गुरुग्राम: ‘डंकी रूट’ सिर्फ ज़िंदगी में ही नहीं, बल्कि मौत के बाद रिश्तेदारों के लिए भी पीड़ा लेकर आता है, जो लोग अवैध रास्ते से अमेरिका जैसे देशों में पहुंचने के लिए महाद्वीप दर महाद्वीप पार करते हुए, अक्सर मैक्सिको से होकर गुज़रते हैं, उनके लिए यह सफर ही नहीं बल्कि वहां की ज़िंदगी भी बेहद कठिन होती है, न सही नौकरी होती है, न कागज़ात, और ऊपर से हमेशा डिपोर्ट किए जाने का डर—भले ही वे भारत में अपनी ज़मीन-जायदाद बेचकर ही क्यों न आए हों.
कई अवैध भारतीय प्रवासी वहां टिक ही नहीं पाते. कुछ दिल का दौरा पड़ने से मर जाते हैं, कुछ तनाव झेल न पाने पर आत्महत्या कर लेते हैं. कई हादसों और गोलीबारी में भी मारे गए हैं.
यहीं पर यारी इंटरनेशनल जैसी एनजीओ सामने आती है. यह एनजीओ क्राउडफंडिंग के जरिए पैसा जुटाती है और औपचारिकताएं पूरी करके मृतकों के शव भारत भेजती है. पिछले दो साल में इसने 55 शव वापस भेजे हैं.
इस एनजीओ की ताज़ा चुनौती हरियाणा के जींद के कपिल शर्मा का मामला था. वे अवैध रूप से अमेरिका गए थे और कैलिफोर्निया में एक स्टोर पर गार्ड की नौकरी कर रहे थे. 6 सितंबर को उन्होंने एक शख्स को स्टोर के बाहर खुले में पेशाब करने से रोका तो उस शख्स ने उन्हें गोली मार दी.
यारी इंटरनेशनल के प्रमुख डॉ. जसबीर सिंह लोहान, जो कैलिफोर्निया के सैन डिएगो में रहते हैं और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं, उन्होंने तुरंत मदद शुरू की. उन्होंने एक क्राउडफंडिंग लिंक साझा करते हुए लिखा—“मैं एक दुखद खबर साझा कर रहा हूं. कपिल शर्मा, सिर्फ 25 साल की उम्र में, अपने परिवार का सहारा बनने की कोशिश करते हुए, हमसे बहुत जल्दी छिन गए. हर एक दान उनके प्रियजनों के लिए बेहद मायने रखता है.”
शुक्रवार दोपहर (आईएसटी) तक इस प्लेटफॉर्म पर 30,235 डॉलर जुट चुके थे, जो 50,000 डॉलर के लक्ष्य का लगभग 60 प्रतिशत है. शव भारत भेजने की लागत निकालने के बाद बाकी पैसा कपिल के परिवार को भेजा जाएगा.

लेकिन कपिल अकेले नहीं हैं. डॉ. लोहान के मुताबिक, ऐसे युवाओं की लंबी सूची है जो अमेरिकन ड्रीम की तलाश में अपनी जान गंवा बैठे. इनमें से ज्यादातर अवैध प्रवासी 20 से 30 साल की उम्र के थे.
डॉ. लोहान ने दिप्रिंट को बताया, “ये लोग यहां आकर ट्रक चलाकर रोज़ 15-18 घंटे तक काम करते हैं ताकि ज़्यादा पैसे कमा सकें और भारत भेज सकें. तनाव के चलते कईयों को दिल का दौरा पड़ जाता है. कई आत्महत्या कर लेते हैं, क्योंकि हालात उनकी उम्मीदों से कहीं ज्यादा कठिन निकलते हैं. कई हादसों में भी जान गंवा बैठे.”
उनका कहना है कि ये घटनाएं तब और बढ़ गईं जब अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अवैध रूप से रह रहे लोगों को डिपोर्ट करने की प्रक्रिया शुरू की.
उन्होंने कहा, “पहले ही ये लोग लंबे समय तक काम कर खुद को थका रहे थे ताकि परिवार को पैसे भेज सकें और अब वे हर वक्त पकड़े जाने और भारत डिपोर्ट किए जाने के डर में जी रहे हैं.”
