नई दिल्ली: कोरोना महामारी में बीते इन दो सालों में जिस तबके ने सबसे ज्यादा मेहनत की और कोरोना के खिलाफ फ्रंट लाइन पर लड़ाई लड़ी वो हैं डॉक्टर्स. उनका मनोबल बढ़ाने के लिए इस दौरान सरकार ने डॉक्टर्स पर फूलों की वर्षा करवाई, सम्मान के लिए थाली तक बजवाई लेकिन एकबार फिर डॉक्टर्स सड़कों पर हैं, थाली बजा रहे हैं और नारे लगा रहे हैं.
उनका कहना है कि आने वाले समय में अस्पताल डॉक्टर्स की भारी कमी से जूझेंगे, क्योंकि नीट-पीजी की काउंसलिग नहीं हुई है. काउंसलिंग इसलिए नहीं हुई है क्योंकि आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (EWS) आरक्षण को लेकर विवाद चल रहा है और यह मामला फिलहाल कोर्ट में पहुंच चुका है. जिससे काउंसलिग रुक गई है. डॉक्टरों की मांग है कि सरकार को जो करना है वो करे, लेकिन जल्दी से नया बैच लेकर आए.
आईएमए के जूनियर डॉक्टर्स नेटवर्क ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को पत्र लिखकर एनईईटी-पीजी 2021 काउंसलिंग को गति देने के लिये अदालती सुनवाई में तेजी लाने की मांग कर रहे हैं.
‘एक-दो, एक-दो काउंसलिंग की डेट दो’, ‘हम लेकर रहेंगे काउंसलिंग’
निर्माण भवन स्थित स्वास्थ्य मंत्रालय के आगे प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों के गले नारे लगा-लगाकर बैठ गए हैं. दबी आवाज में डॉ जसकिरण कहते हैं, ‘मैंने कोरोना की दूसरी लहर में क्षमता से ज्यादा काम किया है, मेरा मेंटल हेल्थ इतना स्टेबल नहीं है कि अब मैं फिर हफ्ते में 100-100 घंटे काम करूं.’
वहीं सफदरजंग अस्पताल के संदीप मौर्या बताते हैं कि पूरा का पूरा एक साल बीच से गायब है लेकिन किसी को पड़ी ही नहीं है.
डॉ. संदीप बताते हैं कि इससे पहले 2020 में काउसलिंग हुई थी उसके बाद अभी तक नहीं हुई है. जो छात्र काम कर रहे हैं वो काम किए जा रहे हैं. सरकार को इससे फर्क ही नहीं पड़ रहा है.
हाथों में थाली, डपली और माइक लिए डॉक्टर्स का कहना है कि जब तक उनकी बात नहीं मानी जाती है तब तक वे इसी तरह प्रदर्शन करते रहेंगे.
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर शारदा बताते हैं कि धीरे-धीरे देशभर से डॉक्टर यहां इकट्ठा हो रहे हैं और इस प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं. हम जल्दी ही आगे की रणनीति पर काम करेंगे.
17 दिसंबर से चल रही रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन की अनिश्चितकालीन हड़ताल के कारण दिल्ली के 6 सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. दिल्ली सरकार के अस्पतालों के साथ सफ्दरजंग, एनएनजेपी, आरएमएल और लेडी हार्डिंग के रेजिडेंट डॉक्टर आधिरकारिक तौर पर हड़ताल में शामिल हैं.
प्रदर्शन में शामिल डॉक्टरों का कहना है कि वे अपने और मरीजों के लिए भी ये मांगे उठा रहे हैं.
क्यों सड़कों पर हैं डॉक्टर
दरअसल हर साल पोस्ट ग्रेजुएशन में दाखिला लेने के लिए डॉक्टरों का एक एग्जाम होता है जो इस साल कोरोना के कारण दो बार टाल दिया गया था. लेकिन फिर सितंबर में उसका एग्जाम हुआ और रिजल्ट भी आ गया. लेकिन डॉक्टरों की चिंता यह है कि अब तक काउंसलिंग नहीं हुई है. क्यों नहीं हुई है? इसमें अब एक और पेंच फंस गया है.
