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Sunday, 17 November, 2024
होमदेशअब ‘ख़ास’ नहीं रही लुटियंस दिल्ली की लाइब्रेरी, IIC ने सभी के लिए डिजिटाइज़ किया अपना दुर्लभ संग्रह

अब ‘ख़ास’ नहीं रही लुटियंस दिल्ली की लाइब्रेरी, IIC ने सभी के लिए डिजिटाइज़ किया अपना दुर्लभ संग्रह

इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की लाइब्रेरी ने अपनी क़रीब 9,434 किताबों तथा सामग्रियों के अनोखे और दुर्लभ संग्रह को डिजिटाइज़ किया है, जिनमें से कुछ 17वीं सदी तक की हैं.

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नई दिल्ली: बेज रंग के क़ालीन का फर्श हो, हवा में बसी ख़ामोशी हो, या अपनी किताबों में डूबे हुए बुज़ुर्ग पाठक, बहुत साफ है कि 1962 में स्थापित, और दिल्ली के लोधी एस्टेट में स्थित एक प्रमुख सांस्कृतिक संस्थान, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर या आईआईसी की लाइब्रेरी, अपने आप में एक बहुत ही ख़ास जगह है. किसी भी दिन लुटियंस दिल्ली की सत्ता के ख़ासम-ख़ास रिटायर्ड लोग, इस लाइब्रेरी में देखे जा सकते हैं.

बनी किताबों की लकड़ी से बनी अल्मारियों की क़तार, और शीशे की खिड़कियों वाली इस आईआईसी लाइब्रेरी में, 54,565 से अधिक किताबें हैं, जो दर्शन और मनोविज्ञान से लेकर धर्म, कला और संस्कृति जैसे विषयों पर हैं, जिनमें से कुछ 17वीं शताब्दी तक की हैं. यहां अक्सर आने वाले लोगों में अवतार सिंह भसीन जैसे विदेश मंत्रालय से रिटायर होकर लेखक बने लोग शामिल हैं, जिन्होंने भारत के श्रीलंका, बांग्लादेश, तिब्बत और चीन जैसे अपने पड़ोसियों के साथ रिश्तों पर बहुत कुछ लिखा है, और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश जैसी राजनीतिक हस्तियां भी हैं.

केवल आईआईसी सदस्य ही, जिनकी संख्या फिलहाल 7,000 है, इस लाइब्रेरी में आ सकते हैं, हालांकि ग़ैर-सदस्यों को अस्थाई सदस्यता मिल जाती है.

लेकिन आईआईसी को भारत के संभ्रांत वर्ग के एक विशिष्ट क्लब के तौर पर देखा जाता रहा है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में तो यहां तक कहा गया, कि ‘आईआईसी सदस्यता का मतलब ये माना जाता है कि ये व्यक्ति अपनी करिअर में कामयाबी के शिखर तक पहुंच चुका है…(और उसका ताल्लुक़) समाज के ऊपरी तबक़े से है’.

इसलिए, 9 दिसंबर को आईआईसी लाइब्रेरी ने ‘डिजीलिब’ नाम से एक डिजिटल पोर्टल लॉन्च किया, जिसके ज़रिए उसने कुछ दुर्लभ किताबों और सामग्री को आम लोगों के लिए ऑनलाइन उपलब्ध करा दिया. ग़ैर-सदस्य लोग भी प्लेटफॉर्म पर पंजीकरण कराकर, इन सामग्रियों तक पहुंच सकते हैं, और 2 रुपए देकर इन्हें डाउनलोड कर सकते हैं.

आईआईसी डिजीलिब में शामिल कार्यों में, वॉल्टर साइक्स जॉर्ज के हाथ से बनाए रेखाचित्र हैं, जो नई दिल्ली राजधानी का डिज़ाइन तैयार करने वाले एक एंग्लो-इंडियन आर्किटेक्ट थे; भारत के डाक ख़ानों के नेटवर्क का 1835 का एक नक़्शा है; आरबीआई के पहले गवर्नर सीडी देशमुख के लिखे पत्र हैं; कांग्रेस योजना उप-समिति की 1959 की एक रिपोर्ट है, और इनके अलावा और बहुत कुछ है. कुछ दुर्लभ सामग्रियों में मुग़ल इतिहास पर मूल फारसी कार्यों के अनुवाद, और सैयद हुसैन बिलग्रामी द्वारा दान की गई किताबों का एक संग्रह है, जो ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के एक शुरुआती लीडर थे.

