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Monday, 6 May, 2024
होमदेशगरिमा से भी वंचित हैं दिल्ली में मृतक, कोविड से मरने वाले शव वाहनों में भरकर लाए रहे हैं श्मशान

गरिमा से भी वंचित हैं दिल्ली में मृतक, कोविड से मरने वाले शव वाहनों में भरकर लाए रहे हैं श्मशान

दिल्ली के सबसे बड़े श्मशानघाट निगम बोध घाट पर, कोविड-19 का शिकार हुए मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

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नई दिल्ली: दिल्ली में कोविड-19 के मामलों और मौतों के तेज़ी से बढ़ने के साथ ही, मृतकों का सम्मान जनक तरीक़े से अंतिम संस्कार करना भी, एक संघर्ष बनता जा रहा है. अगर एक ओर शवों को ले जाने के लिए वाहन कम हैं, तो दूसरी ओर श्मशान घाटों में कोविड-19 के संदिग्ध या पक्के मरीज़ों के परिवारों को अधिक देर तक इंतज़ार करना पड़ रहा है.

दिल्ली के निगमबोध घाट पर, जो शहर का सबसे बड़ा श्मशान घाट है शवों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिनमें से अधिकतर कोविड-19 का शिकार हुए हैं.

शनिवार को दिप्रिंट ने लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल (एलएनजेपी), डॉ बाबा आंबेडकर अस्पताल, मैक्स अस्पताल (साकेत) और गंगाराम अस्पताल से दोपहर से 3 बजे के बीच पांच शव वाहन आते देखे, जिनके अंदर कुल 17 शव थे. वो सब कोविड-19 के शिकार थे.

एलएनजेपी के एक वाहन में 6 और दूसरे वाहन में 3 शव थे. आंबेडकर अस्पताल का वाहन दो फेरों में 6 शव लाया था. सर गंगाराम और मैक्स अस्पताल दोनों के वाहन, एक एक शव लाए थे.

बृहस्पतिवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने मीडिया रिपोर्ट्स का स्वत: संज्ञान लिया था, जिनमें कोविड-19 का शिकार हुए शवों के दाह संस्कार में, देरी की बात उठाई गई थी.

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शुक्रवार को, दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि कोविड-19 के पक्के और संदिग्ध मामलों में दाह संस्कार के लिए उसने शहर के नगर निकायों द्वारा संचालित श्मशान घाटों में, बिजली व सीएनजी भट्टियों के अलावा लकड़ी के इस्तेमाल की भी इज़ाज़त दे दी है.

आम आदमी की सरकार ने कोर्ट को ये भी सूचित किया कि कोविड-19 का शिकार हुए मरीज़ों के शवों का दाह संस्कार, निगम बोध के अलावा अब दो और घाटों- पंचकुइयां और पंजाबी बाग़ में भी किया जा सकता है.

सरकार ने कहा कि श्मशान में काम के घंटे भी बढ़ा दिए गए हैं. पहले के सुबह 9 से शाम 4 की बजाय, अब वो सुबह 7 बजे से, रात 10 बजे तक खुले हैं.

शनिवार को, दिल्ली सरकार ने एक आदेश जारी कर अस्पतालों से कहा कि किसी मरीज़ की मौत के 12 घंटे के भीतर, उसके अंतिम संस्कार का प्रबंध करें. अगर मृतक के परिवार इस समय के भीतर उनसे सम्पर्क नहीं करते, तो अस्पतालों को स्थान और समय की जानकारी के साथ, मृतकों के संस्कार अथवा दफ़न की सूचना देनी होगी. और बिना पहचान या लावारिस शवों के मामले में, दिल्ली पुलिस को सुनिश्चित करना है कि मौत के चार दिन के भीतर अंतिम संस्कार हो जाए.

लाशों के ढेर एलएनजेपी अस्पताल के एक शव वाहन के भीतर दिप्रिंट को दो बेंचों पर चार शव नज़र आए, जो एक के ऊपर एक रखे हुए थे, जबकि दो शव वाहन के फर्श पर रखे थे.

वैन के ड्राइवर और उसके साथ शव लाने वाले अस्पताल के दो कर्मचारियों का दावा था कि एक वाहन में कितने शव ले जाएंगे, ये फैसला अस्पताल के अधिकारी करते हैं.

