नई दिल्ली : बीते साल कर्जमाफी, पेंशन और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोत्तरी की मांग को लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन करने वाले किसान एक बार फिर इसकी तैयारी में हैं. 18 अक्टूबर को राष्ट्रीय किसान महासंघ का ेश के सभी जिला मुख्यालयों के बाहर विरोध प्रदर्शन करने और दिल्ली में धरना देने की तैयारी है. लेकिन इस बार किसानों का मुद्दा मुक्त व्यापार से जुड़ा हुआ है.
बीते हफ्ते थाईलैंड के बैंकाक में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) को लेकर नौवीं मंत्रिस्तरीय बैठक हुई थी. इसमें भारत की ओर से केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हिस्सा लिया था. यह अगले महीने बैंकॉक में होने वाली आसियान शिखर सम्मेलन से पहले होने वाली आखिरी बैठक है. बताया जाता है कि आरसीईपी को अंतिम रूपरेखा देने को लेकर संबंधित पक्षों के बीच विस्तृत चर्चा की गई.
At the 9th RCEP Ministerial Meeting met Isshu Sugawara, Minister of Economy, Trade and Investment of Japan.
Our two nations share common goals which can be used to further strengthen bilateral cooperation on the trade and investment front. pic.twitter.com/OkKbzaeYlJ
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) October 12, 2019
इससे पहले बीते गुरुवार को राष्ट्रीय किसान महासंघ ने नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी. इस बैठक में मध्य प्रदेश और कर्नाटक सहित 15 राज्यों के किसान नेता शामिल हुए थे. इसमें संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार शर्मा ‘कक्का जी’ ने हमें बताया कि आरसीईपी के विरोध में 18 अक्टूबर को देश के प्रत्येक जिला मुख्यालय में प्रदर्शन किया जाएगा और नई दिल्ली में धरना दिया जाएगा. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बंदरगाहों और हवाई अड्डों का घेराव किया जाएगा. इसके बाद दो नवंबर को राष्ट्रीय राजमार्गों (हाईवे) पर चक्का जाम किए जाने की भी योजना है.
वहीं, इंडियन ऑटोमोबिल मैन्युफैक्चरर्स ने भी कहा है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रस्तावित आरसीईपी के चलते इस क्षेत्र में लोगों को अपनी नौकरी न गंवानी पड़े. साथ ही, मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ पर भी बुरा असर न पड़े.
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उधर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबंधित स्वदेशी जागरण मंच ने भी इस पर अपना विरोध दर्ज किया है. इसके सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने बुधवार को एक ट्वीट कर कहा, ‘किसी भी उद्योग या कामगार से पूछिए. वे खुद को बाहर रखने की बात कहेंगे. डेयरी से लेकर ऑटोमोबिल, स्टील, केमिकल, टेलिकॉम से लेकर साइकिल उद्योग तक सभी आरसीईपी का विरोध कर रहे हैं. पॉवरलूम कारोबारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कपड़ा उद्योग को आरसीईपी से बाहर रखने की मांग की है.’
#NoRCEP Ask any industry, any worker, they would tell to keep them out. From dairy to automobile, steel, chemical, telecom, cycle every industry agitates RCEP. Powerloom workers ask PM Narendra Modi to keep textile sector out of RCEP https://t.co/uAE0KEBiZ0
— ASHWANI MAHAJAN (@ashwani_mahajan) October 16, 2019
विजयादशमी के मौके पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंधों में केंद्र सरकार के अधिक झुकने को लेकर चेताया है. उन्होंने कहा, ‘देश हमारी ताकत और शर्तों के आधार पर दुनिया के साथ व्यापारिक संबंधों का निर्माण और विस्तार करें.’
इतने बड़े पैमाने पर प्रस्तावित आरसीईपी का विरोध पहली बार देखा जा रहा है. इसकी बड़ी वजह अमेरिका के साथ ‘ट्रेड वॉर’ के बीच चीन का लगातार इस समझौते को आखिरी मंजिल तक पहुंचाने की कोशिश है. माना जा रहा है कि आरसीईपी के लागू होने पर चीन इस संघर्ष में अमेरिका पर बड़ी बढ़त हासिल कर सकता है. इसका कारण आरसीईपी में शामिल कुल 16 देशों की आबादी विश्व की कुल आबादी का आधा हिस्सा (करीब 350 करोड़) है. यानी यह एक चीन जैसे देश के लिए एक बड़ा बाजार है. इसके अलावा इनकी कुल जीडीपी भी करीब 50 ट्रिलियन डॉलर की है जो विश्व की कुल जीडीपी की 39 फीसदी है. वहीं, विश्व व्यापार में 30 फीसदी की हिस्सेदारी है.
