नैनीताल, 23 मई (भाषा) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक विज्ञापन में दिव्यांग आरक्षण की श्रेणी का सही उल्लेख न करने के संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद लोक सेवा आयोग की अपील को खारिज कर दिया और कहा कि आयोग की गलती के लिए याचिकाकर्ता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता के नाम को उक्त पद के लिए सरकार को अग्रसारित करने के निर्देश दिए हैं।
देहरादून के निवासी महावीर प्रसाद राणा ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा कि लोक सेवा आयोग ने 2013 में नगर निगम में राजस्व निरीक्षक के पद के लिए एक विज्ञापन जारी किया था जिसमें यह स्पष्ट नहीं था कि यह पद किस विकलांगता श्रेणी के लिए आरक्षित है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उनके दोनों पैर काम नहीं करते। राणा ने याचिका में कहा कि 2014 में उन्होंने लिखित परीक्षा पास कर ली और 2015 में हुए साक्षात्कार में शामिल होने वाले वह अकेले दिव्यांग थे।
हालांकि, आयोग ने उनकी दावेदारी को इस आधार पर खारिज कर दिया कि वह पद के लिए योग्य नहीं हैं क्योंकि वह ऐसे उम्मीदवार के लिए आरक्षित है जिसका एक पैर खराब हो।
याचिकाकर्ता ने विज्ञापन को एकल पीठ के सामने चुनौती दी जिसने उनके पक्ष में निर्णय दिया। बाद में आयोग ने इस निर्णय को खंडपीठ के समक्ष स्पेशल अपील के जरिए चुनौती दी।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने आयोग की अपील को खारिज कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ता को आयोग की गलती के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने आदेश पारित करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का नाम उक्त पद पर नियुक्ति के लिए सरकार को भेजा जाए।
भाषा सं दीप्ति आशीष
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