नई दिल्ली: शरीफ खान बस इतना चाहते थे कि एक आखिरी बार अपनी बहन को देख पाते, उसकी अंतिम विदाई को याद रखने के लिए एक या दो फोटो खींच पाते. लेकिन अब उन्हें अपना पूरा जीवन इस अधूरी इच्छा के साथ ही गुजारना होगा.
खान की बहन अंजुम बी, जो तीन बच्चों की मां थी, जिसकी मंगलवार तड़के दिल्ली में कोविड-19 के कारण मौत हो गई, का अंतिम संस्कार राजधानी के जाने-माने अस्पताल एम्स की मॉर्चरी में हुई अदला-बदली के बाद एक हिंदू परिवार ने कर दिया था.
शरीफ जहां अंजुम के बच्चों को लेकर अपने गृह नगर बरेली लौट गए हैं वहीं उनके भाई नसीम और आरिफ उसकी अस्थियों की तलाश में गुरुवार को दिनभर दिल्ली की सड़कों और गाजियाबाद की संकरी गलियों की खाक छानते रहे. इस दौरान दिप्रिंट भी उनके साथ मौजूद रहा लेकिन यह तलाश निरर्थक ही साबित हुई.
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परिवार को अब भी नहीं पता कि अंजुम के अवशेष कहां हैं. उनका कहना है कि एम्स उसकी अस्थियां अपने पास होने का दावा करता है लेकिन ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे वे सच्चाई जान पाएं.
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‘हमें कैसे पता लगे कि ये वही है?’
कोविड-19 प्रोटोकॉल निर्देशित करता है कि मरीजों के शवों को बॉडी बैग में अंतिम संस्कार के लिए भेज दिया जाए और दोनों परिवारों में से किसी को भी उन्हें मिले शव देखने को नहीं मिले.
अगर अपनी बहन की आखिरी झलक देखने की तीव्र उत्कंठा न होती तो 22 वर्षीय शरीफ खान, शायद गलत शव ही दफना देता और होता भी शायद यही. लेकिन मंगलवार को शव दफनाने पहुंचने से ठीक पहले उसने कब्रिस्तान के एक कर्मचारी को 500 रुपये दिए और अनुरोध किया कि एक बार उसका चेहरा देख लेने दे.
इस तरह पकड़ में आई सारी गड़बड़ी
इस संबंध में शिकायत दर्ज कराने के लिए परिवार ने सबसे पहले सफदरजंग पुलिस स्टेशन जाने के दो दिन बाद गुरुवार को आरिफ और नसीम ने न्याय के लिए एक बार फिर यहां दस्तक दी.
हालांकि, पुलिस स्टेशन के कर्मियों ने परिवार को कोई जवाब नहीं दिया और उनकी शिकायत पर मामला तक दर्ज नहीं किया. दिप्रिंट ने इस संबंध में सफदरजंग स्टेशन के एसएचओ से फोन कॉल के जरिये संपर्क साधा और यहां तक कि स्टेशन पर भी पहुंचा, लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
पुलिस की मदद न मिलने पर परिवार ने अस्थियों की तलाश अपने स्तर पर शुरू की लेकिन यह सिर्फ एक दुष्कर कार्य बनकर रह गया.
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नसीम ने बताया, ‘एम्स के अधिकारियों से किसी ने कल (बुधवार को) मुझसे संपर्क किया, मुझे बताया कि उनके पास दाह संस्कार के बाद बचे मेरी बहन के अवशेष हैं और उन्होंने मुझे आकर उन्हें लेने को कहा. लेकिन मुझे कैसे पता चलेगा कि वो मेरी बहन के ही अवशेष हैं और किसी अन्य के नहीं? मैंने उनसे डीएनए टेस्ट कराने को कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया.’
शवों का सही तरीके से दाह-संस्कार होने के बाद डीएनए टेस्ट लगभग असंभव माना जाता है क्योंकि आग सभी आनुवांशिक तत्वों को नष्ट कर देती है.
