नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी के बीच प्रयोग के तौर पर खोजे जा रहे उपचार के तरीकों में से एक प्लाज्मा थेरेपी ने गंभीर रोगियों के इलाज में उम्मीद की किरण जगाई है, दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का मामला भी इसके सफल नतीजों में से एक है.
इस उपचार में मरीज को कोविड-19 से ठीक हो चुके रोगी का प्लाज्मा चढ़ाया जाता है—एंटीबॉडी से समृद्ध प्लाज्मा प्राप्तकर्ता के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने में कारगर माना जाता है.
हालांकि, प्लाज्मा थेरेपी ठीक हो चुके मरीजों की प्लाज्मा देने की इच्छा पर निर्भर करती है, और इच्छुक दानकर्ताओं को खोजना बुनियादी स्तर पर एक कठिन कार्य साबित होता है.
अस्पतालों और कोविड-19 मरीजों के सामने दुविधा की सबसे बड़ी स्थिति यह है कि इच्छुक दानकर्ता को कुछ मानकों पर खरा उतरना होता है, और प्राप्तकर्ता और दानकर्ता दोनों का ब्लड ग्रुप भी मेल खाना चाहिए।
दिल्ली में सरकारी संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलिअरी साइंसेज (आईएलबीएस) में दानदाताओं और प्राप्तकर्ताओं के बीच इसी खाई को पाटने के लिए प्लाज्मा बैंक का उद्घाटन किया गया है. डॉक्टरों के साथ-साथ मरीजों का भी कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि इस बैंक से प्लाज्मा की कमी नहीं रहेगी और अब तक मचनी रहती अफरा-तफरी खत्म करने में यह एक अहम नर्व सेंटर साबित होगा.
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‘आखिरी सहारा’
दिल्ली की रहने वाली 26 वर्षीय दिव्या सिंह ने बताया कि अपने कोविड पॉजीटिव पिता के लिए प्लाज्मा खोजना ‘एक कठिन कार्य बन गया था जिसके लिए उन्होंने तमाम सोशल मीडिया ग्रुप पर संपर्क साधा और शहर शहर में ब्लड बैंकों के चक्कर लगाए.’
प्लाज्मा बैंक के उद्घाटन से कुछ दिन पहले दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने कहा था, ‘प्लाज्मा दानकर्ता को खोजना भूसे में से सुई ढूंढ़ निकालने से कम दुरूह कार्य नहीं है.’
दिव्या ने बताया कि एक हफ्ते भागदौड़ करने के बावजूद वह अपने पिता के लिए एक उपयुक्त दानकर्ता नहीं खोज पाई थीं. गैरसरकारी संगठनों और स्वयंसेवकों की मदद से उन्हें छह दातकर्ता मिल भी गए तो उनमें से किसी में एंटीबॉडी के लिया किया गया टेस्ट सकारात्मक नहीं रहा.
कोविड-19, जो ऐसी नई बीमारी है जिस पर दुनियाभर में अध्ययन ही चल रहा है, के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल अभी प्रायोगिक तौर पर ही हो रहा है. इसे देखते हुए सरकारी दिशानिर्देशों के तहत अस्पतालों को इसका इस्तेमाल कुछ विशेष स्थितियों में तभी करने की अनुमति है जब मरीज पर किसी अन्य उपचार का कोई असर न हो रहा हो.
उन्होंने कहा, ‘जिस निजी अस्पताल (फोर्टिस वसंत कुंज) में मेरे पिता का इलाज चल रहा था, वह उनकी जान बचाने के आखिरी उपाय के तौर पर एक निगेटिव दानकर्ता के प्लाज्मा से इलाज को तैयार था.’
वसंतकुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल ने थेरेपी के पहले परिवार को इस अंडरटेकिंग पर हस्ताक्षर करने को कहा कि इसके नतीजों के लिए संस्थान जिम्मेदार नहीं होगा. थेरेपी मददगार नहीं साबित हुई और 25 जून को दिव्या के पिता का देहांत हो गया.
टिप्पणी के लिए संपर्क करने पर अस्पताल ने शुरू में तो दावा किया कि वहां प्लाज्मा थेरेपी पर कोई परीक्षण नहीं किया जा रहा. और सवाल पूछे जाने पर अस्पताल के प्रवक्ता ने कहा, ‘हम न तो किसी बात की पुष्टि कर सकते हैं और न ही इनकार. जो होना था वह हो चुका है. हम मरीज की गोपनीयता के मद्देनजर कोई भी जानकारी साझा नहीं कर सकते.’
हालांकि, एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है कि अस्पताल की तरफ से एंटीबॉडी के लिए निगेटिव प्लाज्मा सैंपल के साथ थेरेपी को अंजाम देने में कुछ अनुचित नहीं था.
