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Friday, 22 November, 2024
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देसी वैश्विक माइनॉरिटी इंडेक्स में भारत टॉप पर, कहा- CAA का विरोध ‘मुसलमानों की स्थिति को दिखाता है’

अमेरिकी रिपोर्ट के भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के खतरे में होने का दावा करने के एक सप्ताह बाद, पटना स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस ने भारत को वैश्विक अल्पसंख्यक सूचकांक में शीर्ष रैंक दी है.

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नई दिल्ली: अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) की रिपोर्ट के एक हफ्ते बाद जिसमें दावा किया गया है कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और संबंधित मानवाधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है, वहीं धर्म, सबको साथ लेकर चलना और वैश्विक अल्पसंख्यक सूचकांक के प्रति राज्य की तटस्थता को लेकर पटना स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस (CPA) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में भारत को टॉप रैंक दी गई है.

पूर्व भारतीय उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा मंगलवार को जारी सीपीए की ग्लोबल माइनॉरिटी रिपोर्ट ने यूएसए को वैश्विक अल्पसंख्यक सूचकांक में चौथे स्थान पर रखा है.

यह दावा करते हुए कि यह पहली बार एक अफ्रीकी-एशियाई या ‘गैर-पश्चिमी’ देश ने इस तरह की रिपोर्ट तैयार की है, रिपोर्ट के लेखक और सीपीए पटना के अध्यक्ष दुर्गानंद झा ने मजाक में कहा, ‘अब वे अपनी रैंकिंग के बारे में शिकायत करेंगे, हम नहीं.’

भारत सरकार ने इससे पहले USCIRF की रिपोर्ट को ‘गलत और पक्षपाती’ कहते हुए खारिज कर दिया था. विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता, अरिंदम बागची ने आरोप लगाया था कि USCIRF में लगातार तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने की प्रवृत्ति है जो भारत, इसके संवैधानिक ढांचे, बहुलता और मजबूत लोकतांत्रिक प्रणाली के बारे में उनकी समझ की कमी को दिखाता है.

सीपीए रिपोर्ट भारत को राज्य की धर्म के प्रति तटस्थता सूचकांक और समावेशी सूचकांक में टॉप पर रखा है और राज्य की ओर से भेदभाव सूचकांक में पांचवें नंबर पर रखती है – यह देश के संविधान और कानून द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति भेदभाव की स्थिति को दिखाता है.


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दिल्ली के इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स में जारी सीपीए की रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों के समावेशी और उनके प्रति व्यवहार को लेकर भारत की प्रशंसा की गई है, जिसमें कहा गया है कि सीएए (2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम) एक्ट और मुस्लिम समुदाय द्वारा प्रदर्शन को देखते हुए मुसलमानों को भी भारत की नागरिकता प्राप्त करने के पात्र अल्पसंख्यकों की सूची में शामिल किया गया है, जो भारत में मुसलमानों की स्थिति का सबसे अहम तौर पर दिखाता है. यह तथ्य कि धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों को भारत में समय-समय पर लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर पदोन्नत किया गया है, जो कि धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति का एक महत्वपूर्ण संकेतक है.

हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि, ‘यदि भारत देश में संघर्षपूर्ण स्थितियों से बचना चाहता है तो उसे अपनी अल्पसंख्यक नीति को युक्तिसंगत बनाने की जरूरत है.’

नायडू ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, ‘अब तक ये तथाकथित विकसित देश दूसरों को उपदेश तो दे रहे थे, लेकिन कभी अपने अंदर नहीं झांका कि उनके यहां क्या हो रहा है. यह रिपोर्ट दुनिया को सच्चाई दिखाने का एक प्रयास है.’

उन्होंने कहा: ‘कोई भी रिपोर्ट तथ्य-आधारित, विश्लेषणात्मक होनी चाहिए, लेकिन हम इन सभी वर्षों में जो देख रहे हैं वह ‘भारत को कोसना’ है. यह वर्षों से चल रहा है और दुर्भाग्य से कुछ भारतीय भी इसमें शामिल हो गए हैं.’