सरकार ने इस एग्जाम में EWS और OBC कोटे के लोगों के लिए आरक्षित किया जिसे लेकर विवाद हो रहा है और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. मामले पर अगली सुनवाई अब 6 जनवरी को होनी है, लेकिन डॉक्टर्स तब तक इंतजार नहीं करना चाहते हैं. उनकी मांग है कि उससे पहले ही काउंसलिंग पूरी हो जाए.
लेडी हार्डिंग में सीनियर रेजिडेंट के रूप में काम कर रही डॉक्टर नुपूर चावला कहती हैं, ‘हम पहले से ही कम डॉक्टर्स के साथ काम कर रहे हैं. अब फाइनल इयर के रेजिडेंट एग्जाम की तैयारी में लगे हैं तो काम करने के लिए सिर्फ एक ही बैच रह गया है. हम 48-48 घंटे काम करते हैं. 48 घंटे से ज्यादा काम करने के बाद हमें कोई सुध नहीं रहती है.’
इससे डॉक्टर्स को क्या समस्या हो रही है?
दरअसल डॉक्टर्स की पोस्ट ग्रेुजुएशन तीन साल की होती है, जिसमें वे अपनी स्पेशेलिटी पर काम करते हैं. अब कोरोना के कारण जो एग्जाम जनवरी में होना चाहिए था वह 11 सितंबर में हुआ और उसके नतीजे भी आए सितंबर में. वहीं जो काउंसलिंग मार्च या अप्रैल में होनी थी, वह अब तक नहीं हुई.
इसे इस तरह से समझा सकता है कि फिलहाल पीजी फर्स्ट इयर के डॉक्टर्स अभी नहीं आए हैं तो सारा दबाव सेकेंड और थर्ड इयर के डॉक्टर्स पर है.
अब थर्ड इयर के डॉक्टर्स भी अपने एग्जाम की तैयारी में लग जाएंगे जिसके बाद मरीजों को देखने का बोझ सिर्फ सेकेंड इयर के डॉक्टर्स पर रह जाएगा. क्योंकि फर्स्ट इयर की काउंसलिंग ही नहीं हुई है.
आसान भाषा में कहे तो जहां 100 डॉक्टर्स काम करते थे वहां वर्तमान स्थिति में 50-60 डॉक्टर्स काम कर रहे हैं और जल्द ही सिर्फ 33 ही काम करेंगे.
मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की डॉक्टर मिनाल कहती हैं कि आरक्षण को लेकर सरकार ने जो मेस फैलाया है वो खुद समेट ले, हमारे लिए बस काउंसलिंग करवा दे. हमारे सीनियर्स के एग्जाम है, उनसे हम कुछ नहीं कह सकते. उनकी दिक्कत जायज है. अस्पतालों में डॉक्टर्स की भारी कमी देखने को मिलेगी.’
आईएमए के जूनियर डॉक्टर्स नेटवर्क ने सोमवार को स्वास्थ्य मंत्री को लिखे पत्र में कहा, ‘कोविड -19 की संभावित तीसरी लहर और रेजिडेंट डॉक्टरों की कमी के मद्देनजर हमारे पास हड़ताल को तेज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. हम देशभर में नीट-पीजी काउंसलिंग में देरी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे रेजिडेंट डॉक्टरों के साथ एकजुटता प्रकट करते हैं.’
हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था पहले की मरीजों के बोझ तले काम कर रही है. ओमीक्रॉन का खतरा तीसरी लहर के रूप में सामने खड़ा है. ऐसे में डॉक्टर्स कह रहे हैं कि ‘तीसरी लहर से पहले तीसरा बैच’ लेकर आना जरूरी है वरना स्थिति घातक हो सकती है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के खोखले आश्वासन
प्रदर्शन में शामिल डॉ जसकिरण ने दिप्रिंट को बताया कि स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों की तरफ से उन्हें कई बार मौखिक तौर पर आश्वासन मिल चुका है कि वे जल्द ही काउंसलिंग करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब हम तभी हटेंगे जब काउंसलिंग की डेट हमें मिल जाएगी.
डॉक्टर चेतावनी दे रहे हैं कि पहली लहर में हमें नहीं पता था कि स्थिति को कैसे संभालना है, दूसरी में नहीं पता था कि ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी, लेकिन तीसरी स्थिति में हम कह रहे हैं कि डॉक्टरों की कमी हो सकती है. अगर डॉक्टर ही नहीं होंगे तो इलाज कौन करेगा. लेकिन सरकार सुनने को ही तैयार नहीं है.
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