नयी दिल्ली, 22 जुलाई (भाषा) संसद में सोमवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2023-24 में सरकारों को अपनी कुछ शक्तियों का त्याग करने का सुझाव देते हुए कहा गया है कि ऐसा करना ‘शासन करने वाले और शासित दोनों’ के लिए अच्छा होगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट से एक दिन पहले लोकसभा में आर्थिक समीक्षा 2023-24 पेश की। इसमें पिछले वित्त वर्ष का लेखा-जोखा पेश किया गया है।
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, आने वाली चुनौतियों पर विचार करते समय किसी को भी डरना नहीं चाहिए क्योंकि लोकतांत्रिक भारत का सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन एक उल्लेखनीय सफलता की कहानी है।
समीक्षा कहती है, ‘‘हमने एक लंबा सफर तय किया है। अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 1992-93 के लगभग 288 अरब डॉलर के स्तर से बढ़कर 2022-23 में 3.6 लाख करोड़ डॉलर हो गई।’’
लाइसेंसिंग, निरीक्षण और अनुपालन प्रावधानों की वजह से सरकार के सभी स्तर के कारोबार पर बोझ पड़ता है। हालांकि, पहले की तुलना में यह बोझ कम हुआ है।
आर्थिक समीक्षा कहती है, ‘‘जहां बोझ होना चाहिए, उसके सापेक्ष यह अभी भी बहुत अधिक है। इसका बोझ उनपर अधिक पड़ता है जो इसे उठाने में असमर्थ हैं – छोटे और मझोले उद्यम।’’
इसमें ईशोपनिषद की एक उक्ति का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि ‘सत्ता सरकारों की एक बेशकीमती संपत्ति है। वे कम-से-कम इसका कुछ हिस्सा छोड़ सकते हैं और शासक एवं शासित दोनों में इससे उपजे हल्केपन का आनंद ले सकते हैं।’
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, ‘‘भारतीय राज्य अपनी क्षमता को मुक्त कर सकता है और उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की अपनी क्षमता को बढ़ा सकता है जहां उसे अपनी पकड़ ढीली करनी है, जहां उसे ऐसा करने की जरूरत नहीं है।’’
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