प्रस्तावित आरसीईपी का विचार सबसे पहले साल 2012 के आसियान (10 दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का समूह) शिखर सम्मेलन में आया था. आसियान देशों में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम है. वहीं, चीन और भारत के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं. आरसीईपी के तहत इसके 16 सदस्य देशों के बीच आपसी कारोबार में 90 फीसदी वस्तुओं को टैरिफ (आयात शुल्क) से मुक्त किए जाने की बात कही गई है.
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माना जाता है कि यदि इन 16 देशों के बीच आरसीईपी को लेकर सहमति बनती है तो इससे वैश्विक कारोबारी जगत में बड़े बदलाव नज़र आ सकते हैं. साथ ही, इन देशों की अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा बदल सकती है. इसके तहत इन देशों के बीच करीब 90 फीसदी कारोबार टैरिफ (आयात शुल्क) मुक्त हो जाएगा. इन बदलावों को लेकर ही भारत में एक बड़ा तबका इस पर अपनी आशंकाएं जाहिर कर रहा है.
वहीं, आरसीईपी पर सक्रियता को देखते हुए कक्का जी ने मोदी सरकार पर कारपोरेट हितैषी होने का आरोप लगाया है. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सवाल के जवाब में बताया, ‘इसके दूरगामी असर को देखते हुए पहले की मनमोहन सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन अगर इसे देश में लागू किया जाता है तो इससे केवल बड़े कारोबारियों और चीन को फायदा होगा.’
किसानों और छोटे कारोबारियों के बीच आरसीईपी को लेकर पैदा हुए डर की वजह क्या है
क्या सच में इससे डरने की जरूरत है. इसके जवाब में कक्का जी का कहना कि इस प्रस्तावित आर्थिक समझौते के चलते किसानों के सामने करो या मरो की स्थिति पैदा हो गई है. ‘न्यूजीलैंड से बड़ी मात्रा में दूध आएगा. न्यूजीलैंड का जो किसान है वह 10,000 के आसपास है, जो गाय पालता है और दूध का व्यवसाय करता है. हमारे यहां 10 करोड़ लोग दूध के कारोबार से अपना परिवार चलाते हैं. ये बहुत गरीब किसान होते हैं. जैसे ही, दूध बाहर से आएगा, इससे जुड़े हुए किसान पूरी तरह से नष्ट हो जाएंगे. बचेंगे नहीं. इसके चलते पूरे देश में 12 से 15 रुपये प्रतिलीटर दूध के दाम गिर जाएंगे.
भारत को चीन से बढ़ने वाले खतरे की बात पर कक्का जी कहते हैं, ‘अभी जो आरसीईपी का समझौता होने वाला है, उसमें सबसे बड़ा खतरा चीन है. चीन भारत को चावल, गेंहूं तमाम चीजों से देश को लाद देगा. इससे पहले वह दीपावली के दिए से लेकर महिलाओं की बिंदी भी दे रहा है.’ इस किसान नेता की आशंकाओं की पुष्टि नरेश अग्रवाल की अध्यक्षता में वाणिज्य पर गठित संसदीय स्थायी समिति भी अपनी एक रिपोर्ट में करती है.
संसद में 26 जुलाई, 2018 को पेश की गई इस रिपोर्ट में चीन के साथ भारत के द्विपक्षीय व्यापार की स्थिति को सामने रखा गया था. इसमें कहा गया है कि भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय कारोबार साल 2007-08 में 28 बिलियन डॉलर का था. वहीं, 2017-18 में यह आंकड़ा बढ़कर 89.6 बिलियन डॉलर पहुंच गया. यानी 10 साल की अवधि में ही इसमें तिगुने से अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई.
वहीं, यदि आयात-निर्यात की बात करें तो स्थिति और अधिक साफ होती है. इस अवधि के दौरान चीन से आयात में 50 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई. वहीं, भारत से चीन को निर्यात में बढ़ोतरी का आंकड़ा केवल 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा. इस संसदीय समिति की रिपोर्ट की मानें तो भारत के कुल वैश्विक व्यापारिक घाटे में चीन की हिस्सेदारी 40 फीसदी है.
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इस रिपोर्ट में इस बात को भी दर्ज किया गया है कि कम कीमत में खराब गुणवत्ता वाली चीनी चीजों के चलते भारतीय असंगठित खुदरा क्षेत्र को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. संसदीय समिति ने सूक्ष्म, मध्यम और छोटे उद्योगों को इनसे उबारने के लिए पूरी तरह से तैयार आयातित चीजों पर अधिक और कच्चे सामाग्रियों पर कम कर लगाने की सिफारिश की.
