मुंबई, 18 अप्रैल (भाषा) देश में विदेशी मुद्रा भंडार के उच्च स्तर पर होने से विदेशों से कर्ज की लागत के साथ-साथ तथा कंपनियों के लिये जोखिम प्रबंधन की लागत भी कम हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के एक लेख में यह कहा गया है।
आरबीआई 2019 से विदेशी मुद्रा भंडार पर जोर दे रहा है और यह तीन सितंबर, 2021 को रिकॉर्ड 642.453 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यह दिसंबर, 2018 के मुकाबले दोगुना से अधिक है।
हालांकि मार्च, 2022 में विदेशी मुद्रा भंडार 14.272 अरब डॉलर घट गया। इसका कारण विकसित देशों में ब्याज दर बढ़ने और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण घरेलू बाजार से पूंजी निकासी है।
‘उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में विदेशी मुद्रा भंडार बफर: चालक, उद्देश्य और निहितार्थ’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में कहा गया है, ‘‘भारत के लिये विदेशी मुद्रा भंडार के उच्च स्तर को विदेशी उधारी के साथ-साथ जोखिम प्रबंधन की कम लागत के रूप में देखा जाता है।’’
इस लेख को आरबीआई के आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग के डी केशो राउत और दीपिका रावत ने लिखा है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि लेख में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और कोई जरूरी नहीं है कि उसके दृष्टिकोण के अनुरूप हों।
लेख के अनुसार हाल के वर्षों में भारत के मुद्रा भंडार में वृद्धि का कारण शुद्ध पूंजी प्रवाह के मुकाबले चालू खाता घाटे (सीएडी) का मामूली स्तर पर होना है।
इसके अनुसार यह मोटे तौर पर कोविड के बाद की अवधि में कुछ उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में देखी गई प्रवृत्ति के अनुरूप है। यह आंशिक तौर पर विकसित अर्थव्यवस्थाओं में काफी सस्ती मौद्रिक नीति का नतीजा है। इसके कारण अधिक रिटर्न की तलाश में वहां से पूंजी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में आई।
देश का चालू खाते का घाटा 2019-20 में उल्लेखनीय रूप से कम हुआ और 2020-21 में अधिशेष में रहा। दूसरी तरफ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ पूंजी खाते में इन दोनों साल अधिशेष की स्थिति रही।
भाषा
रमण अजय
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