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बुधवार, 11 जून, 2025
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न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के मुद्दे पर राजनीतिक दलों से चर्चा शुरू कर दी है: रीजीजू

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नयी दिल्ली, चार जून (भाषा) केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू ने बुधवार को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने में सभी राजनीतिक दलों को साथ लेने के सरकार के संकल्प को रेखांकित करते हुए कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को ‘राजनीतिक चश्मे’ से नहीं देखा जा सकता।

उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि कथित भ्रष्टाचार के मामले में फंसे न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के उद्देश्य से की जा रही यह कवायद एक ‘सहयोगात्मक प्रयास’ हो। उन्हें उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने दोषी ठहराया है।

रीजीजू ने यहां संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में प्रस्ताव लाने के लिए सभी राजनीतिक दलों के साथ चर्चा शुरू कर दी है।

उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि सभी दल न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के लिए ‘संयुक्त रूप से’ प्रस्ताव लाएं।

रीजीजू ने कहा कि वह छोटे दलों से संपर्क करेंगे, जबकि सभी प्रमुख दलों को न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की योजना के बारे में पहले ही सूचित कर दिया गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार का मानना ​​है कि भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला किसी एक राजनीतिक दल का एजेंडा नहीं होता। भ्रष्टाचार के खतरे से लड़ना सभी दलों का रुख है, चाहे वह न्यायपालिका हो या कोई और क्षेत्र।’’

मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों को साथ लेना चाहेगी क्योंकि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को ‘राजनीतिक चश्मे’ से नहीं देखा जा सकता।

उन्होंने कहा कि अधिकांश दल इस मुद्दे पर आंतरिक चर्चा के बाद अपना रुख बताएंगे।

एक सवाल के जवाब में रीजीजू ने कहा कि प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा या राज्यसभा में, यह निर्णय प्रत्येक सदन के कामकाज के आधार पर लिया जाएगा।

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम 1968 के अनुसार, जब किसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव किसी भी सदन में स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष या सभापति, जैसा भी मामला हो, तीन सदस्यीय समिति का गठन करेंगे जो उन आधारों की जांच करेगी जिनके आधार पर उसे हटाने (या, लोकप्रिय शब्द में, महाभियोग) की मांग की गई है। समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, 25 उच्च न्यायालयों में से एक के मुख्य न्यायाधीश और एक ‘प्रतिष्ठित न्यायविद’ शामिल हैं।

रीजीजू ने कहा कि वर्तमान मामला ‘थोड़ा अलग’ है क्योंकि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा गठित एक आंतरिक समिति पहले ही अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है।

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए इस मामले में क्या किया जाना है, हम इस पर विचार करेंगे।’’

मंत्री ने कहा कि प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए, लेकिन ‘‘पहले से की गई जांच को कैसे एकीकृत किया जाए’’ इस पर निर्णय लेने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘नियम के अनुसार, एक समिति का गठन किया जाना चाहिए और फिर समिति को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए और रिपोर्ट को सदन में पेश किया जाएगा तथा महाभियोग पर चर्चा शुरू होगी। यहां, एक समिति पहले ही गठित की जा चुकी है, संसद द्वारा नहीं हुई, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि इसे प्रधान न्यायाधीश ने गठित किया।’’

रीजीजू ने कहा कि प्राथमिक उद्देश्य महाभियोग प्रस्ताव लाना है। उन्होंने उम्मीद जताई कि 21 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र में दोनों सदनों में निष्कासन की कार्यवाही पारित हो जाएगी।

मार्च में राष्ट्रीय राजधानी में न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना हुई थी, जब वह दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे, जिसके कारण उनके घर के एक हिस्से में नकदी की जली हुई बोरियां मिलीं थीं।

न्यायाधीश ने नकदी के बारे में अनभिज्ञता का दावा किया, लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने कई गवाहों से बात करने और उनके बयान दर्ज करने के बाद उन्हें दोषी ठहराया।

माना जाता है कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए संकेत दिया था, लेकिन न्यायमूर्ति वर्मा अपनी जिद पर अड़े रहे। न्यायालय ने तब से उन्हें उनके मूल कैडर, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है। न्यायमूर्ति खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर महाभियोग प्रस्ताव की सिफारिश की थी, जो उच्च न्यायपालिका के सदस्यों को सेवा से हटाने की प्रक्रिया है।

भाषा वैभव पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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