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Saturday, 16 November, 2024
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सागरमाला कार्यक्रम के तहत 1,537 परियोजनाओं की पहचान

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नयी दिल्ली, छह मई (भाषा) केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने शुक्रवार को कहा कि सरकार ने सागरमाला कार्यक्रम के तहत 6.5 लाख करोड़ रुपये की 1,537 परियोजनाओं की पहचान की है।

केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने यह भी कहा कि सागरमाला कार्यक्रम के कारण ही प्रमुख बंदरगाहों पर कंटेनरों की उपलब्धता में लगने वाले समय में कमी आई है।

सोनोवाल ने राष्ट्रीय सागरमाला शीर्ष समिति (एनएसएसी) की बैठक की अध्यक्षता के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘सागरमाला कार्यक्रम के तहत लगभग 6.5 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर 1,537 परियोजनाओं की पहचान की गई है।’’

समिति की बैठक में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल, नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव समेत अन्य शामिल हुए।

सोनोवाल ने कहा कि तटीय जिलों के समग्र विकास के लिए 567 परियोजनाओं की पहचान की गई है। इसकी अनुमानित लागत 58,700 करोड़ रुपये है।

सागरमाला कार्यक्रम का उद्देश्य 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा और संभावित नौगम्य जलमार्गों की 14,500 किलोमीटर की क्षमता का उपयोग करके देश में आर्थिक विकास को गति देना है।

उन्होंने कहा कि बैठक में समिति ने सागरमाला कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा के साथ विभिन्न कार्यसूची पर विचार किये।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सागरमाला कार्यक्रम के तहत 5.5 लाख करोड़ रुपये की 802 करोड़ रुपये की परियोजनाएं हैं, जिन्हें 2035 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

सोनोवाल ने कहा, ‘‘इसमें से 99,281 करोड़ रुपये की 202 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। साथ ही पीपीपी (सार्वजनिक निजी भागीदारी) मॉडल के तहत 45,000 करोड़ रुपये की कुल 29 परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा किया जा चूका है। इससे राजकोष पर वित्तीय बोझ कम हुआ है।’’

केंद्रीय मंत्री के अनुसार 2.12 लाख करोड़ रुपये की 200 से अधिक परियोजनाओं पर काम चल रहा है और इनके दो साल में पूरा होने की उम्मीद है।

सोनोवाल ने कहा कि देश के प्रमुख बंदरगाहों पर कंटेनरों की उपलब्धता का औसत समय वित्त वर्ष 2021-22 में घटकर 27.22 घंटे रह गया, जो वित्त वर्ष 2014-15 में 35.21 घंटे का था।

इस दौरान केंद्रीय मंत्री गडकरी ने कहा कि भारत की ‘लॉजिस्टिक’ लागत वर्तमान में लगभग 14 से 16 प्रतिशत है, जबकि चीन की लगभग 8 प्रतिशत है। वहीं यूरोपीय देशों के मामले में यह 12 प्रतिशत है।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम अपनी ‘लॉजिस्टिक’ लागत को आठ प्रतिशत तक कम करते है, तो इससे आर्थिक वृद्धि को गति देने में मदद मिलेगी।’’

भाषा जतिन जतिन रमण

रमण

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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