शववाहन के अंदर शवों का ढेर

एलएनजेपी अस्पताल के एक कर्मचारी प्रकाश ने, जो 6 शव लाने वाले वाहन के साथ निगमबोध घाट आया था, कहा कि शवों की संख्या अस्पताल तय करता है, हम केवल उन्हें चढ़ाने और उतारने का काम करते हैं.

दूसरी ओर एलएनजेपी अधिकारियों का कहना है, कि वो मजबूर थे क्योंकि मृतकों की संख्या अधिक है. एलएनजेपी के फॉरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉ उपेंद्र किशोर ने दिप्रिंट को बताया, ‘कोविड-19 पीड़ितों के लिए हम नोडल सेंटर हैं, इसलिए हमारे अस्पताल में मरीज़ों की संख्या बहुत ज़्यादा है. हम इस स्थिति में नहीं हैं कि हर शव को ले जाने के लिए अलग वाहन दे सकें. रिश्तेदार शवों के लेने के लिए नहीं आते, वो समझते हैं कि उसका दाह संस्कार अस्पताल कराएगा.’

उन्होंने बताया कि अस्पताल के मुर्दाघर में शव जमा हो गए थे, लेकिन जब से सरकार ने पंचकुइयां और पंजाबी बाग़ के घाटों में दाह संस्कार की अनुमति दी, तब से स्थिति सुधर गई है. लेकिन मेरे पास अभी भी 30 शव, दाह संस्कार के इंतज़ार में हैं, और मुझे उन्हें थोक में भेजना है.’

आंबेडकर अस्पताल के शव वाहन के ड्राइवर श्रीकांत ने कहा, ‘पहले हम एक फेरे में तीन शव लाए और फिर दूसरे फेरे में तीन और लाए.’

लेकिन आंबेडकर अस्पताल के अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया कि उन्होंने एक शव वाहन में दो से अधिक शव लदवाए थे. आंबेडकर अस्पताल के फॉरेंसिक्स विभाग के प्रमुख डॉ विजय धनकर ने कहा, ‘एक शव वाहन में हम एक या दो शव ही भेजते हैं. ऐसा संभव नहीं है कि एक वाहन में तीन शव रहे हों.’

आंबेडकर अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ पीएस खटाना ने कहा, ‘साफ निर्देश हैं कि एक बार में दो से अधिक शव न ले जाए जाएं…हम भी मृतक को पूरा सम्मान देने में यक़ीन रखते हैं. मैं इस मामले को देखूंगा, और फिर से कड़े निर्देश जारी करूंगा.’

दिल्ली के निगम बोध घाट के बाहर इंतज़ार करती शव वाहन | फोटो : दिप्रिंट/ स्रावस्ती दासगुप्ता

‘शवों को लौटा रहे हैं श्मशान घाट’

अस्पतालों ने ये भी आरोप लगाया कि श्मशान घाटों के काम के घंटे बढ़ाने के दिल्ली सरकार के आदेश से पहले, शवों को वापस मुर्दाघर भेजा जा रहा था, क्योंकि श्मशानघाट इतना बोझ लेने की स्थिति में नहीं थे.

डॉ किशोर ने बताया, ’24 और 25 मई को हमारे पास 74 शव थे, जिनका अंतिम संस्कार किया जाना था. मुझे मजबूरन कुछ शव आंबेडकर अस्पताल भेजने पड़े. पहले श्मशान घाट अपने तय समय पर अटके रहते थे और वाहनों को शवों के साथ वापस भेज देते थे. लकड़ी जलाने की कोर्ट की इजाज़त के बाद ये प्रक्रिया तेज़ हुई है, लेकिन यहां अभी भी एक बैकलॉग है, इसलिए थोक में शवों को श्मशान घाट भेजने के अलावा, हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है.’

लेकिन निगमबोध के अधिकारियों ने शवों को लौटाने की बात से इनकार किया. निगमबोध घाट के सुपरवाइज़र अवदेश शर्मा ने कहा, ‘यहां पर जो भी शव आए उनका दाह संस्कार कर दिया गया है, हो सकता है कि लम्बी क़तार देखकर शव वाहन ख़ुद लौट गए हों, लेकिन हमने कभी किसी वैन को वापस नहीं भेजा.’

उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी), जो निगमबोध घाट के कामकाज की निगरानी करती है, ने भी अस्पतालों पर थोक में शव भेजने का दोष मढ़ा.

निगम बोध घाट पर कोविड-19 के पीड़ितों के लिए लकड़ी आधारित श्मशान स्थल। फोटो : दिप्रिंट/ स्रावस्ती दासगुप्ता

एनडीएमसी के निगम स्वास्थ्य अधिकारी अशोक रावत ने कहा, ‘अस्पताल समय से शव नहीं भेजते. वो ऐसा नहीं कर सकते कि शवों को तीन दिन तक रखें और फिर उन्हें एक साथ भेज दें. हम हर रोज़ 15 से 30 शवों का दाह संस्कार कर रहे हैं. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद हमने अपना समय, सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक बढ़ा लिया है. हमारा काम है आने वाले सभी शवों का दाह संस्कार करना.’

अस्पतालों में संसाधनों की कमी

अस्पतालों ने ये भी कहा कि शवों का प्रबंध करना, उसके संसाधनों और कर्मचारियों की संख्या पर निर्भर करता है.
एलएनजेपी अस्पताल की चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ रितु सक्सेना ने कहा, ‘हमारे पास शव वाहन सीमित संख्या में हैं, और सीएनजी से होने वाले हर दाह संस्कार में दो घंटे लगते हैं. इसलिए वैन्स को वापस आने में इतना ही समय लगता है, जिससे बैकलॉज जमा हो जाता है.’

कर्मचारियों की कमी एक और समस्या है, जिससे अस्पताल जूझते रहे हैं. डॉ किशोर ने आगे कहा, ‘बैकलॉग बहुत अधिक है और हमारे पास पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं. मुझे ड्राइवर के साथ दो कर्मचारियों को पीपीई सूट्स में भेजना पड़ता है. हमारे पास उतना स्टाफ नहीं है.’

सर गंगाराम जैसे निजी अस्पतालों का कहना था कि एक शव वाहन में एक शव भेजने का दारोमदार, इसके कारगर प्रबंधन पर है. सर गंगाराम अस्पताल की डिप्टी मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ सुरूची सिन्हा ने कहा, ‘मरीज़ों को बोझ बहुत है, लेकिन हमारा प्रशासन चीज़ों को दुरुस्त करने में लगा है. हमारे पास पर्याप्त शव वाहन और स्टाफ हैं, जिससे हम सुनिश्चित करते हैं कि एक एम्बुलेंस में एक ही शव भेजा जाए. सिर्फ दो-एक बार हमने दो शव एक साथ भेजे हैं, वरना एक ही भेजते हैं.’

दिप्रिंट ने फोन कॉल्स, व्हाट्सएप, टेक्स्ट मैसेज और ईमेल के ज़रिए दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन से सम्पर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. अगर उनका जवाब मिला, तो इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

मौत में मर्यादा चाहते हैं परिवार वाले

मरने वालों के परिवार के सदस्यों ने कहा कि उनके चहेतों को मरने के बाद भी मर्यादा से वंचित रखा जा रहा है. संजीव ने, जिनके मित्र की शनिवार को मौत हुई कहा, ‘मैंने देखा कि एक शव वाहन में तीन शव रखे थे, जिनमें एक मेरे दोस्त का था. उन्होंने एक-एक शव दोनों बेंचों पर रख दिया, और एक नीचे फर्श पर रख दिया.’

दूसरे लोगों ने भी दावा किया कि अस्पताल के फैसलों पर अमल करने के अलावा, उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है.

श्वेता, जिनके पिता का शनिवार सुबह एलएनजेपी अस्पताल में निधन हुआ ने दि प्रिंट को बताया, ‘उन्होंने सिर्फ वैन में लोड करते समय हमें शव को दिखाया. हमें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा ये देखकर कि शव को किस तरह दूसरे शवों के साथ लाया जा रहा था, लेकिन हमारे पास रास्ता भी क्या था?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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1 टिप्पणी

  1. स्वयं सेवी संस्थाएँ कहाँ मर गयी उन्हें आगे आना चाहिए अब तों , हर जगह अकेली सरकार पर छोड़ना भी ग़लत हैं

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