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Monday, 13 May, 2024
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कारगिल के नायक कर्नल वांगचुक ने कहा- भारत की सीमाओं को मजबूत करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत

महावीर चक्र प्राप्त करने वाले कर्नल (रि) सोनम वांगचुक, जिन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध लड़ा था, उनका कहना है कि सेना को एलएसी क्षेत्र में स्थानीय लद्दाखियों को तैनात करने को प्राथमिकता देनी चाहिए.

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लेह (लद्दाख): कारगिल युद्ध के नायक और महावीर चक्र से नवाज़े गए कर्नल (रि.) सोनम वांगचुक ने कहा कि भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर ढीला-ढाला रवैया नहीं रख सकता है. चीन और पाकिस्तान की संयुक्त ताकत के खिलाफ सीमाओं की रक्षा के लिए यह समय उचित समय है और इसके लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरुरत है.

उन्होंने कहा, ‘भारत और चीन के बीच यह एक अभूतपूर्व स्थिति है, जिसे 1962 के बाद से नहीं देखा गया था. हमें सभी चैनलों को खुला रखने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और सभी मोर्चों पर एक समाधान सुनिश्चित करने की जरूरत है.

वांगचुक दिप्रिंट से एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बात कर रहे थे. उन्होंने चार दशक से अधिक समय से भारत और चीन के बीच की सबसे खतरनाक झड़प पर बात की, जिसमें पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 दिन पहले 20 जवानों की मृत्यु हुई थी.

15 जून की झड़प के बारे में सरकार और सेना से आने वाले विरोधाभासी संस्करणों के बारे में पूछे जाने पर वांगचुक ने कहा कि कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि कोई घुसपैठ नहीं हुई है.

जबकि पीएम मोदी ने कहा था कि भारतीय क्षेत्र में कोई घुसपैठ नहीं हुई थी. लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह, जिन्होंने चीन के साथ वार्ता का नेतृत्व किया ने कहा कि पीएलए के सैनिकों को भारतीय क्षेत्र से बाहर जाने की जरूरत है.

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वांगचुक ने कहा, ‘सेना अराजनैतिक है. वे केवल वही करेंगे, जो सत्ता उन्हें करने के लिए कहती है. आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि पैंगोंग झील और गलवान घाटी में चीनी निर्माण हुआ है. सौभाग्य से, सरकार जो कह रही है उससे सेनाएं अछूती हैं और कमांडरों ने यह सुनिश्चित करने के लिए अपने मनोबल को बनाए रखा है कि वे काम पर ध्यान केंद्रित करें.

कर्नल वांगचुक कारगिल युद्ध में अपने कारनामों के लिए जाने जाते हैं. तब मेजर को, जून 1999 में पाकिस्तान से चोरबत ला दर्रे पर फिर से कब्जा करने का काम सौंपा गया. वांगचुक की टीम को लद्दाख स्काउट्स रेजिमेंट के स्नो टाइगर्स कहा जाता है, जिसे एलओसी पर चोरबत ला में पाकिस्तानी उपस्थिति का न केवल बैक प्रूफ मिला, बल्कि 14 दिनों के लिए दर्रे पर रहे.

डॉक्यूमेंट्री लायन ऑफ लद्दाख ने उनकी टीम की कार्रवाई का विवरण दिया गया है. बाद में उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनके अनुकरणीय साहस के लिए जिसने कारगिल में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जीत के लिए टोन सेट किया.

‘हमे किसी भी बिंदु पर हमारी सतर्कता को कम नहीं करना चाहिए’

वांगचुक ने जोर देकर कहा कि समय की जरूरत है कि पाकिस्तान और चीन दोनों की रणनीतियों को समझना है. विशेष रूप से क्योंकि वे हाथ मिला रहे हैं, हमारी सुरक्षा चिंताएं अपने आप बढ़ जाती हैं. हमें अपने उपकरणों को आधुनिक बनाने की जरूरत है. अपनी ताकतों को मजबूत करने के लिए प्रशिक्षण की जरुरत है. हम किसी भी बिंदु पर सीमाओं पर अपनी सतर्कता को काम नहीं कर सकते हैं.

सीमा पर अपनी ताकत बनाने के लिए वांगचुक ने कहा, स्थानीय चिंताओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. हमें सीमा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है. सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को आवाज दें और इन स्थानों को विकसित करें. हमारे सीमावर्ती गांव विकसित नहीं हुए हैं और वे चीनियों का मार झेल रहे हैं. चीनियों द्वारा उन्हें धमकाया जा रहा है. उनकी जमीन छीनी जा रही है और कोई उनकी बात नहीं सुन रहा है. हमें इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार के उच्चतम स्तरों तक सीधे स्थानीय चिंताओं को ले जाने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है.’

वांगचुक ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना को मजबूत करने के लिए स्थानीय लद्दाखियों को प्राथमिकता देना भी महत्वपूर्ण है.

लद्दाख के लोग इस इलाके को जानते हैं, वे बड़े होकर पहाड़ों में रहते हैं. मैदानी इलाकों से सैनिकों को पहुंचने में समय लगता है. उन्होंने कहा, ‘इसी तरह, जब लद्दाखियों को राजस्थान जैसी जगहों पर भेजा जाता है, तो उन्हें समायोजित करने में भी समय लगता है. एलएसी पर सतर्कता को मजबूत करने के लिए हमें यहां तैनात बलों में और लद्दाखियों की जरूरत है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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