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Friday, 22 November, 2024
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कुत्ते, बिल्लियों पर बैन: दिल्ली के IFS अपार्टमेंट के नियमों ने लोगों को घर छोड़ने पर किया मजबूर

कुछ फ्लैट-मालिकों ने मिलकर पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को पत्र लिखा था. जिसके बाद मेनका ने ‘प्रबंधन समिति से बात की थी’ लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

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नई दिल्लीराष्ट्रीय राजधानी में भारतीय विदेश सेवा के हाई प्रोफाइल पूर्व अधिकारियों के एक अपार्टमेंट परिसर में विवाद खड़ा हो गया है, क्योंकि कुछ निवासियों ने इसके प्रबंधन पर लॉकडाउन के दौरान पालतू जानवर रखने पर उन्हें परेशान करने का आरोप लगाया है. उन्हे इतना ज़्यादा परेशान किया गया कि अपने पेट्स को रखने के लिए, उनमें से कुछ सदस्य सोसाइटी छोड़कर जा रहे हैं.

पूर्वी दिल्ली के पॉश मयूर विहार 1 इलाक़े में आईएफएस अपार्टमेंट्स की प्रबंध समिति ने 2011 में तय किया था कि मकान मालिकों समेत किसी भी निवासी को नए पेट्स लाने की अनुमति नहीं दी जाएगी. हाउसिंग सोसाइटी नियमों में ये भी कहा गया कि ‘ऐसे किराएदारों को फ्लैट लेने की मंज़ूरी नहीं दी जाएगी, जो पेट्स लाने पर ज़ोर देंगे’.

इसके अलावा, फ्लैट किराए पर लेने के लिए भावी किराएदारों को मकान मालिक और मैनेजिंग कमेटी के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर दस्तख़त करने होंगे जिसमें उन्हें घोषित करना होगा ‘कि इन नियम-क़ायदों के संबंध में, मैं आईएफएस सीजीएचएस लि. की मैनेजिंग कमेटी के फैसलों का भी पालन करूंगा. मैं सोसाइटी द्वारा लिए गए इस फैसले से अवगत हूं, कि किसी भी किराएदार को कुत्ते या दूसरे पालतू जानवर को अंदर लाने की अनुमति नहीं है’.

ये नीति क़रीब एक दशक से चली आ रही है, लेकिन लॉकडाउन अवधि के दौरान पेट्स रखने पर, प्रबंधन समिति द्वारा कथित रूप से परेशान किए जाने के बाद पिछले कुछ महीनों में कई निवासियों को मजबूर होकर परिसर को छोड़ना पड़ा है.

उन्हीं में से ही एक थीं रितिका जैन जो तीन साल पहले आईएफएस अपार्टमेंट में आईं थीं. लॉकडाउन के दौरान जैन ने एक बिल्ली पालने का फैसला किया.

रितिका ने कहा, ‘उन्होंने (मैनेजिंग कमेटी) हमें तक़ाज़े भेजने शुरू कर दिए कि हम अपने पेट के साथ क्या करेंगे…हाल ही में, उन्होंने नीचे आकर और कड़ाई शुरू कर दी है. कुत्ते के विपरीत, किसी को पता भी नहीं चल पाता कि क्या किसी घर के अंदर बिल्ली मौजूद है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘ये वो समय है जब बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, और किसी पेट को रखना भावनात्मक रूप से बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है…किसी को उनसे अलग होने के लिए कहना असंवेदनशीलता है’.

एक पूर्व आईएफएस अधिकारी और प्रबंधन समिति के सचिव दिलीप सिन्हा ने दिप्रिंट से कहा, ‘हां, ये एक नियम है और ये नियम 2011 से चला आ रहा है. मैं बस इतना ही कह सकता हूं’. उन्होंने ये भी कहा कि वो भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के किसी नियम या हाईकोर्ट के फैसलों से ‘वाक़िफ़ नहीं हैं’ जिनमें रेज़िडेंट एसोसिएशन्स के पेट-विरोधी नीतियां बनाने पर प्रतिबंध लगाया गया है.

मैनेजिंग कमेटी के अध्यक्ष केएल अग्रवाल ने दिप्रिंट्स की कॉल्स का जवाब नहीं दिया.


