज़ाफा हुआ.
कुल मिलाकर, अप्रैल से जुलाई के बीच भारत के कुल आयात में, पिछले साल के मुक़ाबले, 48 प्रतिशत की गिरावट आई, लेकिन चीन से हुए आयात में ये गिरावट ज़्यादा धीमी थी- ये सिर्फ 29 प्रतिशत कम हुई.
अप्रैल से जुलाई के बीच चीन को भारत का निर्यात 31 प्रतिशत बढ़ा है, जिसका कुल मूल्य 7.3 अरब डॉलर्स है. कुल निर्यात में भी चीन की हिस्सेदारी, 4.5 प्रतिशत बिंदु बढ़कर 9.7 प्रतिशत हो गई. ये सभी आंकड़े एक साल पहले की तुलना में हैं.
जिन व्यापार विशेषज्ञों से दिप्रिंट ने बात की, उन्होंने कहा कि दवाओं की सक्रिय औषधि सामग्रियां, और बिजली उपकरणों जैसी चीज़ों के लिए, निकट भविष्य में भारत की चीन पर निर्भरता बनी रहेगी, हालांकि भारत खिलौनों और प्लास्टिक्स जैसी अनावश्यक चीज़ों का आयात कम कर सकता है.
कैमिकल्स, बिजली की मशीनों व उपकरणों में तेज़ी से वृद्धि
चीनी चीज़ों के बहिष्कार की मांग, जून में अपने चरम पर पहुंच गई, जब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प में, 20 भारतीय सैनिक मारे गए. स्वदेशी जागरण मंच और कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स, ये आवाज़ उठाने में अग्रणी रहे हैं.
लेकिन व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि जुलाई के डेटा में वो इंपोर्ट ऑर्डर्स भी शामिल हैं, जो पिछले महीनों में दिए गए थे, जब चीनी उत्पाद के बहिष्कार का शोर, उतना ज़्यादा नहीं था.
व्यापार के आंकड़े बताते हैं कि ऑर्गेनिक कैमिकल्स, बिजली की मशीन व उपकरण, साउण्ड रिकॉर्डर्स, मेडिकल उपकरण और फार्मास्यूटिकल्स उत्पाद का आयात जुलाई में ज़्यादा हुआ, जबकि खिलौनों, विस्फोटकों और प्लास्टिक्स का कम हुआ.
व्यापार मामलों में विशेषज्ञता रखने वाले, एपीजे-एसएलजी लॉ ऑफिसेज़ के प्रिंसिपल एवाइज़र टीएस विश्वनाथ ने कहा, “बिजली और मेडिकल उपकरण जैसे आइटम्स लंबे समय के लिए ख़रीदे जाते हैं, और जल्दी से इनका बदल ढूंढ पाना मुश्किल होता है. चीन से आयात में जल्दी से गिरावट नहीं दिखेगी, जब तक कि कंपनियों को प्रतियोगी दरों पर दूसरे स्रोत नहीं मिल जाते”.
विश्वनाथ ने कहा,’कुल मिलाकर आगे चलकर चीन से आयात में कमी आएगी. लेकिन उसमें समय लगेगा. सरकार घरेलू उधोगों को ऐसे ज़्यादातर उपकरणों बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. लेकिन ये एक दीर्घ-कालिक योजना हो सकती है. अगले एक साल में हमें बदलाव दिखने शुरू हो सकते हैं’.
चीन- अच्छा प्रदर्शन कर रही एकमात्र बड़ी अर्थव्यवस्था
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बिस्वजीत धर जैसे एक्सपर्ट्स ने कहा, कि डेटा को इस तरह भी समझा जा सकता है, कि चीन एकमात्र बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो फिलहाल बढ़ रही है.
अप्रैल-जून की अवधि में चीनी अर्थव्यवस्था में 3.2 प्रतिशत वृद्धि हुई, जबकि अमेरिका, युनाइटेड किंग्डम, जर्मनी और फ्रांस में ये क्रमश: 9.1 प्रतिशत, 20.1 प्रतिशत, 10.1 प्रतिशत और 18.9 प्रतिशत सिकुड़ गई, और उन देशों को महामारी और आर्थिक गतिविधियों पर उसके प्रभाव को क़ाबू पाने में, संघर्ष करते देखा गया.
भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे बुरी तरह प्रभावित होने वालों में थी, जो इस तिमाही में 23.9 प्रतिशत सिकुड़ गई.
धर ने कहा, ‘चीन से पूरी तरह अलग होना अत्यंत मुश्किल है. कुछ प्रमुख क्षेत्रों में भारत की चीन पर निर्भरता बनी रहेगी. जैसे कि एपीआईज़, जिनकी भारत के फार्मास्यूटिकल क्षेत्र को ज़रूरत होती है, आयात करनी पड़ती हैं’. उन्होंने आगे कहा कि खिलौनों और प्लास्टिक आइटम्स जैसी, ग़ैर-ज़रूरी चीज़ों पर निर्भरता को, आसानी से कम किया जा सकता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘भारत को चीन से अलग होने के लिए, दो चीज़ें होनी चाहिएं. आयात की जगह भारत को अपना घरेलू उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत है. ये तुरंत नहीं हो जाएगा. दूसरा रास्ता ये है कि दूसरे देशों में वैकल्पिक सप्लायर्स तलाश किए जाएं. वो भी मुश्किल साबित हो सकता है, क्योंकि चीनी वस्तुएं सस्ती होती हैं. भारतीय उपभोक्ता कम क़ीमत वाली चीज़ें चाहते हैं.’
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