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न्यायपालिका पर दुबे की टिप्पणी: अवमानना ​​याचिका दायर करने के लिए न्यायालय की मंजूरी जरूरी नहीं

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नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक याचिकाकर्ता से कहा कि उसे शीर्ष अदालत और प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की आलोचना करने को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना ​​याचिका दायर करने के लिए पीठ की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

इस मामले का उल्लेख न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष किया गया।

याचिकाकर्ता के वकील ने दुबे की टिप्पणियों के बारे में हाल में आए एक समाचार का हवाला दिया और कहा कि वह अदालत की अनुमति से अवमानना ​​याचिका दायर करना चाहते हैं।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘आप इसे दायर करें। दायर करने के लिए आपको हमारी अनुमति की आवश्यकता नहीं है।’’

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को मामले में अटॉर्नी जनरल से मंजूरी लेनी होगी।

दुबे ने शनिवार को उच्चतम न्यायालय पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगर शीर्ष अदालत को कानून बनाना है तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।

उन्होंने प्रधान न्यायाधीश खन्ना पर भी निशाना साधा और उन्हें देश में ‘‘गृह युद्धों’’ के लिए जिम्मेदार ठहराया।

दुबे की टिप्पणी केंद्र द्वारा अदालत को दिए गए इस आश्वासन के बाद आई है कि वह वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कुछ विवादास्पद प्रावधानों को सुनवाई की अगली तारीख तक लागू नहीं करेगा। अदालत ने इन प्रावधानों पर सवाल उठाए थे।

बाद में वक्फ (संशोधन) अधिनियम मामले में एक वादी का प्रतिनिधित्व करने वाले उच्चतम न्यायालय के वकील अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को पत्र लिखकर दुबे के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने की सहमति का अनुरोध किया था।

याचिकाकर्ता के अनुसार, दुबे ने शीर्ष अदालत की ‘‘गरिमा को कम करने के उद्देश्य से बेहद निंदनीय’’ टिप्पणी की थी।

पत्र में कहा गया है, ‘‘मैं झारखंड के गोड्डा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सदस्य निशिकांत दुबे के खिलाफ आपराधिक अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू करने के लिए आपकी विनम्र सहमति का अनुरोध करते हुए न्यायालय अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 15(1)(बी) के तहत यह पत्र लिख रहा हूं। इसे उच्चतम न्यायालय की अवमानना ​​के लिए कार्यवाही को विनियमित करने के नियम, 1975 के नियम 3(सी) के साथ पढ़ा जाए। दुबे ने सार्वजनिक रूप से जो बयान दिए हैं, वे बेहद निंदनीय, भ्रामक हैं और इनका उद्देश्य माननीय उच्चतम न्यायालय की गरिमा और अधिकार को कमतर करना है।’’

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शनिवार को दुबे की उच्चतम न्यायालय की आलोचना वाली टिप्पणी से खुद को अलग कर लिया। पार्टी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने टिप्पणियों को उनका निजी विचार बताया।

उन्होंने लोकतंत्र के एक अविभाज्य अंग के रूप में न्यायपालिका के प्रति सत्तारूढ़ पार्टी के सम्मान की भी पुष्टि की।

नड्डा ने कहा कि उन्होंने पार्टी नेताओं को ऐसी टिप्पणियां नहीं करने का निर्देश दिया है।

भाषा सुरभि वैभव

वैभव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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