नयी दिल्ली, 20 अप्रैल (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद निशिकांत दुबे की न्यायपालिका के खिलाफ टिप्पणियों की कानूनी विशेषज्ञों ने रविवार को निंदा की और इन्हें ‘‘गैरजिम्मेदाराना’’ बताया तथा कहा कि उच्चतम न्यायालय की गरिमा को बरकरार रखा जाना चाहिए।
धनखड़ ने न्यायपालिका द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने और ‘सुपर संसद’ के रूप में कार्य करने को लेकर सवाल उठाते हुए बृहस्पतिवार को कहा था कि उच्चतम न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘परमाणु मिसाइल’ नहीं दाग सकता।
उपराष्ट्रपति की टिप्पणी के बाद, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार को शीर्ष अदालत पर निशाना साधते हुए कहा था कि ‘‘कानून यदि उच्चतम न्यायालय ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिए।’’
दुबे ने भारत में ‘धर्म के नाम पर हिंसा’ के लिए भी प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना को जिम्मेदार ठहराया था।
दुबे की टिप्पणी केंद्र द्वारा न्यायालय को दिए गए इस आश्वासन के बाद आयी कि वह वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कुछ विवादास्पद प्रावधानों को अगली सुनवाई तक लागू नहीं करेगा।
भाजपा सांसद की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एवं बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि न्यायपालिका सर्वोच्च है और उच्चतम न्यायालय की गरिमा और मर्यादा को बरकरार रखा जाना चाहिए।
मिश्रा ने कहा, ‘‘भाजपा अध्यक्ष ने इस विवाद पर पूर्ण विराम लगा दिया है। न्यायपालिका सर्वोच्च है। उच्चतम न्यायालय ने जो भी आदेश पारित किया है, वह अंतिम है और अनुच्छेद 142 के तहत शीर्ष अदालत को किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने का अधिकार है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यदि कोई असंतुष्ट है, तो समीक्षा की गुंजाइश है। ऐसे मुद्दों पर सड़कों पर चर्चा नहीं की जानी चाहिए और उच्चतम न्यायालय की गरिमा को बनाए रखा जाना चाहिए।’’
भाजपा ने हालांकि, दुबे की टिप्पणियों से दूरी बना ली। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने इन टिप्पणियों को दुबे का निजी विचार बताकर खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के अभिन्न अंग के रूप में न्यायपालिका का पार्टी सम्मान करती है।
धनखड़ के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि उच्च संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए और हर संस्था का सम्मान किया जाना चाहिए।
झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद की टिप्पणियों के बारे में सिंह ने कहा, ‘यदि वह कोई उपाय चाहते हैं तो वे पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने जो कुछ भी कहा है वह अंतिम है और आपको उसका सम्मान करना चाहिए। यही कानून का नियम है। उनके पास यह कहने का कोई आधार नहीं है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश दंगों के लिए जिम्मेदार हैं। दंगे, सुनवाई शुरू होने से पहले ही प्रारंभ हो गए थे।’’
वक्फ (संशोधन) अधिनियम के विरोध में 11 और 12 अप्रैल को मुर्शिदाबाद के शमशेरगंज, सुती, धुलियान और जंगीपुर इलाकों में हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग विस्थापित हुए हैं। उपद्रवियों ने घरों को जला दिया था और तोड़फोड़ की थी।
सिंह ने कहा, ‘‘(वक्फ संशोधन अधिनियम में) सुनवायी शुरू होने के बाद दंगे नहीं हुए। उच्चतम न्यायालय से न्याय मिलने की उम्मीद ही दंगे रोकने में सहायक हुई।’’
अधिवक्ता अश्विनी दुबे ने कहा कि चूंकि धनखड़ एक संवैधानिक पद पर हैं, इसलिए उन्हें न्यायपालिका को निशाना बनाने वाली टिप्पणियां करने से परहेज करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र में, प्रत्येक इकाई (विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) की स्पष्ट और सीमांकित भूमिका होती है और उन्हें अन्य का सम्मान करना चाहिए। उपराष्ट्रपति का पद संवैधानिक होने के नाते, उन्हें ऐसी टिप्पणियां करने से बचना चाहिए।’’
भाजपा सांसद की टिप्पणी पर, शीर्ष अदालत के अधिवक्ता ने कहा, ‘‘हिंसा के लिए उच्चतम न्यायालय और भारत के प्रधान न्यायाधीश पर आरोप लगाना पूरी तरह से गलत होगा। देश के लोगों को न्यायपालिका पर भरोसा है। भाजपा नेतृत्व ने (दुबे के) बयान से दूरी बना कर सही किया है।’’
भाषा अमित सुभाष
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