नई दिल्ली : कॉलेज में प्रवेश की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए कट-ऑफ का आंकड़ा सबसे ज्यादा मायने रखता है. इस साल कोरोनोवायरस महामारी के कारण कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षाएं बाधित होने के कारण इसे लेकर चिंताएं और बढ़ गई हैं.
सीबीएसई और आईसीएसई को इसके कारण बाकी बची परीक्षाओं को रद्द करना करना पड़ा है और उन्होंने ऐलान किया है कि लॉकडाउन से पहले हो चुकी परीक्षाओं के आधार पर ही छात्रों की अंकतालिका तैयार करेंगे, कई लोगों की चिंता यह है कि क्या ये अंक कॉलेज, खासकर दिल्ली यूनिवर्सिटी ( डीयू) में प्रवेश के लिए कट-ऑफ के लिहाज से पर्याप्त होंगे.
डीयू के प्रोफेसरों का कहना है कि इस साल कट-ऑफ सामान्य से कम होने की संभावना नहीं है, क्योंकि उम्मीद है कि बोर्ड छात्रों को अंक देते समय पूरी उदारता बरतेगा.
महाराजा अग्रसेन कॉलेज में एडमिशन कमेटी के प्रभारी शिक्षक प्रो. सुबोध कुमार ने कहा, जहां तक सीबीएसई में 12वीं कक्षा के अंकों का सवाल है, मुझे नहीं लगता कि पिछले वर्षों की तुलना में इसमें कोई खास अंतर होगा. मैंने कुछ मूल्यांकनकर्ताओं से बात की है और उनका कहना है कि वह इस वर्ष ज्यादा उदारता अपनाने जा रहे हैं क्योंकि छात्रों को पहले से ही महामारी के कारण काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. यदि ऐसा रुख अपनाया जा रहा हो तो अंक पिछले वर्ष की तुलना में कम तो नहीं ही होंगे.
सबसे अधिक छात्रों का एडमिशन लेने वाले केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एक डीयू में कट-ऑफ को लेकर कड़ी प्रतिस्पर्धा सुर्खियों में रहती है. इस साल विश्वविद्यालय की अपने कॉलेजों में स्नातक स्तर पर 70,000 सीटों पर प्रवेश देने की तैयारी है.
डीयू में सबसे अधिक मांग वाले पाठ्यक्रमों, मसलन बी.कॉम, बीए अंग्रेजी और बीए अर्थशास्त्र आदि के लिए कट-ऑफ पिछले कुछ वर्षों में 98 प्रतिशत तक रही है.
कट-ऑफ का खेल
प्रवेश प्रक्रिया से जुड़े शिक्षक कहते हैं कि यह सिर्फ उदारता से अंक देने का मामला नहीं है बल्कि कट-ऑफ में ज्यादा बदलाव की उम्मीद इसलिए भी नहीं की जा सकती ताकि कॉलेजों में भीड़भाड़ से बचा जा सके.
प्रो. कुमार ने कहा, कट-ऑफ सीधे तौर पर 12वीं कक्षा के परिणामों से संबंधित है, हमें नहीं लगता कि इस वर्ष कोई बड़ा अंतर होगा. इसमें थोड़ी कमी आ सकती हैं, क्योंकि हमारी जानकारी में यह बात आ रही है कि कुछ राज्य बोर्ड इस वर्ष छात्रों को मूल्यांकन में कम अंक दे रहे हैं. दिल्ली से बाहर के कुछ छात्रों ने भी पढ़ने के लिए दिल्ली आने को लेकर आशंकाएं जताई हैं और इससे कट-ऑफ में थोड़ी कमी हो सकती है, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं होगी.
डीयू के रामजस कॉलेज में पढ़ाने वाले और प्रवेश प्रक्रिया से जुड़े रहे प्रोफेसर तनवीर एजाज ने कहा, कट-ऑफ पूरी तरह से इस पर निर्भर करेगा कि सीबीएसई किस तरह का रिजल्ट घोषित करता है, लेकिन मुझे पिछले वर्षों की तुलना में इस बार कोई बड़ा बदलाव होता नहीं दिख रहा है. यदि छात्रों के औसत अंकों में थोड़ी कमी रही तब भी कॉलेज कक्षाओं में ज्यादा भीड़ से बचने के लिए ऊंची कट-ऑफ घोषित कर सकते हैं.
हिंदू कॉलेज के एक और शिक्षक, जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते, ने भी एजाज की इस बात से सहमति जताई.
उन्होंने कहा, मुझे इस साल कट-ऑफ में ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं दिख रही नहीं देखा है, क्योंकि भले ही अंक कम हों, कॉलेज ओवर-एडमिशन से बचने के लिए अपने कट-ऑफ को ज्यादा रखना चाहते हैं.
