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Wednesday, 17 December, 2025
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दिल्ली विवि ने स्नातक प्रवेश फॉर्म में गलती को ‘अनजाने में हुई चूक’ बताया; पक्षपात का आरोप

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नयी दिल्ली, 22 जून (भाषा) दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने स्नातक प्रवेश फॉर्म में ‘उर्दू’ को विवादास्पद रूप से हटा दिए जाने तथा ‘मुस्लिम’ को मातृभाषा के रूप में शामिल किए जाने को ‘असावधानीवश हुई गलती’ बताया है, लेकिन कई प्रोफेसर ने सांप्रदायिक पूर्वाग्रह का आरोप लगाते हुए तत्काल सुधार, जवाबदेही तथा सार्वजनिक माफी की मांग की है।

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक बयान में कहा, ‘दिल्ली विश्वविद्यालय अपने प्रवेश फॉर्म में अनजाने में हुई त्रुटि के लिए ईमानदारी से खेद व्यक्त करता है। हम आपकी चिंताओं को समझते हैं और उन्हें दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’

बयान में कहा गया, ‘हालाँकि, पूरी तरह से अनजाने में हुई इस चूक के पीछे निहित उद्देश्य को जिम्मेदार ठहराना अनुचित है। हम सभी से अनुरोध करते हैं कि वे विश्वविद्यालय के विविधतापूर्ण और सामंजस्यपूर्ण माहौल को खराब न करें।’

हालांकि डीयू के शिक्षाविदों ने फॉर्म में प्रयुक्त भाषा की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि यह सांप्रदायिक मानसिकता को दर्शाता है और संविधान को कमजोर करता है।

मिरांडा हाउस में प्रोफेसर आभा देव हबीब ने फेसबुक पर लिखा, ”मातृभाषा’ के अंतर्गत, प्रपत्र में उर्दू को पूरी तरह से छोड़ दिया गया है, जबकि ‘मुस्लिम’ को मातृभाषा के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यह इस्लामोफोबिक के अलावा और कुछ नहीं हो सकता।’

प्रोफेसर ने कहा कि यह चूक विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि उर्दू संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है।

उन्होंने कहा, ‘यह सांप्रदायिक मानसिकता से प्रेरित एक गहरी मूर्खता को दर्शाता है। इसकी निंदा की जानी चाहिए, इसमें सुधार किया जाना चाहिए और इसके लिए माफी मांगी जानी चाहिए।’

इसी तरह की चिंता जताते हुए किरोड़ीमल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर और डूटा के कार्यकारी सदस्य रुद्राशीष चक्रवर्ती ने कहा कि यह गलती लिपिकीय नहीं है, बल्कि एक बड़े चलन का हिस्सा है।

उन्होंने कहा, ‘उर्दू को हटाकर और उसकी जगह ‘मुस्लिम’ को मातृभाषा के रूप में रखकर प्रशासन ने प्रभावी रूप से एक भाषा और संस्कृति को निशाना बनाया है। यह शैक्षणिक मानकों और संवैधानिक मूल्यों का गंभीर उल्लंघन है।’ उन्होंने इसे ‘देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को ‘अन्य’ बनाने का बेशर्म प्रयास’ बताया।

उन्होंने फॉर्म में ‘मातृभाषा’ शब्द के प्रयोग पर भी आपत्ति जताई तथा तर्क दिया कि ‘मूल भाषा’ शब्द अकादमिक दृष्टि से अधिक उपयुक्त होता।

उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘फेसबुक’ पर लिखा, ‘डीयू प्रशासन को छात्रों के लिए इसे निर्धारित करने से पहले अकादमिक अंग्रेजी में एक रिफ्रेशर कोर्स करना चाहिए।’

विवाद इस बात पर और बढ़ गया कि आरक्षित श्रेणियों के आवेदकों के लिए फॉर्म में ‘मोची’ और ‘धोबी’ जैसी उपजातियों का उल्लेख करना अनिवार्य था।

संकाय सदस्यों ने इस कदम को असंवेदनशील और जातिवादी बताया।

यद्यपि विश्वविद्यालय ने इस समस्या को स्वीकार किया है, परंतु उसने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि त्रुटि कैसे हुई, या इसमें क्या परिवर्तन किए जा रहे हैं।

प्रोफेसर और मानवाधिकार समूह पारदर्शिता, औपचारिक माफी और भविष्य में ऐसी चूक को रोकने के लिए सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं।

भाषा

शुभम नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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