मामले पर टिप्पणी के लिए संपर्क करने पर एम्स के जनसंपर्क अधिकारी बी.एन. आचार्य ने कहा कि उन्होंने इस गड़बड़ी की जांच की है लेकिन अंजुम की अस्थियां कहां हैं, इस पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.
उन्होंने आगे कहा, ‘मुर्दाघर कर्मचारियों में से एक को नौकरी से निकाला जा चुका है, जबकि दूसरे को निलंबित कर दिया गया है. शरीर रचना विज्ञान विभाग के प्रमुख के नेतृत्व में एक समिति गठित की गई है और मामले की जांच जारी है.’
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अवशेष कहां पर हैं?
बुधवार तक, अंजुम बी के भाइयों को उस महिला की पहचान पता लग गई थी जिनके शव की उनकी बहन के साथ अदला-बदली हुई थी. कुसुमलता, जो दो बच्चों की मां थी, ने कोविड-19 के कारण सोमवार को दम तोड़ दिया था.
नसीम के मुताबिक, जब इस गड़बड़ी के बारे में बताया तो एम्स के अधिकारियों ने परिवार को एक फोन नंबर उपलब्ध कराया, कहा गया था कि यह कुसुमलता के पति का है.
खान ने गुरुवार दोपहर कहा, ‘मैंने कल शाम फोन किया और उसके पति ने जवाब दिया. उन्होंने मुझे बताया कि वह एम्स ट्रॉमा सेंटर में हैं और कहा कि पांच मिनट में बाहर आकर मुझसे मिलेंगे. लेकिन वो न अब आए न तब और उसके बाद अपना फोन भी स्विच ऑफ कर दिया.
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दोपहर 3 बजे के करीब आरिफ, नसीम और उनके दो रिश्तेदार पंजाबी बाग श्मशान घाट रवाना हो गए, जहां अंजुम का अंतिम संस्कार किया गया था.
पहले तो, कर्मचारी उनसे बात करने से हिचकते थे, शायद डर था कि सारी गड़बड़ी का ठीकरा उन्हीं पर फोड़ दिया जाएगा. भाइयों को तमाम मिन्नतों के बाद तभी अंदर आने दिया गया जब उन्होंने कई बार बताया कि केवल अस्पताल को ही दोषी ठहराया है.
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फिर भाइयों ने उन रजिस्टरों की जांच की जिसमें सभी लोगों के दाह-संस्कार का ब्योरा दर्ज किया जाता है.
श्मशान घाट के एक कर्मचारी ने बताया, ‘7 जुलाई को कुसुमलता के नाम से यहां एक शव आया था और उसका अंतिम संस्कार हुआ था. इसके तुरंत बाद, हमें एम्स ट्रॉमा सेंटर से उसका ब्योरा लेने के संबंध में एक फोन आया था. खान ने एम्स अधिकारियों की तरफ से जो जानकारी दिए जाने की बात कही थी, उसके विपरीत कर्मचारी ने कहा, ‘शरीर के अवशेष अब भी यहीं पर हैं, न एम्स और न ही परिवार की तरफ से ही कोई सदस्य उन्हें लेने आया’.
श्मशान से अस्थियां लेने के लिए एक रसीद की जरूरत होती है, जो नसीम के पास नहीं थी और, एक बार फिर उनके हाथ खाली रह गए. हालांकि, श्मशान घाट जाने से आशा की एक मामूली किरण जरूर नजर आई थी क्योंकि इन भाइयों को गाजियाबाद में कुसुमलता के घर का पता मिल गया था.
करीब एक घंटे ड्राइव करने के बाद वे गाजियाबाद के कैलाश नगर में थे, फिर कुसुमलता के घर का पता लगाने के लिए और 30 मिनट तक एक से दूसरी कॉलोनी में भटकते रहे.
