नयी दिल्ली, 28 जनवरी (भाषा) दिल्ली पुलिस के अभियोजक ने शुक्रवार को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका का विरोध करते हुए फरवरी 2020 के दंगों की कथित साजिश की तुलना अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमले से की।
विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने सुनवाई के दौरान खालिद पर साजिश रचने के लिए बैठक आयोजित करने और नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ प्रदर्शन स्थल की निगरानी करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्ष विरोध को एक ‘‘मुखौटा’’ बनाकर कहीं भी प्रदर्शन की योजना बनाई गई और उसका परीक्षण किया गया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के समक्ष उमर की जमानत याचिका का विरोध करते हुए अभियोजक ने कहा, ‘‘9/11 होने से ठीक पहले, इसमें जुड़े सभी लोग एक विशेष स्थान पर पहुंचे और प्रशिक्षण लिया। उससे एक महीने पहले वे अपने-अपने स्थानों पर चले गए। इस मामले में भी यही चीज हुई है।’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘9/11 प्रकरण का संदर्भ बहुत प्रासंगिक है। 9/11 के पीछे जो व्यक्ति था, वह कभी अमेरिका नहीं गया। मलेशिया में बैठक कर साजिश की गई थी। उस समय वाट्सऐप चैट उपलब्ध नहीं थे। आज हमारे पास दस्तावेज उपलब्ध हैं कि वह समूह का हिस्सा था। यह दिखाने के लिए आधार है कि हिंसा होने वाली थी।’’
अभियोजक ने अदालत से आगे कहा कि 2020 के विरोध प्रदर्शन का मुद्दा सीएए या राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) नहीं बल्कि सरकार को शर्मिंदा करने और ऐसे कदम उठाने का था कि यह अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आ जाए।
सुनवाई की आखिरी तारीख पर अभियोजक ने अदालत को बताया कि सभी विरोध स्थलों को मस्जिदों से निकटता के कारण चुना गया था, लेकिन इसे एक मकसद से धर्मनिरपेक्षता का नाम दिया गया था।
खालिद और कई अन्य लोगों पर गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया और उन पर दंगों के ‘‘मास्टरमाइंड’’ होने का आरोप लगाया गया था। दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे।
भाषा सुरभि रंजन
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