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Friday, 22 November, 2024
होमदेशडीयू के प्रोफेसर हनी बाबू की गिरफ्तारी के साथ, भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में अब कुल 4 शिक्षक हिरासत में

डीयू के प्रोफेसर हनी बाबू की गिरफ्तारी के साथ, भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में अब कुल 4 शिक्षक हिरासत में

हनी बाबू और 11 अन्य पर, एल्गर परिषद में शरीक होने का इल्ज़ाम है, जिसने कथित रूप से 1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़काई.

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नई दिल्ली: शुक्रवार को मुम्बई की एक विशेष अदालत ने, दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोशिएट प्रोफेसर हनी बाबू को, 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में, 21 अगस्त तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

ये मामला एक जनवरी 2018 को हुई हिंसा से जुड़ा है जिसमें कोरेगांव युद्ध के 200वें वर्षगांठ समारोह के बाद हुई हिंसा में, एक व्यक्ति मारा गया था और कई घायल हुए थे.

बाबू इस केस में गिरफ्तार होने वाले 12वें शख्स हैं, बाक़ी दूसरों में प्रमुख कार्यकर्ता और वकील शामिल हैं. सभी 12 लोगों पर एल्गार परिषद नाम के आयोजन में शरीक होने का आरोप है, जिसे दलित-आंबेडकर समर्थक समूहों ने, दो शताब्दी पूरे होने के एक दिन पहले आयोजित किया था. जांचकर्ताओं के अनुसार इस आयोजन में, भाषणों के ज़रिए हिंसा को ‘भड़काया’ गया था.

हनी बाबू के अलावा अन्य 11 पर विधि-विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) संशोधन विधेयक (यूएपीए) की, कड़ी धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं, और उन्हें प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) का सदस्य बताया गया है. वो कथित रूप से देश को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे थे, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने का एक षडयंत्र भी शामिल था.

बाबू चौथे शिक्षक हैं जो भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार हुए हैं- चारों ही मोदी सरकार के तीखे आलोचक रहे हैं.

बाबू की गिरफ्तारी के कुछ समय बाद ही, शिक्षक समुदाय से एक और मोदी आलोचक, डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद से दिल्ली पुलिस ने, फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के मामले में 3 घंटे से अधिक पूछताछ की और उन्होंने आरोप लगाया कि उनका फोन ज़ब्त कर लिया गया है. जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के बहुत से रिसर्च स्कॉलर्स को भी, गिरफ्तार करके दंगों के बारे में पूछताछ की गई है.

दिप्रिंट भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार, चार शिक्षकों पर प्रकाश डाल रहा है.


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सुधा भारद्वाज

भारद्वाज एक मशहूर मानवाधिकार वकील और दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में विज़िटिंग फैकल्टी हैं. उन्हें छत्तीसगढ़ में उनके काम के लिए जाना जाता है, जहां वो आदिवासियों के भूमि अधिकारों के लिए लड़ रही हैं.

वो फिलहाल मुम्बई की भायखला जेल में बंद हैं और उनके ऊपर देशद्रोह, विभिन्न धार्मिक गुटों के बीच वैमनस्य फैलाने, देश के खिलाफ जंग छेड़ने और हिंसा भड़काने के आरोप लगाए गए हैं. ख़राब स्वास्थ्य के आधार पर 10 जून को दायर उनकी ज़मानत याचिका, मुम्बई हाईकोर्ट में लंबित है.

2018 में उनकी गिरफ्तारी से पहले, भारद्वाज घाटबरा के ग्रामीणों के साथ काम कर रहीं थीं, क्योंकि सरकार ने ज़मीन पर सामुदायिक अधिकारों का उल्लंघन करते हुए, ग्रामीणों की सहमति के बिना, खनन कार्य के लिए उनकी ज़मीन अदानी ग्रुप को दे दी थी. 2013 में दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उनके काम का फोकस वो मामले थे, जिनमें सरकार ने आदिवासियों की सहमति लिए बिना, कॉरपोरेट्स को खनन के ठेके दे दिए थे.

आनंद तेलतुम्बडे़

तेलतुम्बडे गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं और जाति व्यवस्था पर दो दर्जन से अधिक किताबें लिख चुके हैं, जिसके वो मुखर आलोचक रहे हैं. वो खुले तौर से मोदी सरकार के आलोचक रहे हैं- 2017 में एक साहित्य समारोह में, तेलतुम्बडे ने मोदी सरकार को फासिस्ट करार दिया था.

उन्होंने कहा था, ‘बीजेपी सरकार जल्द ही भारत के लिए उससे भी अधिक ख़तरनाक साबित हो सकती है, जितना हिटलर के अधीन नाज़ी पार्टी जर्मनी के लिए थी’.

12 में से एक अभियुक्त के यहां से जांचकर्ताओं को ‘बरामद’ हुए एक पत्र में, पीएम मोदी की हत्या के षडयंत्र का ब्यौरा दिया गया था.

पत्र में ‘कॉमरेड आनंद’ का उल्लेख था, जिसके आधार पर तेलतुम्बडे़ पर आरोप लगाए गए हैं.

एनआईए ने उन पर एल्गार परिषद का कनवीनर होने का भी आरोप लगाया है, जिसके नतीजे में उनके दावे के अनुसार, भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई.

तेलतुम्बडे मुम्बई की तलोजा जेल में बंद हैं और 24 जुलाई को एनआईए कोर्ट ने उनकी ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज कर दी.

शोमा सेन

शोमा सेन एक मानवाधिकार कार्यकर्ता और नागपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. उनके कार्यों में इकॉनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के प्रकाशन शामिल हैं.

सेन ने बहुत निकटता से दलित महिलाओं के अधिकारों के लिए काम किया है, उनके संगठन ने मणिपुर और छत्तीसगढ़ में आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट के तहत, महिला अधिकारों से जुड़े तथ्य खोजने के मिशनों को अंजाम दिए.

भारद्वाज और तेलतुम्बडे की तरह, सेन पर भी यूएपीए के अंतर्गत आरोप लगाए गए हैं. 4 जुलाई को एनआईए की एक विशेष अदालत ने, स्वास्थ्य के आधार पर दायर उनकी जमानत याचिका ये कहते हुए ख़ारिज कर दी कि कुछ बीमारियां जमानत का आधार नहीं हो सकतीं. वो भी मुम्बई की भायखला जेल में बंद हैं.


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हनी बाबू

हनी बाबू दिल्ली यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी विभाग में एसोशिएट प्रोफेसर हैं. उन्हें 28 जुलाई को मुम्बई से गिरफ्तार किया गया था, जहां उन्हें डीयू के एक और गिरफ्तार शिक्षक, जीएन साईबाबा के केस में गवाही के लिए बुलाया गया था.

बाबू आरटीआई और सामाजिक लामबंदी के ज़रिए, डीयू में ओबीसीज़ को सीटें न मिलने के मामले उठाने के लिए जाने जाते हैं. वो उस डिफेंस कमिटी के भी सदस्य थे, जो डीयू में साईबाबा की रिहाई के लिए काम कर रही थी.

बाबू के घर सितम्बर 2019 में छापा पड़ा था और फिर उनकी गिरफ्तारी के एक हफ्ते से भी कम में, 2 अगस्त को भी पड़ा.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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