( तस्वीर सहित )
(प्रदीप्त तापदार)
कोलकाता, सात अक्टूबर (भाषा) पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े उत्सव दुर्गा पूजा के इस वर्ष फीका रहने के आसार है, क्योंकि अगस्त में आरजी कर अस्पताल में एक महिला चिकित्सक से हुए बर्बर बलात्कार-हत्या की घटना को लेकर बढ़ते विरोध प्रदर्शनों के तहत उत्सव के बहिष्कार की मांग भी बढ़ रही है, जिससे कोलकाता में लोगों के उत्साह पर असर पड़ रहा है।
सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में नौ अगस्त को ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक की हत्या की घटना ने पूरे राज्य में भावनात्मक रूप से उथल-पुथल मचा दी है। शक्ति की प्रतीक देवी दुर्गा की पूजा और हकीकत में निरंतर गंभीर खतरों का सामना कर रहीं महिलाओं के संबंध में दो अलग अलग विरोधाभासों के कारण दुर्गा पूजा उत्सव का उत्साह फीका पड़ गया है।
कोलकाता इस त्रासदी से जूझ रहा है। यह शहर परंपरा और बदलाव के बीच शक्ति, रक्षा और न्याय की प्रतीक देवी दुर्गा की भक्ति तथा महिलाओं के साथ होने वाली दैनिक हिंसा एवं अन्याय की कठोर वास्तविकता के बीच फंसा हुआ है।
समाजशास्त्री प्रशांत रॉय ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि इस साल की दुर्गा पूजा आरजी कर घटना और विरोध प्रदर्शनों के कारण काफी फीकी रहेगी। कई लोग पूजा में भाग ले सकते हैं लेकिन वे त्योहार मनाने से बचना पसंद करेंगे। कई लोग पीड़िता और उसके परिवार से खुद को जोड़ सकते हैं, यही कारण है कि विरोध प्रदर्शन इतने स्वतःस्फूर्त ढंग से उभरे हैं।’’
इस घटना से पूरे राज्य में भावनात्मक आक्रोश फैल गया, विशेषकर पूर्वी महानगर में जहां लगभग 3,000 दुर्गा पूजाएं आयोजित की जाती हैं।
कई कोलकातावासियों के लिए इस वर्ष की दुर्गा पूजा महज एक त्योहार नहीं रहकर न्याय के लिए जारी संघर्ष का प्रतीक बन गई है, जिससे एक देवी की पूजा के महत्व पर चिंतन की आवश्यकता को बल मिलता है क्योंकि वास्तविक जीवन में देवी की प्रतीक महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं।
सरकारी कॉलेज के एक प्रोफेसर ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा, ‘‘शहर में ऐसे त्योहार कैसे मनाया जा सकता है जब एक तरफ तो देवी के नारीत्व का महिमामंडन किया जाता है, जबकि दूसरी ओर वास्तविक जीवन में पीड़ित महिलाओं को लेकर आंखें मूंद ली जाती हैं? इस साल, दुर्गा पूजा उत्सव महिलाओं की सुरक्षा और न्याय के बारे में व्यापक बातचीत का मंच भी हो सकता है। यह बातचीत बहुत समय से लंबित है।’’
दुर्गा पूजा के दिनों में कोलकाता आमतौर पर पूजा की तैयारियों से गुलजार रहता है, सड़कें पंडालों से सजी रहती हैं, रोशनी की जाती है और हवा त्योहारी व्यंजनों की खुशबू से भरी होती है, लेकिन इस साल एक सन्नाटा सा पसरा हुआ है जो अक्सर शहर भर में गूंजते ‘‘हमें न्याय चाहिए’’ के नारों से कुछ देर के लिए टूटता है।
सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘उत्सवों से दूर रहने के इस आह्वान का दुर्गा पूजा के दौरान अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ने की संभावना है, चाहे वह विभिन्न क्लबों के लिए विज्ञापन राजस्व हो या छोटे व्यापारी, खाद्य स्टॉल मालिक, स्ट्रीट फूड विक्रेता, ढोल बजाने वाले और सजावट करने वाले हों जो पूरे साल दुर्गा पूजा का इंतजार करते हैं।’’
हाथीबागान बाजार में कार्तिक बरुई नामक एक व्यापारी ने कहा, ‘‘यह साल पूर्व के साल की तरह तो नहीं रहने वाला है। हमारा पूजा का करीब 40 प्रतिशत माल अभी भी गोदाम में पड़ा है।’’
पश्चिम बंगाल में कई पूजा समितियों ने त्योहार के लिए राज्य सरकार के 85,000 रुपये के अनुदान को अस्वीकार कर दिया है, इसके बजाय चल रहे विरोध प्रदर्शनों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करने का विकल्प चुना है।
जूनियर डॉक्टर अनिकेत महतो ने कहा, “हम दुर्गा पूजा के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन हम उत्सव का हिस्सा नहीं होंगे क्योंकि हम अपने विरोध प्रदर्शन और आमरण अनशन के साथ सड़कों पर होंगे। हमारे लिए उत्सव में शामिल होना न्याय का मजाक होगा।’’
भाषा सुरभि मनीषा नरेश
नरेश
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