नयी दिल्ली, 24 अप्रैल (भाषा) सरकार दूरसंचार स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए नीलामी को अहमियत देने के उच्चतम न्यायालय के फैसले में किसी भी तरह के बदलाव की कोशिश नहीं कर रही है। एक शीर्ष सूत्र ने बुधवार को यह बात कही।
उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2012 के अपने फैसले में दूरसंचार स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए नीलामी को ही माध्यम बनाने का निर्देश दिया था। हालांकि उपग्रह संचार और रक्षा जैसे विशिष्ट क्षेत्रों को इसके दायरे में नहीं रखा गया था।
सूत्र ने कहा कि सरकार ने पिछले साल 15 दिसंबर को शीर्ष अदालत में एक अर्जी दायर कर कुछ विशिष्ट क्षेत्रों को स्पेक्ट्रम आवंटन के संबंध में स्थिति स्पष्ट करने की गुहार लगाई थी। इसमें विशिष्ट उद्देश्यों वाले क्षेत्र जैसे उपग्रह संचार, रक्षा बलों और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों, मेट्रो या रेलवे संचालन के लिए नीलामी के बगैर स्पेक्ट्रम आवंटित करने को लेकर स्पष्टीकरण देने का आग्रह किया गया था।
याचिका दिसंबर के अंत में संसद में दूरसंचार विधेयक को पारित करने से पहले दायर की गई थी। यह याचिका सोमवार को सुनवाई के लिए रखी गई। नये विधेयक में 19 छूटें दी गयी हैं।
सूत्र ने अदालत के समक्ष याचिका आने के बाद उपजे विवाद को ‘बेमतलब’ बताते हुए कहा कि सरकार से 2जी फैसले को बदलने जैस सवाल किए जा रहे हैं। लेकिन तथ्य यह है कि दूरसंचार क्षेत्र में कई मुकदमों को देखते हुए पारदर्शिता बनाए रखने के लिए यह आवेदन दायर किया गया था। इसमें साफ किया गया था कि सरकार क्या करना चाहती है।
प्रशासनिक आवंटन मार्ग से एलन मस्क की स्टारलिंक, भारती एयरटेल के वनवेब और अमेजन की प्रोजेक्ट कुइपर जैसे अंतरिक्ष दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को काफी राहत मिल सकती है क्योंकि उन्हें नीलामी प्रक्रिया से गुजरे बिना स्पेक्ट्रम मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा।
दूरसंचार के लिए स्पेक्ट्रम की अगली नीलामी इस साल जून में होने वाली है।
सूत्र ने कहा कि इस मुद्दे पर सभी संबद्ध पक्षों से परामर्श किया गया लेकिन न्यायालय से परामर्श करने का कोई तरीका नहीं है। लिहाजा न्यायालय को सूचित करने तथा उसकी राय जानने को आवेदन दायर किया गया था।
आवेदन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हम न्यायालय के फैसले से सहमत हैं। इस बात से सहमत हैं कि स्पेक्ट्रम नीलामी सबसे अच्छा विकल्प है। लेकिन समुद्री, रक्षा और मेट्रो सुरक्षा आदि जैसे कुछ क्षेत्र हैं, जिनके बारे में चीजें स्पष्ट नहीं हैं। इसका उल्लेख संसद में पेश विधेयक में भी किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह अदालत को सूचित करने जैसा था, इसमें किसी फैसले को बदलने को लेकर आग्रह जैसी कोई बात नहीं थी।’’
सूत्र ने कहा, ‘‘यह ऐसा कुछ नहीं है जो सरकारें नियमित रूप से करती हैं। यह अदालत को साथ लेने के लिए एक गहन सोच-विचार के बाद उठाया गया कदम था क्योंकि यह एक बहुत ही विवादास्पद मुद्दा रहा है… पारदर्शिता सुनिश्चित करने और सभी संबद्ध पक्षों को शामिल करने के लिए यह आवश्यक था।’’
वर्ष 2007-08 में तत्कालीन सरकार ने पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटन जारी रखने की घोषणा की। इसका उपयोग मोबाइल फोन के लिए आवाज और ‘डेटा सिग्नल’ प्रसारित करने के लिए किया जाता है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने जुलाई 2008 के अपने फैसले में कहा था कि इस तरह के आवंटन के लिए इस्तेमाल की गई सितंबर 2007 की ‘कट-ऑफ’ तारीख अवैध थी।
कैग की नवंबर 2008 की रिपोर्ट में स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितताओं का हवाला दिया गया और सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपये तक के राजस्व नुकसान का अनुमान लगाया गया। इसके चलते तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा को इस्तीफा देना पड़ा था।
उच्चतम न्यायालय ने फरवरी 2012 में उस नीति के तहत जारी किए गए 122 लाइसेंस रद्द करने के साथ स्पेक्ट्रम की नीलामी करने का आदेश दिया था।
उसके बाद से ही दूरसंचार कंपनियों के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी की जा रही है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के लिए इसे प्रशासनिक रूप से (नीलामी के बिना) आवंटित किया गया है।
सूत्र ने कहा कि सभी पक्षों से बात करने के बाद समान अवसर का मुद्दा प्रमुखता से उभरकर सामने आया। इसके अलावा प्रशासनिक तौर पर दिए जाने वाले स्पेक्ट्रम की कीमत निर्धारण का मुद्दा भी उभरा।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने स्पष्ट रूप से कहा है कि दूरसंचार नियामक ट्राई एक ऐसी व्यवस्था लेकर आएगा जो बहुत पारदर्शी और निष्पक्ष होगी।’’
भाषा रमण प्रेम
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