सीपीए रिपोर्ट का जिक्र करते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘यह एक वास्तविक स्थिति दिखाने का प्रयास है ताकि लोग अध्ययन कर सकें. बिना किसी पक्षपात के सार्थक खुली चर्चा होने दें.’

नायडू ने कहा कि भारत सरकार की अल्पसंख्यक समर्थक नीतियां सरकार की समावेशी प्रकृति को दिखाती हैं.

भेदभाव सूचकांक में अफगानिस्तान सबसे ऊपर

सीपीए की रिपोर्ट के अनुसार, इसका उद्देश्य विभिन्न देशों के अपने-अपने अल्पसंख्यकों के प्रति दृष्टिकोण को समझना था और 10 लाख से अधिक आबादी वाले देशों को अध्ययन में शामिल किया गया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि संसाधनों की कमी के कारण, देशों का मूल्यांकन संवैधानिक प्रावधानों, भूमि के कानूनों, अल्पसंख्यक धार्मिकवादियों के प्रति राज्य के दृष्टिकोण, सार्वजनिक नीति और सर्वोच्च पद को लेकर धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए अवसरों के खुलेपन जैसे व्यापक मापदंडों बनाए गए.

जबकि रिपोर्ट ने भारत को राज्य की धार्मिक तटस्थता, राज्य समावेशिता सूचकांक और वैश्विक अल्पसंख्यक सूचकांक पर 100 में से 100 अंक दिए हैं, सोमालिया को तीनों मापदंडों पर सबसे नीचे रखा गया. अफगानिस्तान को राज्य की ओर से भेदभाव सूचकांक में सबसे ऊपर पर रखा गया है.

दक्षिण कोरिया, जापान, पनामा और संयुक्त राज्य अमेरिका वैश्विक अल्पसंख्यक सूचकांक में शीर्ष पांच रैंकिंग में भारत के साथ शामिल हुए हैं.

आईजीएनसीए में रिपोर्ट के जारी किए जाने के दौरान में भारत के केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर, आईजीएनसीए के अध्यक्ष राम बहादुर राय और परमार्थ निकेतन आश्रम के प्रमुख स्वामी चिदानंद सरस्वती ने भी हिस्सा लिया.

इवेंट में, माहुरकर ने कहा कि भारत में मौजूदा दौर राष्ट्रीय जागरण का दौर है, जो आदर्श रूप से आजादी के बाद शुरू हो जाना चाहिए था. उन्होंने नेहरू-गांधी परिवार की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘लेकिन गांधी जी की मृत्यु के बाद, कुछ लोग सत्ता में आए, जिन्हें भारतीय संस्कृति में कोई विश्वास नहीं था.’

उन्होंने आगे कहा: ‘परिणामस्वरूप, भारत में वामपंथी विचारधारा की जड़ें मजबूत हुईं. आजादी के बाद जो काम होना चाहिए था, वह 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद शुरू हुआ- चाहे वह कश्मीर में धारा 370 को हटाना हो या राम मंदिर का निर्माण (अयोध्या में).’

जबकि चिदानंद सरस्वती ने कहा कि रिपोर्ट नई बहस और संवाद को जन्म देगी, राय ने कहा कि रिपोर्ट अनूठी है क्योंकि यह सरकार द्वारा प्रायोजित नहीं है, बल्कि नागरिकों द्वारा प्रायोजित है.

सरस्वती ने धर्मांतरण के मुद्दे पर भी बात की, दावा किया कि घर चौकसी (सतर्क होना) घर वापसी (मूल धर्म में वापस आना) से अधिक महत्वपूर्ण है. झा ने धार्मांतरण के विषय को भी छुआ, कहा कि धर्मांतरण को हतोत्साहित किया जाना चाहिए, विशेष रूप से बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक धर्मों में.

सीपीए रिपोर्ट के लेखक ने यह भी दावा किया कि मानवाधिकारों को एक रणनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को धर्म के आधार पर इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) जैसी चीजों को हतोत्साहित करना चाहिए. इसी तरह, माहुरकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को इस रिपोर्ट को मान्यता देनी चाहिए और इससे सबक लेना चाहिए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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