नई दिल्ली: भारत में 2020-21 के दौरान सभी उम्र के लोगों के बीच बेरोजगारी की दर में 2019-20 के मुकाबले गिरावट देखने को मिली है. आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के हालिया आंकड़ों के अनुसार 2020-21 में देश की बेरोजगारी दर 4.2% है जो कि 2019-20 के 4.8% के मुकाबले कुछ कम है.
पीएलएफएस ने मंगलवार को अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की जिससे पता चला है कि 2020-21 के दौरान श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) और श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) में भी 2019-20 के मुकाबले वृद्धि हुई है यानी कि आबादी का ज्यादा हिस्सा श्रम शक्ति में लगा है.
गौर करने की बात ये है कि पीएलएफएस के ये आंकड़े उस दौरान के हैं जब देश कोविड महामारी की पहली और दूसरी लहर से जूझ रहा था और इसके कारण अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा था. उस दौरान काफी समय तक उद्योग और लोगों का कामकाज ठप था. इस रिपोर्ट से यही स्पष्ट है कि कोविड महामारी और उसकी वजह से लगे लॉकडाउन के बावजूद बेरोजगारी दर में वृद्धि नहीं हुई.
हालिया रिपोर्ट में इस बात को दर्ज किया गया है कि कोविड महामारी के कारण पीएलएफएस के लिए किया जाने वाला फील्डवर्क प्रभावित हुआ. रिपोर्ट में जुलाई 2020 से जून 2021 तक को कवर किया गया है.
पीएलएफएस द्वारा जारी ये चौथी वार्षिक रिपोर्ट है. सबसे पहली रिपोर्ट 2017-18 के दौरान जारी की गई थी.
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कोविड के बावजूद शहरी और ग्रामीण भारत में बेहतर हुए आंकड़े
पीएलएफएस की हालिया रिपोर्ट में ग्रामीण और शहरी भारत में महिलाओं और पुरुषों के आंकड़ों को शामिल किया गया है. इन आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड की पहली और दूसरी लहर के दौरान भी श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) और श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) में वृद्धि हुई है.
श्रम शक्ति भागीदारी दर से मतलब है कि आबादी के कितने प्रतिशत लोग श्रम शक्ति में लगे हैं वहीं श्रमिक जनसंख्या अनुपात बताता है कि आबादी में कितने प्रतिशत लोगों के पास रोजगार है.
हालांकि रिपोर्ट से ये भी स्पष्ट है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी अभी भी काफी कम है.
रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत में 2020-21 के दौरान पुरुषों की श्रम शक्ति भागीदारी दर 57.1% है वहीं महिलाओं की सिर्फ 27.7% जो कि आधी से भी कम है. वहीं शहरी भारत में पुरुषों की श्रम शक्ति भागीदारी दर 58.4% है और महिलाओं की सिर्फ 18.6% जो कि पुरुषों के एक तिहाई से भी कम है.
इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों में श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) 54.9% है वहीं महिलाओं की 27.1%. 2019-20 की तुलना में इसमें भी सुधार हुआ है.
वहीं शहरी क्षेत्रों में पुरुषों की श्रमिक जनसंख्या अनुपात 54.9% ही है वहीं महिलाओं की महज 17%. 2019-20 की तुलना में इसमें मामूली सुधार हुआ है.
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बेरोजगारी दर में 2017-18 के बाद लगातार गिरावट
पीएलएफएस की रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 के बाद से लगातार बेरोजगारी दर में गिरावट दर्ज की जा रही है. हालांकि बेरोजगारी दर का मतलब है कि श्रम शक्ति के बीच कितने प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं.
रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 में सभी उम्र के लोगों के बीच भारत की बेरोजगारी दर 6.1% थी जो कि 2018-19 में घटकर 5.8%, 2019-20 में 4.8% और 2020-21 में 4.2% हो गई है. आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण और शहरी इलाकों में भी बेरोजगारी दर में गिरावट देखी गई है.
वहीं 15 वर्ष और उससे ऊपर के उम्र के शिक्षित व्यक्तियों में बेरोजगारी दर 9.1% है. ग्रामीण क्षेत्रों में ये 8.3% है वहीं शहरी क्षेत्रों में 10.2%. 15-29 वर्ष की उम्र के बीच बेरोजगारी दर देश में 12.9 प्रतिशत है.
इस आयु वर्ष के बीच ग्रामीण भारत में 11.6% पुरुष और 8.2 प्रतिशत महिलाएं बेरोजगार हैं. वहीं शहरी क्षेत्रों में 16.6% पुरुष और 24.9% महिलाएं बेरोजगार हैं.
हालांकि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडिया इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2022 में भारत की बेरोजगारी दर 7.83 प्रतिशत थी जो कि मार्च के मुकाबले बढ़ी है. वहीं शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 9.22 प्रतिशत है.
पीएलएफएस की रिपोर्ट से ये भी पता चलता है कि भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर लोग खुद का रोजगार कर रहे हैं.
2020-21 के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में 59.7% पुरुष और 64.8% महिलाएं खुद का रोजगार कर रही हैं वहीं सिर्फ 13.6% पुरुष और 9.1% महिलाएं ही सैलरी वाली नौकरी या रोज मिलने वाली दिहाड़ी वाली नौकरी कर रहे हैं.
वहीं शहरी क्षेत्रों में 39.9% पुरष और 38.4% महिलाएं खुद का रोजगार करती हैं.
बता दें कि यह रिपोर्ट राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा जारी की जाती है. यह सर्वेक्षण भारत में राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर रोजगार एवं बेरोजगारी की स्थिति पर आंकड़ों का प्राथमिक स्त्रोत है.
इस सर्वे के तहत भारत के 12,562 शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों, 1,00,344 परिवारों और 4,10,818 व्यक्तियों को शामिल किया गया है. सिर्फ इसमें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के उन गांवों को छोड़ा गया है जिन तक पहुंच पाना पूरे साल बेहद कठिन होता है.
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