लखनऊ : यूपी में बिजली विभाग में हुए पीएफ घोटाले का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. प्रदेश में बिजलीकर्मियों का 48 घंटे का कार्य बहिष्कार मंगलवार को दूसरे दिन भी जारी रहा. आरोप है कि उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन के कर्मचारियों की भविष्य निधि के 2,631 करोड़ों रुपये का अनियमित तरीके से निजी कंपनी डीएचएफएल (दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड) में निवेश किया गया है.
प्रवर्तन निदेशालय ने हाल ही में डीएचएफएल के प्रमोटरों से दाऊद इब्राहिम के एक पूर्व सहयोगी इकबाल मिर्ची की एक कंपनी के साथ संबंधों को लेकर पूछताछ की है.
विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति के बैनर तले हुए प्रदर्शन में वक्ताओं ने कहा कि घोटाले के मुख्य आरोपी, पूर्व चेयरमैन और अन्य आईएएस अधिकारियों की गिरफ्तारी हो. बिजली का ग्रिड फेल न हो, इसलिए बड़े उत्पादन गृहों, 400 केवी विद्युत उपकेंद्र और सिस्टम ऑपरेशन की शिफ्ट में काम करने वाले कर्मचारी व अभियंता कार्य बहिष्कार में शामिल नहीं थे.
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कांग्रेस का आरोप – 2300 करोड़ हुआ जमा
कांग्रेस के यूपी चीफ अजय कुमार लल्लू ने कहा कि कर्मचारियों की 2300 करेाड़ रुपये की भविष्य निधि योगी सरकार में ही निवेश की गयी थी. उन्होंने कहा कि 7 अक्टूबर 2017 से दिसम्बर 2018 तक हुए निवेश में कर्मचारियों की 2300 करोड़ रुपये की भविष्य निधि फंसने की जिम्मेदार योगी सरकार ही है लेकिन पूरी सरकार ऊर्जा मंत्री समेत सभी जिम्मेदार और जवाबदेह लोगों को बचा रही है. उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले में तत्काल ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा को बर्खास्त किया जाए.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि कर्मचारियों के खून-पसीने की कमाई पर चुप्पी साधकर मुख्यमंत्री आखिर किसे बचाना चाहते हैं, अब यह साफ हो गया है. उन्होंने कहा कि योगी सरकार आने के बाद कर्मचारियों का पैसा डीएचएफएल में फंसा है जिसका लेखा-जोखा अब जगह-जगह से आने लगा है. 7 अक्टूबर 2017 से दिसम्बर 2018 तक 2300 करोड़ रुपया डीएचएफएल में जमा हुआ और यह भविष्य निधि का पैसा फंस गया. आखिर सरकार अपनी करतूत से कब तक बच सकती है.
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ऊर्जा मंत्री का मांगा इस्तीफा
उन्होंने कहा कि एक तरफ डीएचएफएल अपनी तरफ से अपने पक्ष में एक नोट जारी करती है पर जिम्मेदारी तो सरकार की होनी चाहिए. आखिर वह इस पूरे मामले पर श्वेत पत्र जारी करने से क्यों कतरा रही है? आखिर दोषियों पर कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तत्काल प्रभाव से ऊर्जा मंत्री को बर्खास्त क्यों नहीं कर रहे हैं? चेयरमैन आलोक कुमार पर इतनी मेहरबानी क्यों है? ऐसे तमाम सवाल हैं जिनका जवाब सरकार के पास नहीं है.