नयी दिल्ली, नौ अगस्त (भाषा) केंद्रीय कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने शनिवार को देश की कृषि नीति में विशुद्ध उपयोगितावादी दृष्टिकोण की जगह नैतिक सिद्धांतों पर आधारित दृष्टिकोण अपना कर आमूलचूल परिवर्तन करने की वकालत की क्योंकि दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला यह देश खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण स्थिरता के बीच संतुलन बनाना चाहता है।
यहाँ एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र में बोलते हुए, चतुर्वेदी ने कहा कि भारत की हरित क्रांति उपयोगिता-केंद्रित तरीकों से प्रेरित थी, जिसमें पर्यावरण चिंताओं के स्थान पर उत्पादन को प्राथमिकता दी गई थी।
उन्होंने कहा, ‘‘जैसे-जैसे हम हरित क्रांति में आगे बढ़े, हम एक उपयोगितावादी अवधारणा के साथ आगे बढ़े। अब हमें उपयोगितावादी से नैतिक अवधारणा की ओर जाना होगा।’’ चतुर्वेदी ने यह बात, उन नैतिक ढाँचों का उल्लेख करते हुए कहा जो कार्यों का मूल्यांकन केवल उनके परिणामों के बजाय नैतिक नियमों के पालन के आधार पर करते हैं।
कृषि सचिव ने मौजूदा कृषि पद्धतियों पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या देश उत्पादन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अत्यधिक कीटनाशकों, सिंचाई और भूमिगत जल का उपयोग कर रहा है।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि नीतिगत बदलावों से ऐसी सतत उत्पादन पद्धतियाँ सुनिश्चित होनी चाहिए जो उत्पादकता के स्तर को बनाए रखते हुए पर्यावरण की रक्षा करें।
उन्होंने कहा, ‘‘नीतिगत पहलुओं में यह सुनिश्चित करना होगा कि हम उपयोगितावादी से कर्तव्यनिष्ठ अवधारणाओं की ओर बदलाव लाएँ ताकि उच्च उत्पादन और उत्पादकता प्राप्त करने के लिए ऐसी पद्धतियाँ अपनाएँ जो न केवल सतत उत्पादन और आजीविका सुनिश्चित करें बल्कि पर्यावरण की भी रक्षा करें।’’
पिछली शताब्दी के दौरान साठ के दशक में शुरू हुई भारत की हरित क्रांति ने उच्च उपज वाली फसल किस्मों, उर्वरक के बढ़ते उपयोग और सिंचाई के विस्तार के माध्यम से देश को खाद्यान्न की कमी वाले देश से एक प्रमुख कृषि उत्पादक देश में बदल दिया। इस पहल ने भारत को गेहूँ और चावल के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया।
चतुर्वेदी ने कहा कि जहाँ भारत दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के करीब है, वहीं तिलहन के क्षेत्र में भी देश इसी लक्ष्य की ओर काम कर रहा है, हालाँकि उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि विकसित की जा रही नई फसल किस्में इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेंगी।
कृषि सचिव ने ज़ोर देकर कहा कि खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ खेती महत्वपूर्ण मुद्दे हैं क्योंकि कृषि न केवल एक आर्थिक क्षेत्र है, बल्कि लाखों किसानों के लिए आजीविका का भी एक साधन है।
उन्होंने कहा, ‘‘खाद्य एवं पोषण सुरक्षा तथा सतत कृषि महत्वपूर्ण है, क्योंकि कृषि एक आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि आजीविका का अहम साधन है।’’ उन्होंने कहा कि नीतियों में कृषि क्षेत्र में लगे बड़े कार्यबल, विशेष रूप से छोटे किसानों पर विचार किया जाना चाहिए।
भाषा राजेश राजेश माधव
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