नयी दिल्ली, 11 मई (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक समेत कई केंद्रीय बैंकों की तरफ से नीतिगत दरों में बढ़ोतरी किए जाने से अगले छह-आठ महीनों में मांग पर प्रतिकूल असर पड़ने के साथ पुनरुद्धार प्रक्रिया की गति भी धीमी होने का अंदेशा है।
सूत्रों ने बुधवार को कहा कि दुनिया के कई केंद्रीय बैंकों के नीतिगत दरें बढ़ाने से मांग पर असर पड़ेगा। इस तरह अभी तक महामारी-पूर्व के स्तर पर नहीं पहुंच पाई वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां बढ़ जाएंगी।
सूत्रों के मुताबिक पहले भी मुद्रास्फीति बढ़ने की वजह आपूर्ति से जुड़ी बाधाएं रही हैं। लेकिन पिछले कुछ महीनों में रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से आपूर्ति अवरोध बढ़ गए हैं।
सूत्रों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक समेत तमाम केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर अपनी अर्थव्यवस्थाओं में मांग कम करने जा रहे हैं। हालांकि सूत्रों को यह आशंका सता रही है कि नीतिगत दरें बढ़ाने से अर्थव्यवस्था में जो भी लंबित मांग मौजूद है वह भी चली जाएगी। इसके अलावा मुद्रास्फीति को मिल रहा थोड़ा बहुत समर्थन भी खत्म हो जाएगा।
रिजर्व बैंक ने गत चार मई को रेपो दर में 0.40 फीसदी की वृद्धि करते हुए इसे 4.40 फीसदी कर दिया है। इसी तरह अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने 0.50 फीसदी की तगड़ी वृद्धि की है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी बढ़ती मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए दरों में बढ़ोतरी की है।
भाषा प्रेम अजय
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