बिलग्रामी संग्रह | दिप्रिंट टीम

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ज्ञान का संरक्षण

भसीन के अनुसार, जिन्हें आईआईसी लाइब्रेरी में आते हुए दो दशक से अधिक हो गए हैं, और जो नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम व लाइब्रेरी जैसी जगहों पर भी जाते हैं, आईआईसी का संग्रह बहुत उम्दा क्वालिटी का है.

उन्होंने कहा, ‘ये हमेशा ऐसी जगह रही है जहां मैं सबसे दुर्लभ किताबों के लिए आता हूं. अब उन्होंने अपने कुछ बेहतरीन संग्रह को लोगों के लिए ऑनलाइन खोल दिया है, जो और भी अच्छी बात है’.

आईआईसी लाइब्रेरी ने कुल 9,434 आइटम्स के मेटाडेटा को डिजिटाइज़ किया, और ये काम एक साल में पूरा किया गया, जिसमें महामारी का समय भी शामिल है.

मुख्य लाइब्रेरियन ऊषा मुंशी ने कहा, ‘हम अपने देश की विरासत और संस्कृति के ज्ञान को, वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों के लिए संजोना चाहते थे, ख़ासकर विरासती संसाधनों को जो बहुत दुर्लभ हैं’.

डिजिटल भंडार तैयार करने के लिए मुंशी और नौ लोगों की उनकी टीम ने, ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर और कुछ मेटाडेटा एजेंट्स का इस्तेमाल किया. इन एजेंट्स का काम होता है कि स्कैनर से जानकारी लेकर, एक समृद्ध मेटाडेटा तैयार करें, जैसे कि लेखक, फाइल साइज़, डॉक्युमेंट तैयार करने की तिथि, और कुछ मुख्य शब्द.

इन परियोजना का समन्वय करने वाली मुंशी ने कहा, ‘20 लाख पन्नों को स्कैन करना आसान नहीं होता, इसलिए हमने प्रक्रिया के उस हिस्से को बाहर से कराया. उस काम को सख़्ती के साथ आईआईसी कैंपस के अंदर कराया गया’.

लॉन्च के बाद से इस डिजिटल भण्डार को 7,500 से अधिक विज़िट्स मिल चुके हैं.

आईआईसी पुस्तकालय में लेखक और इतिहासकार एएस भसीन (दाएं), मुख्य पुस्तकालयाध्यक्ष ऊषा मुंशी (बाएं) के साथ 28 दिसंबर 2021 को नई दिल्ली में | पिया कृष्णनकुट्टी | दिप्रिंट

‘भारत के बाक़ी हिस्सों में ज्ञान का प्रसार’

भारत में कई डिजिटल लाइब्रेरियां हैं, और बहुत सी आ रही हैं. मसलन, भारत के संग्रहालयों के लिए अक्टूबर 2014 में, सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा लॉन्च किए गए नेशनल पोर्टल एंड डिजिटल डिपॉज़िटरी ने, एक अकेले पोर्टल से दस संग्रहालयों के संग्रह तक ऑनलाइन पहुंचना संभव कर दिया है. इस बीच, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स ने भी अपने दुर्लभ अभिलेखीय संग्रह को, कलासंपदा नामक अपने पोर्टल में डिजिटाइज़ कर दिया है.

लेकिन वो क्या चीज़ है जो आईआईसी के डिजिटल भंडार को अनोखा बनाती है?

मुंशी ने कहा, ‘एक तो ये कि ये एक बहुत दुर्लभ संग्रह है, और इनमें कुछ दस्तावेज़ बहुत पुराने हैं. इसलिए देखने वाले सराहेंगे कि उन्हें कैसी स्थिति में संरक्षित रखा गया है. दूसरे ये कि इन संग्रहों को बहुत लंबे समय तक प्रतिबंधित रखा गया है. अब ये सब के लिए खुले हैं, और हमारा अंतिम लक्ष्य यही था- कि ये हर किसी के लिए सुगम होना चाहिए’. उन्होंने आगे कहा, ‘हम ज्ञान के प्रसार तथा ज्ञान तक पहुंचने में आने वाली बाधाओं और बंदिशों को, दूर करने में विश्वास रखते हैं’.

आईआईसी की योजना है कि वो अपने डिजिटल भंडार को बढ़ाएगा, और अगले पांच से छह महीने में, उसमें और अधिक किताबें, दस्तावेज़ और सामग्रियां शामिल करेगा.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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