पुणे, 26 सितंबर (भाषा) पुणे के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक आशीष अविनाश बेंडे के लिए फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) एक विशिष्ट स्थान रखता है क्योंकि जिस जगह दाखिला लेने के चार प्रयासों के बावजूद उन्हें हर बार प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया, उसी संस्थान ने बाद में उनकी पहली फिल्म की स्क्रीनिंग के लिए उन्हें आमंत्रित किया।
बेंडे (45) को मराठी फिल्म ‘आत्मपम्फलेट’ के लिए 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ नवोदित निर्देशक का पुरस्कार मिला।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को आयोजित समारोह में उन्हें सर्वश्रेष्ठ नवोदित निर्देशक के लिए ‘स्वर्ण कमल’ सम्मान प्रदान किया।
बेंडे के लिए सिनेमा के इस शिखर तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। स्कूलों के बीच होने वाली नाट्य प्रतियोगिताओं से शुरू हुआ उनका यह सफर आखिरकार उन्हें इस प्रतिष्ठित पुरस्कार तक ले गया।
बेंडे का अभिनय कला से जुड़ाव पुणे स्थित अभिनव मराठी माध्यमिक विद्यालय में ही शुरू हो गया था, जहां स्कूल नाटकों के मंच पर उनकी अभिनय प्रतिभा उभरकर सामने आई। इसके बाद फर्ग्यूसन कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उन्होंने अंतर महाविद्यालय नाट्य प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अपनी कला को और निखारा।
इस दौरान उन्हें कई पुरस्कार भी मिले, जिनमें प्रतिष्ठित पुरुषोत्तम करंडक प्रतियोगिता में केशवराव दाते पुरस्कार भी शामिल है।
बेंडे ने ‘आत्मकथात्मक पैम्फलेट’ शीर्षक के पीछे की प्रेरणा समझाते हुए कहा, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी यात्रा इतनी असाधारण होगी कि उसे जीवनी के रूप में लिखा जा सके। ज्यादा से ज्यादा, यह एक पैम्फलेट में समा सकती है।’
यह फिल्म 1990 के दशक में राजनीतिक उथल-पुथल की पृष्ठभूमि में व्यंग्य और पुरानी यादों पर आधारित है जिसे 10 साल के एक बच्चे की नजर पेश की गयी है।
बेंडे के करियर की शुरुआत रंगमंच से हुई। उन्होंने प्रशंसित निर्देशक परेश मोकाशी के निर्देशन में ‘संगीत लग्न कल्लोल’ नामक एक व्यावसायिक नाटक में भी अभिनय किया। मोकाशी के कौशल ने उन्हें अभिनय से फिल्म निर्माण की ओर प्रेरित किया।
अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई आने के बाद, बेंडे ने मोकाशी के साथ कई उल्लेखनीय फिल्मों में सहायक के रूप में काम किया, जिनमें 2010 में ऑस्कर में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि ‘हरिश्चंद्राची फैक्टरी’ और बाद में ‘एलिजाबेथ एकादशी’ और ‘वाल्वी’ शामिल हैं, जिन्हें खूब सराहना मिली। इन अनुभवों ने निर्देशन में कदम रखने के उनके फैसले को और मजबूती दी।
इस फिल्म को न केवल आलोचकों और दर्शकों से सराहना मिली, बल्कि उन्हें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
उन्होंने बताया, ‘मैंने एफटीआईआई में दाखिले के लिए चार बार कोशिश की, लेकिन हर बार मेरा नाम प्रतीक्षा सूची में ही अटक गया। विडंबना यह है कि बाद में उसी संस्थान ने मुझे ‘आत्मा पैम्फलेट’ की स्क्रीनिंग के लिए आमंत्रित किया। वह एक खास पल था।’
भाषा तान्या तान्या माधव
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