कोलकाता, 10 मई (भाषा) भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के एक शीर्ष अधिकारी ने शनिवार को कहा कि दिसंबर, 2024 तक दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में दाखिल होने से पहले 30,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया गया, जिसमें 13.78 लाख करोड़ रुपये की चूक शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि इससे साबित होता है कि आईबीसी के प्रावधानों ने देनदारों को संकट की स्थिति में जल्दी कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया है, जो उनके व्यवहार में सकारात्मक बदलाव दिखाता है।
आईबीबीआई के कार्यकारी निदेशक जितेश जॉन ने कहा, “ऋण अनुशासन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जिसमें 30,310 मामलों को स्वीकार किए जाने से पहले ही निपटा दिया गया है। इनमें दिसंबर, 2024 तक 13.78 लाख करोड़ रुपये की चूक शामिल थी।”
यहां उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) पूर्वी क्षेत्र द्वारा आईबीसी पर आयोजित आठवें वार्षिक सम्मेलन में जॉन ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ‘भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति 2023-24’ रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा विभिन्न चैनलों के माध्यम से वसूले गए 96,000 करोड़ रुपये में से 46,000 करोड़ रुपये आईबीसी के माध्यम से आए, जो इसकी केंद्रीय भूमिका को उजागर करता है।
उन्होंने कहा कि मार्च 2025 तक 1,194 कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रियाएं (सीआईआरपी) समाधान में पूरी हुईं, जिससे लेनदारों को 3.89 लाख करोड़ रुपये मिले। यह कुल दावों का लगभग 32 प्रतिशत है। समाधान योजनाओं के माध्यम से लेनदारों ने परिसमापन मूल्य का लगभग 170 प्रतिशत और उचित मूल्य का 93.36 प्रतिशत वसूल किया।
जॉन ने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि इनमें से लगभग 40 प्रतिशत सीआईआरपी में बंद हो चुकी कंपनियां शामिल थीं। उन्होंने कहा कि इन्हें भी आईबीसी के माध्यम से पुनर्जीवित किया गया, जिससे रोजगार सृजन में योगदान मिला।
ऐसे मामलों में, दावेदारों को परिसमापन मूल्य का 150.33 प्रतिशत और उनके स्वीकृत दावों का 18.96 प्रतिशत प्राप्त हुआ।
भाषा अनुराग पाण्डेय
पाण्डेय
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