नयी दिल्ली, 31 मई (भाषा) भारत ने कहा है कि ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के सबसे स्पष्ट संकेतकों में से एक हैं और वैश्विक ऐतिहासिक उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान देने वाले देशों को उनके संरक्षण के लिए उत्सर्जन में तत्काल और भारी कटौती करनी चाहिए।
ताजिकिस्तान के दुशांबे में ग्लेशियर पर केंद्रित पहले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पूर्ण सत्र को संबोधित करते हुए पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि ग्लेशियर हर जगह पीछे हट रहे (पिघलकर सिमटना) हैं और भारत अपने बड़े हिमालयी क्षेत्र में इन प्रभावों को प्रत्यक्ष रूप से महसूस कर रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल के अनुसार, 1990 के दशक से दुनिया भर में ग्लेशियरों का द्रव्यमान कम हो रहा है और 21वीं सदी में इसमें आने वाली कमी की गति और भी तेज हो गई है… उनका पीछे हटना केवल एक चेतावनी नहीं है, बल्कि एक वास्तविकता है जिसका जल उपलब्धता, खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता और अरबों लोगों के हित के लिहाज से अल्पकालिक और दीर्घकालिक, दोनों तरह से गंभीर परिणाम दिखते हैं।
उन्होंने कहा कि ग्लेशियरों को संरक्षित करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और बढ़ते तापमान को कम करने की दिशा में एक मजबूत वैश्विक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।
सिंह ने कहा, ‘‘वैश्विक ऐतिहासिक संचयी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान देने वाले देशों को उत्सर्जन में तत्काल, भारी और निरंतर कमी लानी चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया, जो दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी का घर है, का 2020 तक हुए कुल संचयी कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में केवल चार प्रतिशत योगदान था, लेकिन यह जलवायु प्रभाव के लिहाज से सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु कार्रवाई समानता और साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए।
ये सिद्धांत मानता है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने की जिम्मेदारी सभी देशों की है, लेकिन विकसित देशों, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन किया है, को अपनी उच्च क्षमता और पूर्व में किए गए अपने अधिक उत्सर्जन के कारण अधिक जिम्मेदारी उठानी चाहिए।
सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत जलवायु परिवर्तन के जवाब में राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर कड़ी कार्रवाई कर रहा है, जबकि यह एक विकासशील देश है और वैश्विक ऐतिहासिक उत्सर्जन में इसका योगदान बहुत कम है।
उन्होंने कहा कि भारत अब कुल नवीकरणीय ऊर्जा और पवन ऊर्जा क्षमता के लिहाज से वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है और सौर ऊर्जा क्षमता में पांचवें स्थान पर है।
उन्होंने कहा कि मार्च 2025 तक भारत में गैर-जीवाश्म स्रोत से प्राप्त ऊर्जा का योगदान इसकी कुल बिजली क्षमता के 48 प्रतिशत से अधिक हो जागा।
उन्होंने कहा कि भारत अपने आर्थिक विकास को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से अलग करने में कामयाब रहा है।
भारत ने अपने पहले राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के प्रमुख लक्ष्यों को निर्धारित समय से कई साल पहले ही हासिल कर लिया, जिसमें 2021 में 40 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली क्षमता (नौ साल पहले) और 2019 तक उत्सर्जन तीव्रता में 33 प्रतिशत की कमी (11 साल पहले) शामिल है।
वर्ष 2005 से 2021 तक, भारत ने विस्तारित वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.29 अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर का अतिरिक्त ‘कार्बन सिंक’ भी बनाया है।
उन्होंने कहा कि ग्लेशियर संरक्षण के लिए वैश्विक सहयोग, अंतरराष्ट्रीय भागीदारी और साझा वैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2025 को ग्लेशियर संरक्षण अंतरराष्ट्रीय वर्ष और क्रायोस्फेरिक विज्ञान के लिए कार्रवाई दशक (2025-2034) घोषित करने से देशों और विशेषज्ञों को एक साथ मिलकर काम करने में मदद मिलेगी।
भारत ने सम्मेलन में ग्लेशियर संरक्षण को जल और खाद्य सुरक्षा से जोड़ने पर जोर दिए जाने का स्वागत किया है, लेकिन उन्होंने कहा, ‘‘हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वित्तीय और तकनीकी संसाधन तथा कार्यान्वयन के साधन सबसे कमजोर और विकासशील क्षेत्रों तक पहुंचाए जाएं।’
सिंह ने कहा कि अनुकूलन समाधान जैसे कि पूर्व चेतावनी प्रणाली, आपदा जोखिम न्यूनीकरण और सतत जल प्रबंधन का विकासशील देशों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाना चाहिए।
ग्लेशियरों पर तीन दिवसीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का समापन शनिवार को होना है।
इस सम्मेलन का उद्देश्य वैश्विक पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने और जल-संबंधी चुनौतियों का समाधान करने में ग्लेशियरों की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करना है। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के 80 सदस्य देशों और 70 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के 2,500 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
भाषा संतोष माधव
माधव
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