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कठिन ज़िंदगी
25 साल के रिंकू, हरियाणा के जींद जिले के अलेवा गांव के रहने वाले थे. तीन साल पहले वे डंकी रूट से अमेरिका गए. शुरुआत में उन्होंने एक स्टोर पर काम किया, फिर कैलिफोर्निया के फ्रैस्नो में ट्रक चलाने लगे और ज्यादा पैसे कमाने के लिए ओवरटाइम किया ताकि परिवार ने जो 35 लाख रुपये खर्च कर उन्हें बाहर भेजा था, वह चुका सकें, लेकिन 2 मई को रिंकू को दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई.
अंबाला के दुर्गा नगर के हरमंदीर सिंह सिर्फ 21 साल के थे और 2024 में अमेरिका गए थे. वे ओरेगन में रह रहे थे और उन्हें काम करने की अनुमति भी मिल गई थी, लेकिन 18 अगस्त को उन्हें भी हार्ट अटैक आया और मौत हो गई.
करनाल के रहने वाले 24 साल के आशीष मान 2023 में डंकी रूट से अमेरिका पहुंचे थे. वे ट्रक ड्राइवर का काम कर रहे थे. 25 अगस्त को उनका ट्रक कैलिफोर्निया राज्य में एक पेड़ से टकरा गया और मौके पर ही उनकी मौत हो गई.
जींद जिले के गोगरिया गांव के संदीप बूड़ा अपने परिवार की 20 एकड़ ज़मीन गिरवी रखकर, जिस पर 60 लाख रुपये का कर्ज़ लिया गया था, अमेरिका गए थे. 4 अगस्त को वे दोस्तों के साथ झील में नहाते समय डूब गए और उनकी मौत हो गई.
ये तो सिर्फ कुछ मामले हैं जिनसे यारी इंटरनेशनल को निपटना पड़ा है.
कैथल जिले के टेयोंथा गांव के अजय राणा के चचेरे भाई अरविंद, 22, को सितंबर 2023 में कैलिफोर्निया के एक स्टोर में गोली मार दी गई थी. यह मामला उन शुरुआती मामलों में था जिनमें परिवार ने मदद के लिए यारी इंटरनेशनल से संपर्क किया था. यह जानकारी डॉ. लोहान के बड़े भाई रणबीर लोहान ने दी, जो भारत में इन व्यवस्थाओं का समन्वय करते हैं.
दिप्रिंट से बातचीत में राणा ने बताया, “अरविंद डंकी रूट से अमेरिका गए थे. जाने से महज़ चार महीने पहले ही उन्होंने अपने परिवार की थोड़ी सी ज़मीन का एक एकड़ हिस्सा बेचकर खर्च उठाया था. उन्हें कैलिफोर्निया के एक स्टोर पर नौकरी मिली थी और परिवार उनके पहले वेतन से घर पैसे भेजने का इंतज़ार कर रहा था, लेकिन सबसे पहले उनकी मौत की खबर आई.”
अरविंद के पिता ईंट भट्ठे में ट्रैक्टर चलाकर गुजर-बसर करते हैं और परिवार के पास शव को भारत लाने की क्षमता नहीं थी. राणा ने कहा, “जब मैंने अमेरिका में अरविंद के जानने वालों से बात की तो किसी ने मुझे डॉ. जसबीर लोहान का नंबर दिया. वे सचमुच बहुत बड़ा काम कर रहे हैं. मैंने उनसे संपर्क किया तो उन्होंने तुरंत आश्वासन दिया कि वे शव को भारत भेजने में मदद करेंगे.”

डॉ. लोहान बताते हैं कि भारतीय युवा ज्यादातर पंजाब और हरियाणा से डंकी रूट से अमेरिका पहुंचने के लिए अपना घर और खेत बेच देते हैं या कर्ज़ लेते हैं. अमेरिका पहुंचते ही वे पेट्रोल पंप या स्टोर पर काम करना शुरू कर देते हैं और ओवरटाइम कर-करके कर्ज चुकाने की कोशिश करते हैं.
उन्होंने कहा, “इस दौरान वे महीने में करीब 3,000 डॉलर तक कमा लेते हैं और सिर्फ 300 डॉलर खर्च करते हैं क्योंकि वे 8-10 लड़कों के साथ एक कमरे में बेहद खराब हालात में रहते हैं. इसके अलावा वे शरण के लिए आवेदन भी करते हैं, जिसके लिए उन्हें वकील को करीब 11,000 डॉलर चुकाने पड़ते हैं.”
