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Friday, 7 November, 2025
होमदेशध्यान भटकाना, हताशा या विभाजन? माओवादियों की ‘सीज़फायर घोषणा’ पर सुरक्षा अधिकारियों में शंका

ध्यान भटकाना, हताशा या विभाजन? माओवादियों की ‘सीज़फायर घोषणा’ पर सुरक्षा अधिकारियों में शंका

सीपीआई (माओवादी) का 15 अगस्त का कथित बयान, जिसमें शांति वार्ता की पेशकश की गई थी, अब सामने आया है. इसकी प्रामाणिकता और मकसद पर सवाल उठ रहे हैं.

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नई दिल्ली: प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने कथित तौर पर सशस्त्र संघर्ष से अस्थायी संघर्षविराम की घोषणा की है और अपने वरिष्ठ नेतृत्व की मुठभेड़ों में मौत के बाद संगठनात्मक ताकत को झेलनी पड़ी अभूतपूर्व चुनौतियों के बीच सरकार से शांति वार्ता के लिए तैयार रहने की बात कही है.

15 अगस्त की तारीख वाला एक “प्रेस विज्ञप्ति” मंगलवार को सामने आया. इसमें केंद्रीय समिति के प्रवक्ता अभय ने कहा बताया गया है कि संगठन ने सरकार से अपील की है कि दूरदर्शन और आकाशवाणी के जरिए जेलों और देशभर में मौजूद अपने सभी कैडरों तक संघर्षविराम का संदेश पहुंचाने में मदद करे.

अभय जिनका असली नाम मल्लोजुला वेंगोपल है और जो भूपति और सोनू के नाम से भी जाने जाते हैं, माओवादी संगठन की पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति के सदस्य हैं.

अगर यह पेशकश सच है, तो यह माओवादी रणनीति में बड़ा बदलाव साबित हो सकता है. हालांकि, कुछ सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि यह केवल ध्यान भटकाने की कोशिश भी हो सकती है या फिर मई में वरिष्ठ नेता बसवराजु की मुठभेड़ में मौत के बाद उत्तराधिकार को लेकर संगठन में दरार का संकेत भी.

अभय ने कथित हिंदी प्रेस विज्ञप्ति में लिखा, “हमारे सम्माननीय महासचिव की पहल पर शुरू हुई शांति वार्ता की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए हम साफ कर रहे हैं कि दुनिया और देश में बदले हालात को देखते हुए, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों तक के लगातार आग्रह पर हमने हथियार डालने और मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला लिया है. इसलिए सशस्त्र संघर्ष को अस्थायी रूप से रोकने का फैसला लिया गया है.”

बयान में आगे कहा गया, “हम साफ कर रहे हैं कि आगे चलकर हम जनता के मुद्दों पर सभी राजनीतिक दलों और संघर्षशील संगठनों के साथ जहां तक संभव होगा, कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे. इस विषय पर हम केंद्रीय गृह मंत्री या उनके द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि या दल से वार्ता के लिए तैयार हैं, लेकिन पार्टी को हमारे बदले हुए विचारों से अवगत कराना होगा. यह हमारी जिम्मेदारी होगी. बाद में पार्टी के भीतर जो सहमत और असहमत होंगे, उनकी स्थिति साफ करेंगे और सहमत लोगों में से वार्ता में भाग लेने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल तैयार करेंगे. खून से लाल हुए जंगल तभी शांति के जंगल बन सकते हैं, जब सरकार भी सामूहिक रूप से यह कदम उठाए.”

सुरक्षा तंत्र से जुड़े सूत्रों ने कहा कि यह “प्रेस विज्ञप्ति” संभवतः प्रतिबंधित संगठन की ही है. अगर यह नकली है, तो संगठन जल्द ही इस पर बयान जारी करेगा या इसके विलंबित जारी होने को लेकर स्थिति स्पष्ट करेगा.

बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंद्रराज पट्टीलिंगम ने कहा कि इस तरह के प्रस्तावों पर निर्णय लेने का अधिकार पूरी तरह सरकार के पास है और विचार-विमर्श के बाद ही फैसला होगा.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हथियार डालने और शांति वार्ता की संभावना पर सीपीआई (माओवादी) केंद्रीय समिति के नाम से जारी प्रेस विज्ञप्ति को हमने संज्ञान में लिया है. इस विज्ञप्ति की प्रामाणिकता की जांच की जा रही है और इसके विषयों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जा रहा है. यह दोहराया जाता है कि सीपीआई (माओवादी) से जुड़ाव या संवाद पर कोई भी निर्णय केवल सरकार का होगा, जो स्थिति और परिस्थितियों के आकलन के बाद उपयुक्त फैसला लेगी.”

सूत्रों ने पुष्टि की कि अब तक किसी भी प्रभावित राज्य में नक्सल विरोधी अभियानों को धीमा करने या रोकने का कोई आदेश या कॉल नहीं दिया गया है.

बयान की प्रामाणिकता को लेकर संदेह जताते हुए एक सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, “सबसे पहले तो बयान में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के लिए आदरसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, जो माओवादियों की सामान्य लेखन शैली नहीं है. बयान में इस्तेमाल भाषा से भी यह प्रतीत नहीं होता कि यह माओवादियों से निकला है.”

इसी से जुड़े अन्य कारकों का जिक्र करते हुए, जैसे कि अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों संस्करणों में अभय की तस्वीरों का इस्तेमाल, सूत्र ने कहा, “ये बहुत असामान्य शैली है. बयान को अभी पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन इसमें कुछ वाकई अलग पैटर्न दिख रहे हैं.”

हालांकि कुछ सुरक्षा अधिकारियों ने यह भी इंगित किया कि इसी साल मई में जारी बयानों में भी ऐसे ही आदरसूचक शब्दों का इस्तेमाल हुआ था और इसे उन्होंने “लाचारी” और माओवादियों के पास विकल्प खत्म होने का संकेत माना.

‘संभवतः ध्यान भटकाने की रणनीति, या फिर आंतरिक फूट’

सुरक्षा तंत्र से जुड़े कुछ अधिकारियों ने बयान में किए गए आश्वासनों और इसके जारी होने व प्रेस और व्यापक जनता तक पहुंचने में हुए अंतराल पर संदेह जताया है.

एक सुरक्षा अधिकारी ने दिप्रिंट से नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यह बस एक और ध्यान भटकाने की रणनीति हो सकती है. वे इसमें माहिर हैं, क्योंकि यह गुरिल्ला बलों की स्वाभाविक चाल होती है. विज्ञप्ति 15 अगस्त को जारी हुई थी और यह एक महीने बाद सामने आई. इस बीच मुठभेड़ हुई हैं, जिनमें एके-47 जैसे अत्याधुनिक हथियार बरामद हुए हैं. छत्तीसगढ़ में कुछ शिक्षकों की हत्या हुई है, जब यह कथित संघर्ष विराम की अवधि होनी चाहिए थी, तब उनके बयान और उनके काम मेल नहीं खाते.”

दूसरी ओर, कुछ का कहना है कि अगर वास्तव में उन्होंने शांति वार्ता और मुख्यधारा में लौटने के बदले अस्थायी रूप से हथियार डाल दिए हैं, तो यह फैसला सोनू की राय से प्रभावित हो सकता है. सोनू को मई में नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजु की मुठभेड़ में मौत के बाद माओवादी संगठन का अगला नेता बनने का प्रबल दावेदार माना जा रहा है.

सुरक्षा तंत्र से जुड़े एक अन्य अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “यह पार्टी के भीतर मतभेद का मामला भी हो सकता है. जो लोग सोनू से सहमत हैं, उन्होंने अस्थायी रूप से हथियार छोड़ने का फैसला किया है, लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो इस संघर्ष विराम प्रस्ताव से सहमत नहीं हैं.”

माओवादी रैंकों में सोनू को अधिक राजनीतिक चेहरा माना जाता है, जबकि तिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवुजी को सैन्य चेहरा माना जाता है.

तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और ओडिशा के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का मानना है कि बसवराजु के उत्तराधिकारी की दौड़ दो दावेदारों—मल्लोजुला वेंगोपल और तिप्पिरी तिरुपति के बीच है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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