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उत्पीड़न, घुटन महसूस हुई

आईएफएस अपार्टमेंट्स 210 अपार्टमेंट्स का एक परिसर है, जिसे आईएफएस अधिकारियों द्वारा गठित एक को-ऑपरेटिव सोसाइटी ने बनाया था. इसके निवासियों में रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी और अन्स पेशेवर लोग शामिल हैं और मयूर विहार 1 में इसे एक प्रमुख पता माना जाता है.

पेट्स रखने वाले निवासी भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के 2014 के एक सर्कुलर का हवाला देते हैं, जिसमें कहा गया था, ‘पेट्स पर पाबंदी लगाने या उनकी संख्या सीमित करने की कोशिश में, रेज़िडेंट्स वेल्फेयर एसोसिएशन्स और अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन्स भारत के नागरिकों को गारंटी की गई मौलिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करते हैं’.

लेकिन ऐसा लगता है कि वो सर्कुलर सोसाइटी की प्रबंधन समिति को अपने ख़ुद के नियम लागू करने से नहीं रोक पाया है.

एक पूर्व निवासी और वकील अज़मत अमानुल्लाह ने कहा, ‘मैंने एडब्लूबी (पशु कल्याण बोर्ड) के सर्कुलर का हवाला देते हुए एक रेप्रेज़ेंटेशन दिया कि ये नियम कितने ग़ैर-क़ानूनी हैं लेकिन उससे कुछ नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि कोर्ट का कोई निर्देश नहीं है’.

वसुधा मेहता जो एक वकील हैं और अपने पति और दो बच्चों के साथ 2014 से रह रही हैं. अब इस घर को छोड़कर जा रही हैं जिसे उनके परिवार ने 2016 में खरीदा था. उन्होंने कहा कि उनके इस क़दम को उठाने का ‘एक प्रमुख कारण’ पेट-विरोधी नीति है.

उन्होंने कहा, ‘हम पहले किराएदार के तौर पर 2014 में यहां आए, और बाद में एक फ्लैट ख़रीद लिया. उस समय बिना कुछ सोचे हमने हलफनामे पर दस्तख़त कर दिए, चूंकि तब हमारे पास पेट्स नहीं थे. लेकिन लॉकडाउन के दौरान बच्चों के घर में होने की वजह से उनका मानसिक तनाव कम करने के लिए हमने एक पेट लाने का फैसला किया. बिल्डिंग की प्रबंधन समिति ने हमें परेशान करना शुरू कर दिया और वो हलफनामा निकालकर दिखाया जिसपर हमने साइन किए थे, फिर वो हमें नोटिस भेजते रहे’

परिसर में ‘कुत्ते का मल’ पाए जाने पर, 29 अगस्त 2020 को प्रबंधन समिति ने एक नोटिस जारी किया, जिसमें ज़ोर देकर कहा गया ‘निवासी कृपया परिसर के अंदर कोई नया कुत्ता न लाएं, कुत्ता मालिकों से अनुरोध है कि दूसरे निवासियों की भावनाओं का ख़याल रखें, और परिसर को साफ रखने की ज़रूरत का सम्मान करें’.

बिल्डिंग के एक और निवासी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि अगस्त 2020 में कुछ फ्लैट-मालिकों ने मिलकर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्त्ता मेनका गांधी को पत्र लिखा था. उसके जवाब में गांधी ने ‘प्रबंधन समिति से बात की थी’ लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

फ्लैट मालिक ने कहा, ‘अतीत में लोगों के पास कुत्ते और बिल्ली रहे हैं और ये कोई मसला नहीं रहा. ये नियम 2011 में बनाया गया और 2014 में इसे हलफनामे में शामिल किया गया. लेकिन प्रबंधन समिति में हुए एक बदलाव के बाद, हाल ही के सालों में ऐसा हुआ है कि उन्होंने वास्तव में नियमों को लागू करना शुरू कर दिया है. हमारे मेनका गांधी से संपर्क करने के बाद भी कमेटी सख़्ती से अपने रुख़ पर डटी रही’.

मेहता ने कहा, ‘हम एक फ्लैट के मालिक हैं इसलिए वो हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते थे. लेकिन अगर हमारी मेड कुत्ते को टहलाने के लिए नीचे ले जाती थी तो वो उसे परेशान करते थे और उससे कुत्ते को परिसर के बाहर ले जाने के लिए कहते थे जो हमारे कुत्ते और मेड दोनों के लिए ख़तरनाक है. एक समय के बाद आपको घुटन महसूस होने लगती है, इसलिए हमने वो जगह छोड़ने का फैसला कर लिया’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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