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Thursday, 28 August, 2025
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दिल्ली में अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पन्न करने के संयंत्रों का सेहत पर बहुत मामूली असर पड़ता है:रिपोर्ट

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नयी दिल्ली, 24 अगस्त (भाषा) दिल्ली के ओखला, गाजीपुर, बवाना और तेहखंड स्थित अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पन्न करने वाले सभी चार संयंत्र काफी हद तक नियामक मानदंडों के अनुरूप हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए न्यूनतम जोखिम उत्पन्न करते हैं।

यह बात केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की एक संयुक्त रिपोर्ट में सामने आयी है।

उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी चार संयंत्र पूर्व-प्रसंस्करण इकाइयों के साथ संचालित हैं, जो ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुरूप अपशिष्ट का ‘कैलोरिफिक वैल्यू’ 1,500 किलोकैलोरी प्रति किलोग्राम से अधिक कर देते हैं।

‘कैलोरिफिक वैल्यू’ ईंधन या पदार्थ को जलाने पर उससे निकलने वाली कुल ऊष्मा को कहा जाता है।

कण पदार्थ और निकेल जैसी भारी धातुओं सहित ‘स्टैक उत्सर्जन’ निर्धारित मानकों को पूरा करता है, हालांकि डाइऑक्सिन, फ्यूरान और कैडमियम प्लस थैलियम का स्तर बवाना में मानदंडों से अधिक है। हालांकि, उस संयंत्र में भी डाइऑक्सिन उत्सर्जन से अनुमानित अतिरिक्त कैंसर जोखिम अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी द्वारा निर्धारित दस लाख में एक की सीमा से काफी नीचे है।

संयंत्रों के आसपास के आठ स्टेशन पर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी से पता चला कि पीएम 10 और पीएम 2.5 कभी-कभी निर्धारित सीमा को पार करते है, लेकिन वे दिल्ली के 39 सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन (सीएएक्यूएमएस) में देखी गई सीमा के भीतर थे।

कुछ स्थानों पर ओज़ोन और निकल का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया।

हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि निकल की अधिकता 24 घंटे के आंकड़ों पर आधारित है और दीर्घकालिक औसत से सीधे तुलनीय नहीं है और इन प्रदूषकों में अपशिष्ट से ऊर्जा (डब्ल्यूटीई) संयंत्रों का योगदान नगण्य है।

इसमें गाजीपुर और बवाना में निकल की निगरानी बढ़ाने की बात कही गई है।

अपशिष्ट राख के संबंध में, तीन संयंत्रों में बॉटम ऐश मानकों को पूरा करती है, जबकि फ्लाई ऐश बवाना को छोड़कर सभी संयंत्रों में मानकों को पूरा करती है, जहां फ्लाई ऐश कैडमियम, मैंगनीज, सीसा और तांबे के मानकों से अधिक है।

निक्षालन उपचार के आकड़े से पता चला है कि बवाना का उपचारित अपशिष्ट जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग के मानकों से अधिक है।

गाजीपुर में घुले हुए ठोस और क्लोराइड का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया, जबकि तेहखंड में क्लोराइड और फेनोलिक यौगिकों दोनों का स्तर अधिक पाया गया।

भूजल के नमूनों में सभी स्थलों पर कैडमियम, तांबा और सीसा अनुमेय स्तर के भीतर पाया गया, जबकि बवाना और गाजीपुर में लौह तत्व सीमा से अधिक पाया गया।

रिपोर्ट में व्यापक भूजल अवलोकनों ने बवाना, गाजीपुर और तेहखंड के आसपास कुल घुलित ठोस पदार्थ, खारापन, सल्फेट, नाइट्रेट और फेनोलिक यौगिकों में वृद्धि का उल्लेख किया गया है।

रिपोर्ट में कणिकीय पदार्थ, सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, डाइऑक्सिन और फ्यूरान (24 घंटे और वार्षिक औसत दोनों) की मॉडल जमीनी स्तर की सांद्रता अत्यंत कम (0.05 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कम) और राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों से काफी नीचे है।

हाल ही में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने यह सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किए हैं कि सभी डब्ल्यूटीई संयंत्र वास्तविक समय ऑनलाइन सतत उत्सर्जन निगरानी प्रणालियों और ऑनलाइन सतत अपशिष्ट जल निगरानी प्रणालियों से सुसज्जित हों।

इन प्रणालियों को तीन महीने के भीतर राज्य प्रदूषण बोर्ड और सीपीसीबी को डेटा प्रेषित करना होगा। नगरपालिका ठोस अपशिष्ट भस्मीकरण-आधारित डब्ल्यूटीई संयंत्रों पर एक मसौदा दिशानिर्देश भी सार्वजनिक परामर्श के लिए प्रकाशित किया गया है।

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि यदि हितधारक बेहतर राख पृथक्करण, गंध नियंत्रण, हरित पट्टी और अपशिष्ट उपचार सहित अनुशंसित उपायों को लागू करते हैं, तो डब्ल्यूटीई संयंत्रों के समग्र पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभाव को कम किया जा सकता है।

यह रिपोर्ट डब्ल्यूटीई परियोजनाओं की अदालती पड़ताल के बीच आई है।

उच्चतम न्यायालय दिल्ली के अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित पृथक्करण, निगरानी और जवाबदेही पर निर्देश जारी करता रहा है।

अप्रैल में, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने सीपीसीबी को डब्ल्यूटीई संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन करने का निर्देश दिया था और अपशिष्ट पृथक्करण (विशेष रूप से स्रोत पर) को प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए महत्वपूर्ण बताया था।

जुलाई में एक अलग घटनाक्रम में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने आसपास के निवासियों के विरोध के बावजूद, बवाना में 30 मेगावाट के डब्ल्यूटीई संयंत्र को पर्यावरणीय मंज़ूरी दे दी। 660 करोड़ रुपये की इस परियोजना में प्रदूषण नियंत्रण के लिए 91.6 करोड़ रुपये और वन्यजीव संरक्षण एवं स्वास्थ्य सेवा के प्रावधान शामिल हैं।

निवासियों ने इन आश्वासनों की आलोचना की, वायु गुणवत्ता संबंधी चिंताओं का हवाला दिया और संभावित प्रभाव की तुलना ओखला संयंत्र से की, जो लंबे समय से विवाद का विषय रहा है।

उच्चतम न्यायालय ने संयंत्र के संभावित स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभाव पर सीपीसीबी की रिपोर्ट मांगी है।

भाषा अमित संतोष

संतोष

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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