2019-20 में, श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (एसआरसीसी) में बीकॉम के लिए कट-ऑफ 98.5 प्रतिशत था, हिंदू कॉलेज और हंसराज कॉलेज दोनों में यह 98.25 प्रतिशत, जबकि ज्यादातर अन्य कॉलेजों ने 98 से 92 के बीच कट-ऑफ रखा था. शीर्ष कॉलेजों में अंग्रेजी के लिए कट-ऑफ 97 प्रतिशत से 92 प्रतिशत के बीच रहा.
इससे पिछले साल (2018-2019), शीर्ष पाठ्यक्रमों में कट-ऑफ इसी तरह काफी ज्यादा था, कॉलेजों में बी.कॉम और अर्थशास्त्र जैसे पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए 98 प्रतिशत या इससे अधिक अंक जरूरी थे
साइंस और ह्यूमनिटी के कुछ पाठ्यक्रमों के लिए भी कट-ऑफ अधिक रहता रहा है. 2019 में हिंदू कॉलेज ने फिजिक्स में प्रवेश के लिए 98.33 प्रतिशत कट-ऑफ तय किया जो उस वर्ष विज्ञान विषय के लिए सबसे अधिक था. डीयू के ज्यादातर टॉप कॉलेज अपनी पूरी प्रवेश प्रक्रिया के दौरान 90 फीसदी से कम कट-ऑफ नहीं रखते हैं.
विश्वविद्यालय अभी इंतजार कर रहे
विश्वविद्यालय के अधिकारी फिलहाल नतीजे जारी होने का इंतजार कर रहे हैं और इसके बाद ही कुछ तय करेंगे.
डीयू में डीन, एडमिशन शोभा बगई ने कहा, हमें देखना होगा कि परिणाम कैसे आते हैं, अगर ये पिछले वर्षों की तुलना में बहुत अलग हुए तो हमें उसके हिसाब से ही कट-ऑफ पर काम करना होगा। अब तक हम देखो और इंतजार करो के मोड में हैं.
इस बीच, छात्र नई मूल्यांकन प्रक्रिया को लेकर आशंकित हैं. सीबीएसई और आईसीएसई ने एक ही तरह की मूल्यांकन प्रक्रिया अपनाने और छात्रों को लॉकडाउन से पहले हो चुकी परीक्षाओं के आधार पर अंक देने का फैसला किया है. हालांकि, राज्य इससे इतर रुख अपना सकते हैं.
पंजाब और मध्य प्रदेश में राज्य बोर्ड सीबीएसई की तर्ज पर ही मूल्यांकन प्रक्रिया अपना रहे हैं. पंजाब ने पहले ही नतीजे घोषित कर दिए हैं, जबकि एमपी में इस सप्ताह घोषित होने की उम्मीद है.
भोपाल में एक राज्य बोर्ड स्कूल में पढ़ने वाली धृति बेनीवाल ने कहा, एमपी बोर्ड जल्द ही परिणाम घोषित करने वाला है और मुझे अपने रिजल्ट को लेकर काफी घबराहट है. केवल कुछ विषयों की परीक्षा के आधार पर छात्रों का मूल्यांकन करना अनुचित लगता है. मैं तीन विषयों में अच्छी हो सकती हूं और दो अन्य में औसत…क्या होगा अगर मेरा मूल्यांकन औसत विषयों पर आधारित हो… इस साल नतीजों को लेकर बहुत ज्यादा आशंकाएं हैं.
दिल्ली के गुरु हरकिशन पब्लिक स्कूल के छात्र समर्थ पाठक भी इसी तरह चिंतित हैं. उन्होंने कहा, मैं इस साल डीयू या आईपी यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स (ऑनर्स) में प्रवेश लेना चाहता हूं और दोनों ही कट-ऑफ अंकों के आधार पर छात्रों का प्रवेश लेते हैं. मैं वास्तव में इस बात को लेकर चिंतित हूं कि परीक्षा परिणाम के लिए मूल्यांकन किस तरह किया जाएगा.
उत्तर प्रदेश में, लॉकडाउन लागू होने से पहले सभी परीक्षाएं संपन्न हो चुकी थीं और शनिवार को परिणाम भी घोषित कर दिए गए.
हालांकि, केरल और कर्नाटक में बाकी बची परीक्षाएं महामारी के बीच ही आयोजित की गई थी.
राज्यों ने परीक्षा मूल्यांकन रणनीति पर फैसला स्वतंत्र रूप से लिया है, और अगले महीने कॉलेज प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने के समय तक यह काम पूरा हो जाएगा.
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