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के तहत भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान के निदेशक डॉ. राम विश्वकर्मा ने कहा, ‘अगर प्लाज्मा एंटीबॉडी-निगेटिव है तो यह संभावना अधिक है कि मरीज को ठीक करने में सक्षम नहीं होगा, लेकिन इससे उसे कोई नुकसान भी नहीं होगा.’
‘एंटीबॉडी के कुछ उप-समूह होते हैं जिन पर हम परीक्षण नहीं कर रहे हैं, ऐसे में इससे अंत में कुछ अच्छा नतीजा निकल सकता है. अगर डॉक्टरों ने यह प्लाज्मा दिया है तो कुछ सोचसमझकर ही ऐसा किया होगा.’
उन्होंने कहा कि हो सकता है कि दानकर्ता में एंटीबॉडी परीक्षण निगेटिव इसलिए रहा हो क्योंकि ‘टाइट्रे (एंटीबॉडी की सघनता) बहुत ज्यादा न हो.’ उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन ऐसे मामलों में जहां मरीज की जान बचाने का और कोई उपाय न हो डॉक्टरों को ऐसे कदम उठाने चाहिए.’
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दानदाताओं की तलाश
इस हफ्ते के शुरू में दिप्रिंट से बातचीत किए जाने तक 22 वर्षीय सरफराज अली के लिए प्लाज्मा दानकर्ता खोजने की जद्दोजहद जारी थी. दिल्ली के द्वारका में एक निजी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती अपने 37 वर्षीय भाई के लिए पूरी शिद्दत से एक प्लाज्मा दानकर्ता खोजने में जुटे सरफराज ने बताया था कि उन्होंने अपने सभी संपर्कों को व्हाट्सएप और फेसबुक संदेश भेजे थे.
‘मैं हर दिन लोगों को संदेश भेजता हूं। बहुत कम लोग इन पर कोई सकारात्मक जवाब देते हैं। कुछ लोग मेरे भाई की मदद को तैयार हुए लेकिन आखिरी क्षणों में मुकर गए. लोग दान करने को लेकर काफी डरे हुए हैं, उनका कहना है कि फिर से वायरस की चपेट में नहीं आना चाहते.’
उन्होंने बताया, ‘हम पिछले चार दिनों से प्लाज्मा दानकर्ता की तलाश कर रहे हैं.’
प्लाज्मा दानकर्ताओं को खोजने के लिए मरीजों को अच्छी-खासी मशक्कत करनी पड़ती है. वहीं अस्पतालों का भी कहना है कि दानकर्ता की व्यवस्था के लिए वह कोविड-19 से ठीक हुए मरीजों का डाटाबेस इस्तेमाल करते हैं.
मैक्स अस्पताल ने कुल संख्या के बारे में कोई जानकारी दिए बिना एक वक्तव्य में दिप्रिंट को जानकारी दी, ‘हमारे अस्पतालों में कोविड का इलाज कराने वाले मरीजों का पूरा डाटाबेस है. हमारे पास एक पूरी टीम है, जो कोविड को मात देने वाले मरीजों से संपर्क करने की कोशिश करती है जो संभावित दानकर्ता हो सकते हैं.’
प्लाज्मा की खोज ने ढूंढ जैसे संगठनों को भी जन्म दिया है. दिल्ली के दंपति अद्वैत और कनुप्रिया मल द्वारा शुरू किए गए संगठन को उम्मीद है कि अन्य मरीजों को उस तरह की मुश्किलें नहीं झेलनी पड़ेंगी जैसी कोविड-19 की चपेट में आने के बाद उनके (कनुप्रिया) 68 वर्षीय पिता के सामने पेश आई थीं.
संगठन की टीम के एक सदस्य ने बताया, ‘हमारी वेबसाइट एक ऐसा पोर्टल है जहां हम मरीजों और दानकर्ताओं का एक-दूसरे से संपर्क कराने का प्रयास करते हैं. अब तक, हमारे पास 1,400 मरीज और 240 दानकर्ता पंजीकृत हो चुके हैं.
टीम के सदस्य ने आगे कहा, ‘हमें कभी-कभी एक ही रोगी के लिए कई पंजीकरण मिलते हैं. परिवार के सदस्यों को लगता है कि यदि कई बार पंजीकरण कराएंगे, तो उन्हें जल्दी कोई दानकर्ता मिल सकता है.’
दानकर्ताओं की कम संख्या के बारे में पूछे जाने पर टीम के सदस्य का कहना था कि उन्होंने पाया है कि ‘कई मामलों में लोग अंतिम समय में पीछे हट जाते हैं.’