समिति की रिपोर्ट में जिन क्षेत्रों पर चीनी वस्तुओं का सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की बात की गई है, उनमें फार्मा के अलावा साइकिल, सोलर उपकरण, कपड़े, पटाखे आदि हैं. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में आरसीईपी का भी जिक्र किया है. इसमें कहा गया है कि सरकार को इस समझौते को लेकर सावधानी रखनी चाहिए. ऐसे किसी प्रावधान पर सहमत नहीं होना चाहिए जिसका नुकसान हमारे उद्योग-धंधों को उठाना पड़े.
इसके अलावा एक बड़ा मुद्दा यूनियन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ न्यू वैराइटीज ऑफ प्लांट्स (यूपीओवी) का भी है. भारत ने इसके तहत उच्च स्तरीय सुरक्षा प्रावधानों को रद्द करने की बात कही थी. किसान नेताओं का कहना है कि इसके प्रावधान विश्व व्यापार संगठन के मानकों के अनुरूप नहीं है. यदि आरसीईपी के तहत यूपीओवी को भारत में भी लागू किया जाता है तो इसके चलते किसानों को बीज के संग्रहण और इसके इस्तेमाल को लेकर मिले अधिकार सीमित हो जाएंगे. वहीं, अंतरराष्ट्रीय बीज कंपनियों को इसका बड़ा फायदा मिलेगा.
वहीं, भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक केवी बिजू से पूछा गया कि क्या वो आरसीईपी के विरोध में छोटे कारोबारियों को भी साथ लेकर चलेंगे या यह केवल किसानों तक ही सीमित रहेगा?
इस पर उन्होंने कहा, ‘हमने ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) से बात की है. इसके अलावा अन्य ट्रेड यूनियनों से भी बात की जाएगी और उन्हें साथ लेकर चला जाएगा.’
साथ ही, उन्होंने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के इस दावे को भी खारिज किया कि सरकार ने आरसीईपी से जुड़े सभी स्टेकहोल्डरों से बात की है. इसके अलावा केवी वीजू ने मुक्त व्यापार समझौते से देश को कुछ भी हासिल नहीं होने की बात कही. उन्होंने कहा, ‘जापान के साथ हमारा फ्री ट्रेड एग्रीमेंट है. लेकिन क्या हमने जापान को एक किलोग्राम आम भी निर्यात किया है. उन्होंने रंग के चलते हमारे आम को आम मानने से ही इनकार कर दिया.’ केवी बीजू की मानें तो हमारे देश में जीएम खाद्यान्न पर रोक है लेकिन, विदेशों से ये बिना रोक-टोक के आ रहा है.
हालांकि, पीयूष गोयल की मानें तो यदि भारत इस समझौते से अलग होता है तो हम लोग एक बड़े व्यापारिक समूह से बाहर हो जाएंगे. उनका कहना था, ‘आरसीईपी देशों का कुल व्यापार 2.8 ट्रिलियन डॉलर का है. यदि भारत इससे बाहर रहता है तो यह हमारे लिए हितकारी होगा या हितों के खिलाफ जाएग.’ केंद्रीय मंत्री ने दावा किया कि आरसीईपी के चलते भारत में सस्ती चीनी चीजों की बाढ़ नहीं आ जाएगी.’
वहीं, बताया जाता है कि भारत आरसीईपी के तहत घरेलू उद्योगों और किसानों को राहत देने के लिए ‘ऑटो ट्रिगर मैकेनिज्म’ प्रावधान लागू करने पर जोर दे रहा है. इसके तहत यदि किसी सदस्य देश में तय सीमा से अधिक आयात होता है तो उसे इस पर लगाम लगाने का अधिकार होगा. इसके लिए उसे आयात पर सेफगार्ड ड्यूटी लगाने की छूट होगी.
लेकिन, कक्का जी का दावा है कि इस तरह के समझौते के चलते देश को नुकसान उठाना पड़ रहा है. इसके लिए वे कृषि उत्पाद के कारोबार का आंकड़ा देते हैं. कक्का जी बताते हैं, ‘साल 2013-14 में हमने 43.23 अरब डॉलर का निर्यात किया था, जो कि 2016-17 में घटकर 33.87 अरब डॉलर रह गया. इसके उलट हम 2013-14 में 15 अरब डॉलर का कृषि उत्पाद आयात करते थे, जो अब बढ़कर 25 अरब डॉलर हो गया.
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वहीं, केवी बीजू की मानें तो आरसीईपी इस वजह से चिंता बढ़ाने वाली है क्योंकि, इसके तहत जिन 15 देशों के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता होना है, उनमें सभी के साथ भारत व्यापारिक घाटे (कुल 100 अरब डॉलर से अधिक) यानी निर्यात से अधिक आयात से जूझ रहा है. उनका कहना है कि यह प्रस्तावित समझौता इस संकट को और बढ़ाने वाला ही साबित हो सकता है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)