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बस क्षमायाचना
हल्के पीले रंग के घर के दरवाजे पर क्वारेंटाइन का एक नोटिस चिपका था. खटखटाने पर फटेहाल बनियान पहने और मास्क लगाए मध्यम आयु वर्ग के व्यक्ति ने दरवाजा खोला, थोड़ी देर में उनके बच्चे भी वहां आ गए.
बेटे आदित्य गर्ग ने बताया कि उनकी मां को मूलत: गैंगरीन की सर्जरी के लिए 28 जून को स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उन्होंने कहा, ‘लेकिन सर्जरी के बाद भी उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ तो हम 2 जुलाई को उन्हें एम्स ट्रॉमा सेंटर ले गए, तभी वहां पर उन्हें बताया गया वह कोरोनावायरस पॉजिटिव निकली हैं. वह कुछ दिनों वहीं रही और 6 जुलाई को उनका निधन हो गया.’
कुसुम के पति महेश गर्ग ने अंजुम के परिवार से माफी मांगने के लिए अपने हाथ जोड़ लिए. ‘शव श्मशान ले जाने से पहले हमें अस्पताल से जो पर्ची मिली, वह कुछ गीली थी. मैं बमुश्किल ही उस पर लिखे शब्द पढ़ सकता था लेकिन जो कुछ अक्षर देखे वो उसके नाम से मेल खाते थे इसलिए मैंने कुछ पूछा भी नहीं. मैं अपनी पत्नी को खोने के कारण सदमे में था.’
गर्ग ने बताया कि अंतिम संस्कार के कुछ घंटे बाद ही उन्हें एम्स से शव की अदला-बदली के बारे में फोन आया और वे अगले दिन फिर शव लेने के लिए अस्पताल पहुंचे.
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आदित्य ने कहा, ‘इस बार उन्होंने हमारे कहे बिना ही चेहरा दिखा दिया. हम शव को पंजाबी बाग श्मशान ले गए लेकिन पहले ही उस नाम और पते के साथ शव का अंतिम संस्कार हो चुका था तो हमें लौटना पड़ा. फिर हम निगमबोध घाट पर गए और बाद में अस्थियों को यमुना में विसर्जित कर दिया.
‘बस मन की शांति चाहिए’
दिन लगभग खत्म होने को आ रहा है और खान भी अपने सभी विकल्पों की तलाश करके थक चुके हैं. अब बस इतना ही कर सकते हैं कि एम्स उन्हें जो अस्थियां दे रहा उसे स्वीकार कर लें.
नसीम ने कहा कि उन्हें अंजुम के बच्चों, 14 साल की एक लड़की और 11 और पांच साल की उम्र के दो लड़कों की चिंता सता रही है, जो अब अनाथ हो चुके हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘बच्चों ने कुछ महीने पहले पिता को खो दिया (कोविड के कारण नहीं) था और अब उनकी मां भी नहीं रही. लेकिन वे आखिरी बार उसका चेहरा भी नहीं देख पाए.’ साथ ही कहा, ‘मेरी भांजी ने अब तक रोना बंद नहीं किया है. थकावट के कारण वह बेहोश भी हो गई थी. हम तो बस मन की शांति चाहते थे, लेकिन हमसे वह भी छीन ली गई.’
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उन्होंने आगे कहा कि परिवार शायद ही इस मामले में आगे कुछ कानूनी कार्रवाई करे. ‘हमने अभी तक इस बारे में अपना मन नहीं बनाया है.‘
इस बीच, वे इसकी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि अपनी बहन को पूरे सम्मान के साथ अंतिम विदाई दे सकें. बरेली में गुरुवार को शरीफ और बाकी परिवार की तरफ से तीजा किया गया, इस्लामी रिवाज में मौत के तीसरे दिन इसे मनाने की परंपरा है.
उनके पास अपनी बहन का शव या उसके अवशेष तो नहीं है लेकिन निभाने के लिए परंपराएं हैं.
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