‘बीमारी और अस्पतालों का डर लोगों के दिलों में घर कर गया है. ठीक हो चुके मरीजों में यह भावना भी होती है कि उन्हें दानकर्ता बनने का मौका बचाकर रखना चाहिए, क्योंकि उसके परिवार का कोई सदस्य भी बीमार पड़ सकता है.’
दिल्ली विधानसभा की पहल के तहत बने दिल्ली असेंबली रिसर्च सेंटर के एक फेलो ने बताया कि उन्हें ‘पिछले एक महीने में प्लाज्मा दान करने के लिए 250 से अधिक अनुरोध मिले थे.’
राजधानी में महामारी से मुकाबले और प्रकोप घटाने की सरकारी पहल इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलांस प्रोग्राम (आईडीएसपी) के तहत, नियुक्त फेलो प्लाज्मा दान के संबंधी प्रयासों के समन्वय का जिम्मा संभाल रहे हैं.
उन्होंने बताया कि जरूरत के मुताबिक उपलब्धता न होने के कारण वह पिछले एक महीने में केवल 61 मरीजों की ही मदद कर पाए हैं.
दिप्रिंट ने दिल्ली की स्वास्थ्य सचिव पद्मिनी सिंगला और आईएलबीएस के निदेशक एस.के. सरीन से दिल्ली में प्लाज्मा थेरेपी के बारे में टिप्पणी के लिए फोनकॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये संपर्क की कोशिश की लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित करने के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.
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‘एक अच्छी पहल’
दिल्ली सरकार ने राजधानी में प्लाज्मा दान के लिए एक नर्व सेंटर स्थापित करने के उद्देश्य से गुरुवार को आईएलबीएस में प्लाज्मा बैंक का उद्घाटन किया. यह देश का पहला प्लाज्मा बैंक था, और दूसरा शुक्रवार को असम में स्थापित किया गया था.
जैसा कि पहले ही उल्लेख किया जा चुका है, प्लाज्मा दान करने के लिए दानदाताओं को कुछ मानक पूरे करने होते हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को घोषणा की कि प्लाज्मा डोनेट करने से 14 दिन पहले दानकर्ताओं का कोविड-19 टेस्ट निगेटिव होना चाहिए, उम्र 18-60 वर्ष के बीच होनी चाहिए, और वजन 50 किलो या उससे अधिक होना चाहिए. जो महिलाएं पूर्व में गर्भवती हो चुकी हैं, वे दान नहीं कर सकती हैं और न ही ऐसे मरीज दानकर्ता हो सकते हैं जो दो या उससे अधिक बीमारियों से पीड़ित हों.
दानकर्ता 1031 पर कॉल कर सकते हैं या 8800007722 नंबर पर व्हाट्सएप के माध्यम से बैंक से संपर्क कर दान के लिए पंजीकरण करा सकते हैं.
दिल्ली सरकार के लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में चिकित्सा निदेशक डॉ. सुरेश कुमार ने कहा कि प्लाज्मा बैंक ‘एक अच्छी पहल’ है.
उन्होंने कहा, ‘इससे न केवल निजी अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों को फायदा होगा, बल्कि सरकारी अस्पतालों को भी मदद मिलेगी। साथ ही हम अपने परीक्षणों के लिए, आपात स्थिति में प्लाज्मा बैंक तक पहुंच सकते हैं.’
अपोलो हॉस्पिटल्स के ग्रुप डायरेक्टर डॉ. अनुपम सिब्बल की राय भी कुछ ऐसी ही है. ‘हमने अध्ययनों को देखा है और प्लाज्मा थेरेपी के लिए नतीजे उत्साहजनक नजर आते हैं. थेरेपी सार्स कोव-2 वायरस से लड़ने में मददगार है. हालांकि, यह एक घोषित इलाज नहीं है, यही वजह है कि मरीजों को एक टेस्ट के तौर पर नामांकन कराने की जरूरत पड़ती है. प्लाज्मा बैंक खोलना दिल्ली सरकार की तरफ से उठाया गया एक सकारात्मक कदम है.’
उन्होंने आगे कहा कि प्लाज्मा दान को प्रोत्साहित करने के प्रयासों को मीडिया और सरकार मिलकर और बढ़ा सकते हैं.
एक 31 वर्षीय उद्यमी राजीव भट्ट ने कहा कि प्लाज्मा बैंक खोलने की दिल्ली सरकार की घोषणा ने उनमें उम्मीद की किरण जगाई थी. ‘मेरा 20 वर्षीय भाई कोविड पॉजीटिव निकला है. मैंने देखा है कि किस तरह मेरे एक दोस्त को अपने रिश्तेदार के लिए प्लाज्मा दानकर्ता खोजने के लिए मुश्किलें झेलनी पड़ीं. बैंक खुलने के बाद अब मुझे पता है कि आवश्यकता पड़ने पर प्लाज्मा के लिए कहां संपर्क करना है.’
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