नयी दिल्ली, 30 अप्रैल (भाषा) दिवाला कानून के कारण तनावग्रस्त परिसंपत्तियों का समाधान निकलने के बजाय परिसमापन अधिक होने को लेकर कुछ क्षेत्रों में उठ रही चिंताओं के बीच कंपनी मामलों के सचिव राजेश वर्मा ने शनिवार को कहा कि इस कानून के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए प्रारूप होना चाहिए।
वर्मा ने कहा कि ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) में किसी भी तरह की खामी को सुधारने के लिए सरकार और नियामक भारतीय ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) लागतार प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस कानून ने उधार देने वालों और लेने वालों, प्रवर्तकों और लेनदारों के बीच गतिशीलता में एक सांस्कृतिक बदलाव ला दिया है।
आईबीसी कानून वर्ष 2016 में लागू हुआ था और उसके बाद से इसमें अब तक छह संशोधन हो चुके हैं। इसके तहत तनावग्रस्त संपत्तियों के समयबद्ध एवं बाजार से जुड़े समाधान दिए जाते हैं।
वर्मा ने कहा, ‘‘कुछ आलोचाकों का कहना है कि आईबीसी से समाधान मिलने के बजाय परिसमापन की स्थिति ज्यादा बन रही है। दिवाला काननू के निष्कर्ष का पता लगाने के लिए अभी कोई प्रारूप नहीं है। आईबीसी की दिवाला रूपरेखा के प्रभाव का अध्ययन करना आवश्यक है और इसके गुण-दोष का पता लगाने के लिए विश्लेषण भी करना होगा।’
आईबीसी पर आयोजित दो-दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में वर्मा ने यह भी कहा कि आईबीसी के नतीजों को दर्ज करने वाले विश्व बैंक के कारोबार करने संबंधी संकेतकों को अब बंद कर दिया गया है।
इस मौके पर आईबीबीआई के अध्यक्ष रवि मित्तल ने कहा कि बड़ी संख्या में तनावग्रस्त संपत्तियां परिसमापन की स्थिति में जा रही हैं क्योंकि वे आईबीसी की प्रक्रिया में बहुत विलंब से आईं। उन्होंने कहा, ‘‘एक या दो महीने में हम देखेंगे कि परिसमापन के बजाय कर्ज समाधान को किस तरह बढ़ावा दिया जाए।’’
मित्तल ने कहा कि तनावग्रगस्त संपत्तियों को जल्द से जल्द आईबीसी की प्रक्रिया तले आ जाना चाहिए और कंपनी का कामकाज बंद करना (परिसमापन) अंतिम विकल्प होना चाहिए।
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