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रविवार, 1 जून, 2025
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‘डमी स्कूल’ की अनियंत्रित वृद्धि से दिल्ली के छात्र प्रतिकूल तौर पर हो रहे हैं प्रभावित: अदालत

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नयी दिल्ली, 28 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘डमी स्कूल’ की अनियंत्रित वृद्धि उन छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है जो वास्तव में ‘स्थानीय शिक्षा’ मानदंड को पूरा करते हैं और ऐसे विद्यालय अयोग्य अभ्यर्थियों को दिल्ली राज्य कोटे (डीएसक्यू) के तहत सीटें हासिल करने की अनुमति देते हैं।

उच्च न्यायालय ने नोटिस जारी किया और ‘डमी स्कूल’ की संख्या में बढ़ोतरी के खिलाफ दायर एक याचिका पर दिल्ली सरकार, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय (जीजीएसआईपीयू) से जवाब मांगा।

अदालत ने मामले की अगली सुनवायी की तिथि 29 नवंबर तय की।

उच्च न्यायालय डीएसक्यू के तहत एमबीबीएस या बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बीडीएस) सीटें आवंटित करने के लिए डीयू और जीजीएसआईपीयू द्वारा लागू पात्रता मानदंड को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रहा था।

राजीव अग्रवाल द्वारा दायर जनहित याचिका में दावा किया गया है कि ‘डमी स्कूल’ के पीछे का विचार ‘छात्रों को यह दिखाने के लिए एक आभासी मंच प्रदान करना है कि वे 10वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद दिल्ली आ गए हैं जिसका एकमात्र उद्देश्य किसी तरह दिल्ली राज्य कोटा सीटों का लाभ उठाना है, जिसे अन्यथा दिल्ली के वास्तविक निवासियों के बीच आवंटित किया जाना चाहिए।

‘डमी स्कूल’ आम स्कूलों की तरह होते हैं बस यहां ऐसे छात्रों को नियमित कक्षाओं के लिये आने की जरूरत नहीं होती जो जेईई मेन, जेईई एडवांस, नीट परीक्षा आदि की तैयारी कर रहे होते हैं। इन्हें नॉन-अटेंडिंग स्कूल भी कहा जाता है।

दिल्ली सरकार के स्थायी वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि दिल्ली में ‘डमी स्कूल’ की कोई अवधारणा नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता के वकील को सुनने के बाद, इस अदालत का प्रथम दृष्टया विचार है कि डमी स्कूल की अनियंत्रित वृद्धि उन छात्रों को नुकसान पहुंचाती है जो वास्तव में स्थानीय शिक्षा की आवश्यकता को पूरा करते हैं, लेकिन उनके बजाय अयोग्य छात्र डीएसक्यू के तहत सीटें हासिल कर लेते हैं।’’

याचिका में कहा गया है कि मानदंड के अनुसार, केवल वे उम्मीदवार जिन्होंने दिल्ली में स्थित किसी मान्यता प्राप्त स्कूल (जिसे ‘स्थानीय शिक्षा’ कहा जाता है) से कक्षा 11 और 12 की शिक्षा पूरी की है, उन्हें डीएसक्यू के तहत सीटें देने पर विचार किया जाता है।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अन्य राज्यों की तुलना में, दिल्ली राज्य कोटा के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए एकमात्र मानदंड के रूप में स्थानीय शिक्षा की आवश्यकता निर्धारित करने में अद्वितीय है।

उन्होंने दलील दी कि यह मानदंड राष्ट्रीय राजधानी में ‘डमी स्कूल’ के संख्या वृद्धि की सुविधा प्रदान करता है जो उन छात्रों के लिए हानिकारक है जो वास्तव में डीएसक्यू के तहत स्थानीय शिक्षा की आवश्यकता को पूरा करते हैं।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ऑगस्टीन पीटर ने कहा, ‘‘डमी स्कूल अनिवार्य रूप से निजी स्कूल और कोचिंग संस्थानों के साथ साझेदारी में स्थापित आभासी मंच हैं, जिन्हें केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा स्कूलों के रूप में मान्यता प्राप्त है, भले ही वे दैनिक शिक्षा में नहीं हैं।’’

पीटर ने कहा, ‘ऐसे स्कूल दिल्ली के बाहर रहने वाले छात्रों का नामांकन करते हैं, जिससे वे डीएसक्यू के तहत सीटों का नाजायज फायदा उठा पाते हैं।’’

वकील ने अदालत को दो कोचिंग संस्थानों की वेबसाइट भी दिखाईं जो ‘डमी स्कूल’ सुविधाएं प्रदान करते हैं।

भाषा अमित प्रशांत

प्रशांत

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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