नयी दिल्ली, 14 जून (भाषा) पूर्व राजनयिक दिनकर श्रीवास्तव ने कहा है कि पाकिस्तान की युद्ध रणनीति में अपनी संलिप्तता से इनकार करना शामिल है और इसका उदाहरण 1947 में कश्मीर पर ‘‘कबायली हमला’’, 1965 में ऑपरेशन जिब्राल्टर, 1999 में कारगिल युद्ध, 2009 में मुंबई आतंकी हमला और हाल ही में हआ पहलगाम हमला है।
विदेश मंत्रालय में सेवा दे चुके और पाकिस्तान, अमेरिका एवं यूरोपीय संघ में पदस्थ रहे श्रीवास्तव ने कहा कि इन कृत्यों में पाकिस्तान की संलिप्तता बाद में स्थापित हुई।
ईरान में भारत के राजदूत रह चुके श्रीवास्तव ने ‘पीटीआई-भाषा’ को ईमेल के जरिए बताया, ‘‘पाकिस्तान ने शुरू में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस बात से इनकार किया था कि उसकी सेनाएं (1947 के कबायली हमलों में) शामिल थीं। मई 1948 में पाकिस्तान के विदेश मंत्री सर ज़फ़रुल्ला खान ने भारत और पाकिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र आयोग के समक्ष स्वीकार किया था कि पाकिस्तानी सेना की दो ब्रिगेड कश्मीर में लड़ रही थीं, जिसका भारत में विलय कर लिया गया था।’’
श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक, ‘‘पाकिस्तान: विचारधाराएं, रणनीतियां और हित’’ में विभाजन, द्वि-राष्ट्र सिद्धांत, इसके राजनीतिक नेताओं एवं सेना के बीच खींचतान, इसके कई आंतरिक संघर्षों और देश के अनिश्चित भविष्य की ओर बढ़ने का उल्लेख किया है।’’
पाकिस्तान की युद्ध रणनीति के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि जब तक उसे लगता है कि यह सिद्धांत काम कर रहा है, वह आतंकवाद को प्रायोजित करेगा। हालांकि, पहलगाम आतंकी हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर के रूप में भारत के कड़े जवाब ने ‘‘आतंकवादियों और उनके आकाओं’’ को स्पष्ट चेतावनी दी है।
उन्होंने कहा, ‘‘अस्वीकार करना पाकिस्तान की युद्ध रणनीति का हिस्सा है। अगर उन्हें लगता है कि यह सिद्धांत काम कर रहा है तो वे आतंकवाद को प्रायोजित करना जारी रखेंगे। ऑपरेशन सिंदूर ने आतंकवादियों और पाकिस्तानी सेना तथा आईएसआई में उनके आकाओं को संदेश दिया है कि इस तरह की हरकत का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा।’’
श्रीवास्तव ने कहा कि यह आतंकी कृत्य (पहलगाम हमला) आंशिक रूप से पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति से जुड़ा हुआ है।
भाषा सुभाष रंजन
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