नई दिल्ली: दिल्ली में खुदरा क्षेत्र में कम से कम अगले छह महीने तक सरकारी शराब की दुकानों का दबदबा बना रहेगा. वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि अरविंद केजरीवाल सरकार की मौजूदा नीति को 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दिया गया है.
वर्तमान नीति 30 सितंबर को समाप्त हो रही है. अगस्त-सितंबर 2022 के बाद से यह तीसरा ऐसा विस्तार है, जब अनियमितताओं के आरोपों के कारण नीति को रद्द कर दिया गया था.
दिप्रिंट ने कॉल और टेक्स्ट संदेशों के माध्यम से टिप्पणी के लिए दिल्ली के उत्पाद शुल्क विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा. लेकिन दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि 2021-22 की विवादास्पद उत्पाद शुल्क नीति की चल रही जांच के कारण किसी भी नई उत्पाद शुल्क नीति को अंतिम रूप नहीं दिया गया है.
एक सरकारी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि विवादास्पद नीति के संबंध में उत्पाद शुल्क विभाग “बहुत सावधानी से काम कर रहा है”, क्योंकि इसी कारण पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी हुई थी और पूर्व उत्पाद शुल्क आयुक्त अरावा गोपी कृष्ण को निलंबित कर दिया गया था.
सूत्र ने कहा, “विभाग बदलावों पर जोर देना चाहता था और कुछ पुराने प्रावधानों को खत्म करना चाहता था, जैसे कि माइक्रोब्रुअरीज पर प्रतिबंध, जहां बीयर केवल परिसर में ही बेची जा सकती है, और जो केगिंग या बॉटलिंग की अनुमति नहीं देती है.”
मौजूदा उत्पाद शुल्क नीति के प्रावधानों के तहत, होटल, क्लब और रेस्तरां में बिक्री के अलावा, शराब की खुदरा बिक्री सरकारी दुकानों द्वारा नियंत्रित की जाती है. यह विवादास्पद 2021-22 नीति के विपरीत है, जिसके तहत शराब की बिक्री पूरी तरह से निजी कंपनियों को सौंप दी गई थी. उस नीति के तहत लक्ष्य शहर में लगभग 850 शराब की दुकानें खोलना और वॉक-इन शराब खरीदने के अनुभव की अवधारणा लाना था.
सरकारी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “मौजूदा परिदृश्य में जो स्थिति है, उसमें कोई नई उत्पाद शुल्क नीति नजर नहीं आ रही है.”
लेकिन शराब कंपनियां नियामक ढांचे पर बेहतर स्पष्टता की मांग कर रही हैं.
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन अल्कोहलिक बेवरेज कंपनीज (सीआईएबीसी) के महानिदेशक विनोद गिरी के अनुसार, मौजूदा नीति 2021-22 की नई उत्पाद शुल्क नीति की अचानक वापसी के कारण नियामक शून्य को रोकने के लिए एक स्टॉप-गैप उपाय थी.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “अब कारोबार को चालू रखने के लिए इसे बार-बार बढ़ाया जा रहा है. यह सभी हितधारकों के लिए काम करने के लिए एक नियोजित उत्पाद शुल्क नीति डिज़ाइन नहीं है. उद्योग को किसी भी चीज़ से ज़्यादा नियामक स्थिरता की ज़रूरत है.”
दिल्ली में शराब की दुकानें बढ़ाने की जरूरत
सरकारी सूत्र ने कहा कि अगले छह महीनों के लिए लाइसेंस जारी करने की व्यावसायिक प्रक्रिया जल्द ही शुरू होने वाली है, लेकिन उत्पाद शुल्क विभाग सक्रिय रूप से शहर में प्रीमियम शराब की दुकानों की संख्या बढ़ाने पर विचार कर रहा है.
मानक सरकारी दुकानों के विपरीत, प्रीमियम शराब की दुकानें प्रशिक्षित कर्मचारियों और चिलर के साथ-साथ वॉक-इन अनुभव प्रदान करती हैं.
वर्तमान में, शहर में ऐसी 48 दुकानें हैं, जबकि उत्पाद शुल्क विभाग की वेबसाइट के अनुसार, 8 अगस्त तक शराब की कुल दुकानों की संख्या 617 है.
हालांकि, उत्पाद शुल्क अधिकारियों ने माना है कि शहर की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कम से कम 1,500 शराब की दुकानों की आवश्यकता है.
वर्तमान परिदृश्य में, नियमित सरकारी दुकानों में चिलर, शराब की व्यापक रेंज और प्रशिक्षित कर्मचारियों जैसी सुविधाओं का अभाव है. इसके अलावा, ग्राहकों के लिए वॉक-इन अनुभव अनुपस्थित रहता है, क्योंकि काउंटरों के सामने कई कतारें लगी रहती हैं.
लेकिन स्पष्ट दीर्घकालिक नीति की कमी का मतलब है कि कंपनियां आगे की योजनाएं नहीं बना सकती हैं. पहले उद्धृत गिरि के अनुसार, कम से कम अगले एक या दो साल में नीति के मोर्चे पर कुछ स्पष्टता की जरूरत है.
उन्होंने कहा, “हाल के दिनों में हमने उत्पाद शुल्क नीति में लगातार बड़े बदलाव देखे हैं जिनका उद्योग पर अस्थिर प्रभाव पड़ा है. इसके अलावा, भले ही पॉलिसी हर बार कुछ महीनों के लिए बढ़ा दी जाती है, लेकिन विभाग पूरे वर्ष के लिए शुल्क लेता है. यह निष्पक्ष व्यापार के सभी मानदंडों के खिलाफ है. अगर स्थिति जारी रही, तो जिन कंपनियों के पास देश में कहीं और आपूर्ति करने का विकल्प है, वे दिल्ली में व्यापार करने में संकोच करेंगी.”
(संपादन: अलमिना खातून)
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