जैसे ही उन्हें वर्क परमिट मिलता है, वे तुरंत ट्रक ड्राइविंग करने लगते हैं और रोज़ाना 15 से 18 घंटे तक गाड़ी चलाते हैं, जिससे 8,000 से 10,000 डॉलर महीना कमा सकें. पैसे बचाने के लिए वे बहुत कम खाते हैं और जागे रहने के लिए लगातार कॉफी और एनर्जी ड्रिंक पीते रहते हैं. इससे उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है.
डॉ. लोहान ने कहा, “अमेरिका में ट्रक चलाना भारत जैसा नहीं है. यहां ट्रक 20 मीटर लंबे होते हैं और ये युवक उन्हें 110 से 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलाते हैं. इनके पास अमेरिका में ऐसे वाहन चलाने का अनुभव नहीं होता. जब हादसा होता है तो आमतौर पर घातक साबित होता है, न सिर्फ दूसरी गाड़ियों के लिए बल्कि ट्रक ड्राइवरों के लिए भी.”
शव की वापसी—एक मुश्किल प्रक्रिया
अवैध प्रवासी का शव अमेरिका से भारत लाना एक बेहद पेचीदा प्रक्रिया है. यह प्रक्रिया और भी कठिन हो जाती है जब मौत अस्वाभाविक होती है, जैसे कपिल शर्मा का मामला, जिनकी मौत हत्या (हॉमिसाइड) में हुई.
डॉ. लोहान ने दिप्रिंट को बताया, “सबसे पहले स्थानीय पुलिस और काउंटी स्तर के कोरोनर (मृत्यु जांच अधिकारी) की टीम जांच और इनक्वेस्ट करती है. अगर पुलिस को मामले के बड़े नतीजे दिखते हैं तो एफबीआई भी इसमें शामिल हो जाती है, जब पुलिस रिपोर्ट आ जाती है तो शव फ्यूनरल ऑफिस (अंत्येष्टि कार्यालय) में भेजा जाता है, जहां डेथ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन होता है. फिर मौत को स्टेट ऑफिस में दर्ज किया जाता है. उसके बाद काउंटी ऑफिस से नॉन-कॉन्टेजियस डिज़ीज़ सर्टिफिकेट (यानी शरीर पर कोई संक्रामक बीमारी नहीं है) लिया जाता है. इसके बाद फ्यूनरल ऑफिस शव को एम्बाम करता है (संरक्षित करने की प्रक्रिया) और एयरलाइंस की शर्तों के अनुसार कास्केट (ताबूत) में पैक किया जाता है.”
भारतीय दूतावास/कांसुलेट से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना भी ज़रूरी होता है. इसके बाद शव कार्गो फ्लाइट्स से भारत भेजा जाता है और कई बार सामान्य फ्लाइट्स के लगेज सेक्शन में भी लाया जाता है.
सभी खर्चों का भुगतान करने के बाद, यारी इंटरनेशनल क्राउडफंडिंग से बची हुई रकम मृतक के परिवार को ट्रांसफर कर देता है.
हरियाणा के रोहतक स्थित राज्य विश्वविद्यालय महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राजबीर सिंह पिछले साल अपनी पत्नी के साथ फ्रैस्नो सिटी गए थे. वहां उन्होंने उन युवाओं से मुलाकात की जो डंकी रूट से अमेरिका पहुंचे थे और यारी इंटरनेशनल का काम भी देखा.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हमें लगा कि यह एनजीओ कमाल का काम कर रहा है. सिर्फ परेशान हाल लोगों की मदद ही नहीं, बल्कि उनकी मानसिक सेहत का भी ध्यान रख रहा है और उन्हें काउंसलिंग देकर दूसरों को इस रास्ते पर चलने से रोकने की कोशिश कर रहा है.”
डॉ. सिंह की पत्नी शरणजीत कौर, जो रीहैबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया की चेयरपर्सन हैं, उन्होंने हरियाणा के युवाओं से पूछा कि वे अपनी जान जोखिम में डालकर और इतना पैसा खर्च कर अवैध तरीके से अमेरिका क्यों आते हैं.
उनमें से एक युवक ने जवाब दिया, “पहले गए लोगों ने जो पैसे घर भेजे थे, वही देखकर मेरे मन में भी लालच आया और मैं अमेरिका चला आया.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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